बाहु रैका के जंगल की पुकार: जानीपुर हाईकोर्ट निर्माण के दौरान भी दस हजार पेड़ों ने खोया था जीवन
मौजूदा समय में जहां हाईकोर्ट व जिला कोर्ट परिसर बना है दो दशक पूर्व यहां सिर्फ जंगल था। एक अनुमान के अनुसार उस समय क्षेत्र में 20-25 हजार पेड़ थे।
जम्मू, ललित कुमार। जानीपुर स्थित हाईकोर्ट के जिस परिसर को बाहु रैका में शिफ्ट करने का प्रस्ताव है, बीस साल पहले इसे बनाने के लिए भी दस हजार पेड़ों ने अपना जीवन खोया था। जब इसका कांप्लेक्स बाहु रैका में बनाया जाएगा तो वहां 40 हजार पेड़ों पर संकट छाया हुआ है। हैरानी की बात है कि जानीपुर हाईकोर्ट परिसर के लगातार विस्तारीकरण (वर्तमान में भी) के बावजूद इसे शिफ्ट करने का प्रस्ताव तैयार हो गया। मौजूदा समय में इस परिसर में कई प्रोजेक्टों पर काम चल रहा है। जहां तक हाईकोर्ट मार्ग की चौड़ाई कम होने की बात है तो इस समस्या को दूर करने के लिए बिजली विभाग के ग्रिड स्टेशन भी अलग किया जा रहा है, फिर भी हाईकोर्ट परिसर शिफ्ट करने का प्रस्ताव क्यों लाया गया... इस तरह की कई बातें लोगों को समझ नहीं आ रही हैं।
करीब दो दशक पूर्व जब जानीपुर में जिला कोर्ट परिसर और हाईकोर्ट परिसर शिफ्ट करने का प्रस्ताव आया तो उस समय क्षेत्र में सिर्फ जंगल था। न्यू प्लाट से जानीपुर जाने वाले इस मार्ग पर मीलों तक जंगल था। यह जंगल जम्मू-नगरोटा मार्ग पर मांडा से जुड़ता था। चूंकि उस समय मुबारक मंडी में जर्जर इमारत में कोर्ट परिसर चल रहा था जो असुरक्षित थे, इस लिहाजा से कोर्ट परिसर को जानीपुर में वन विभाग की जमीन पर शिफ्ट करने के प्रस्ताव को मंजूरी मिल गई। कोर्ट को बेहतर ढांचा उपलब्ध करवाने के लिए 600 कनाल जमीन पर लगे तकरीबन दस हजार पेड़ों को कुर्बानी देनी पड़ी।
मौजूदा समय में जहां हाईकोर्ट व जिला कोर्ट परिसर बना है, दो दशक पूर्व यहां सिर्फ जंगल था। एक अनुमान के अनुसार उस समय क्षेत्र में 20-25 हजार पेड़ थे। इनमें से पचास फीसद तक पेड़ काटे गए। इनके स्थान पर परिसर के भीतर निर्माण के दौरान कुछ क्षेत्रों में पौधे लगाए भी गए जो आज पेड़ों का रूप ले चुके हैं। ढांचागत सुविधाओं के लिए प्राकृतिक संसाधनों की कुर्बानी दी गई, लेकिन आज एक बार फिर से कोर्ट परिसर को शिफ्ट करने का प्रस्ताव आया है। अगर मौजूदा कोर्ट परिसर को जानीपुर से बाहु रैका में शिफ्ट कर दिया जाता है तो प्राकृतिक संसाधनों की यह कुर्बानी व्यर्थ जाएगी। इससे जहां करोड़ों रुपये का खर्च व्यर्थ होगा, वहीं बाहु रैका में भी पर्यावरण संसाधनों की कुर्बानी देनी पड़ेगी। एक अनुमान के अनुसार अगर बाहु रैका में हाईकोर्ट परिसर बनता है तो वहां भी करीब चालीस हजार पेड़ों की कुर्बानी देनी पड़ेगी। यह शहर के पर्यावरण के लिए खतरे की सूचक होगा। यही कारण है कि केवल वकील ही नहीं, विभिन्न संगठन भी इस प्रस्ताव के विरोध में सामने आए हैं।
अभी नहीं समझे तो देर हो जाएगी
पर्यावरणविदों का मानना है कि जंगलों की और कटौती से शहर में आक्सीजन की भारी कमी होगी जो शहर व शहरवासियों के लिए ठीक नहीं। अगर भी नहीं समझे तो देर हो जाएगी। शहरवासी भी समझ रहे हैं कि पड़ों की कटाई से पहले से ही प्रदूषित हो रहे जम्मू शहर में प्रदूषण का खतरा और बढ़ेगा। जम्मू शहर में इस समय जो प्रदूषण का स्तर है, वह सेहत के लिए कुछ हद तक हानिकारक है, लेकिन अगर पेड़ों की कटाई इसी तरह जारी रही और वाहनों की संख्या बढ़ती रही तो जम्मू को दिल्ली बनते देर नहीं लगेगी। एयर क्वालिटी इंडेक्स में 0 से 50 स्तर तक की हवा सेहत के लिए अच्छी मानी जाती है और 51 से 100 के बीच का स्तर सेहत के लिए कुछ खराब माना जाता है। मौजूदा समय में जम्मू शहर का एयर क्वालिटी इंडेक्स औसतन 100-110 के आसपास रहता है।
1996 में रखा गया था नींव पत्थर
18 जुलाई 1996 को जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल केवी कृष्णा राव ने जानीपुर में जिला कोर्ट परिसर के निर्माण का नींव पत्थर रखा। तीस मार्च 2001 को जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस बीपी सराफ ने जिला कोर्ट परिसर के ए ब्लाक का उद्घाटन किया। उस समय वहां केवल चार कोर्ट शिफ्ट किए गए, जिनमें पैसेंजर टैक्स कोर्ट, इलेक्ट्रिसिटी कोर्ट, स्पेशल ट्रैफिक कोर्ट व एडिशनल ट्रैफिक कोर्ट शामिल रहे। शेष कोर्ट 22 दिसंबर 2004 को शिफ्ट हुए जिनका उद्घाटन तत्कालीन चीफ जस्टिस एसएन झा ने किया।
विस्तारीकरण के बीच शिफ्ट करने का प्रस्ताव समझ से परे
जानीपुर स्थित हाईकोर्ट परिसर के विस्तारीकरण कार्य के बीच इसे शिफ्ट करने का प्रस्ताव हर किसी की समझ से बाहर है। दो दशक पूर्व बनना आरंभ हुए इस परिसर के विस्तार को लेकर कार्य निरंतर जारी है। मौजूदा समय में भी कई प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। वर्ष 2016 में यहां तीन करोड़ रुपये खर्च करके नया पार्किंग स्थल विकसित किया गया। इसके लिए भी सैकड़ों पेड़ काटे गए जिनकी अभी तक भरपाई नहीं हो पाई है। इसी साल कोर्ट परिसर में वकीलों के लिए चैंबर निर्माण का कार्य आरंभ हुआ। वकीलों की बढ़ती संख्या व बैठने के लिए कम पड़ती जगह को देखते हुए जिला कोर्ट परिसर के साथ लगती जगह पर करीब 18.50 करोड़ रुपये की लागत से निर्माण शुरू किया गया जो पिछले साल पूरा हुआ। इसके लिए भी प्राकृतिक संसाधनों को कुर्बानी देनी पड़ी। इतना ही नहीं अभी पिछले साल ही हाईकोर्ट के मौजूदा परिसर के विस्तारीकरण की प्रक्रिया आरंभ की गई जो अभी ब्लू ङ्क्षप्रट तैयार करने की स्टेज पर पहुंची है।
...तो ग्रिड स्टेशन क्यों हो रहा शिफ्ट
जानीपुर स्थित हाईकोर्ट परिसर में इस समय एक ही मुश्किल सामने आ रही है और वह है जानीपुर मार्ग से लेकर परिसर तक जाने वाले मार्ग का कम चौड़ा होना। इस दिक्कत को दूर करने के लिए हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच ने इसे चौड़ा करने का आदेश भी जारी कर दिया है। इस मार्ग को चौड़ा करने में सबसे बड़ी दिक्कत मार्ग पावर डेवलपमेंट डिपार्टमेंट का ग्रिड स्टेशन है। हालांकि, इसे शिफ्ट करने के लिए सरकार ने पैसा मंजूर कर दिया है। इसी साल जून में इस ढांचे को शिफ्ट करने की प्रक्रिया भी आरंभ हुई जो फिलहाल जारी है।