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Jammu Kashmir: पाक की बौखलाहट का नतीजा तो नहीं है ड्रोन हमला

शनिवार-रविवार की आधी रात को जम्मू में वायुसेना के टेक्निकल एयरपोर्ट पर ड्रोन से हमला होता है। पहली दो घटनाओं का सिलसिलेवार होना महज संयोग हो सकता है लेकिन एयरपोर्ट पर हमला महज संयोग नहीं है। यह सुनियोजित भी नहीं कहा जा सकता

By Vikas AbrolEdited By: Published: Mon, 28 Jun 2021 07:54 AM (IST)Updated: Mon, 28 Jun 2021 07:54 AM (IST)
Jammu Kashmir: पाक की बौखलाहट का नतीजा तो नहीं है ड्रोन हमला
एयरपोर्ट पर हमला महज संयोग नहीं है। यह पाकिस्तान की बेचैनी व हताशा का नतीजा ही कहा जाएगा।

श्रीनगर, नवीन नवाज । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवास पर कश्मीर मुद्दे पर गत वीरवार को सर्वदलीय बैठक में सभी कश्मीरी राजनीतिक दल शामिल होते हैं। इसके अगले दिन शुक्रवार को एफएटीएफ की बैठक में पाकिस्तान को ग्रे सूची से बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिलता। शनिवार-रविवार की आधी रात को जम्मू में वायुसेना के टेक्निकल एयरपोर्ट पर ड्रोन से हमला होता है। पहली दो घटनाओं का सिलसिलेवार होना महज संयोग हो सकता है, लेकिन एयरपोर्ट पर हमला महज संयोग नहीं है। यह सुनियोजित भी नहीं कहा जा सकता, बल्कि यह आतंकियों और उनके आका पाकिस्तान की बेचैनी व हताशा का नतीजा ही कहा जाएगा।

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आधी रात को हुए ड्रोन हमले के साथ पाकिस्तानी कनेक्शन को समझने से पहले यह जानना जरूरी है कि 14 फरवरी, 2019 के पुलवामा आतंकी हमले और उसके बाद पांच अगस्त, 2019 को जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग कर दिया है। पाकिस्तान पर जम्मू कश्मीर में आतंकवाद से खुद को अलग करने और आतंकी ढांचा नष्ट करने का अंतरराष्ट्रीय दबाव लगातार बढ़ रहा है।

जम्मू कश्मीर में लगातार सुधरते हालात के विपरीत पाकिस्तान में हालात बिगड़ रहे हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और पाकिस्तानी सेना के जनरल कमर जावेद बाजवा की स्थिति भी लगातार कमजोर हो रही है। यहां तक कहा जा रहा है कि बीत दिनों कश्मीर मुद्दे पर कमर जावेद की नीतियों से नाखुश पाकिस्तानी सेना के वरिष्ठ अधिकारियों का एक गुट उनके खिलाफ बगावत पर उतर आया था। इमरान खान लगातार विपक्ष के सामने कमजोर पड़ते नजर आ रहे हैं। वह एक तरह से सेना की बैसाखी के सहारे पर ही टिके हुए हैं।

पाकिस्तान की सियासत में कश्मीर की अहमियत क्या है, यह सभी जानते हैं। पाकिस्तान की सेना हो या वहां का राजनीतिक तंत्र, उनके लिए कश्मीर एक शहरग है। पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन का कारण हमेशा कश्मीर बनता रहा है और कश्मीर ही वहां के नेताओं को सत्ता की कुर्सी तक पहुंचाता आया है। इमरान खान को उम्मीद थी कि बीते कुछ सालों से उन्होंने जिस तरह से लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिदीन के आकाओं को अपने छद्म संगठनों से कश्मीर में आतंकी हिंसा जारी रखने के लिए मनाया है, उसका फायदा उन्हेंं एफएटीएफ की बैठक में होगा। उनका यह सोचना गलत रहा और पाकिस्तान एफटीएफ की ग्रे लिस्ट में ही है।

इसके अलावा 24 जून को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवास पर बैठक हुई तो इमरान खान को उम्मीद थी कि नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी समेत विभिन्न कश्मीरी राजनीतिक दल पांच अगस्त, 2019 के फैसले के खिलाफ हंगामा करेंगे। ऐसा नहीं हुआ, यह बैठक सफल रही और इस बैठक की विफलता की उम्मीद में इमरान खान और पाकिस्तानी सेना के जनरल बाजवा ने जो मंसूबा पाला था, वह धरा का धरा रह गया। अगर यह बैठक नाकाम होती तो वह अंतरराष्ट्रीय मंच पर हंगामा करते हुए कहते कि कश्मीर के वह राजनीतिक दल जो भारतीय संविधान में आस्था रखते हैं, भी पांच अगस्त, 2019 को लागू जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के मुद्दे पर बगावत कर चुके हैं। कहता कि कश्मीर में आतंकवाद नहीं है, कश्मीर के लोग आजादी चाहते हैं। इस तरह से इमरान पाकिस्तान की घरेलू राजनीति में भी अपने लिए आक्सीजन जुटाते। कश्मीर में सक्रिय आतंकी संगठनों को भी इस बैठक की विफलता से लाभ मिलता, जो अब नहीं मिलेगा।

एफएटीएफ का डंडा और अपना छवि बचाने की सता रही चिंता

नई दिल्ली में सर्वदलीय बैठक की कामयाबी और एफएटीएफ के डंडे से हताश पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और पाकिस्तान की सेना को कुछ ऐसा करके दिखाना है, जिससे वह पाकिस्तान में अपनी छवि बचा सके। इसके अलावा वह कश्मीर में अपने एजेंट को भी यह संदेश देना चाहती है कि वह घबराएं नहीं, वह मजबूती के साथ उनके साथ खड़ी है, क्योंकि कश्मीर में जो भी पाकिस्तानी एजेंट या समर्थक बचे हैं, वह पाकिस्तान को विश्वासघाती मानते हैं। दरअसल, पांच अगस्त, 2019 के बाद पाकिस्तान कहीं भी उनके साथ खुलकर खड़ा होता नजर नहीं आया है।

कश्मीर में सामान्य हालत की खुन्नस निकाल रहा पाक

कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ और पत्रकार अजात जम्वाल ने कहा कि जम्मू कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया की बहाली से पाकिस्तान हताश है। एयरपोर्ट पर हुआ हमला पाक व आतंकी संगठनों की हताशा का नतीजा है। हमारा अनुभव है जब भी कश्मीर में हालात सामान्य होने की दिशा में आगे बढ़े हैं, पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर में किसी बड़े आतंकी हमले को कराया है। इसके अलावा आज तक जब कभी कश्मीर या देश के किसी अन्य हिस्से में कोई बड़ा आतंकी हमला हुआ है, आतंकी संगठनों ने उसकी जिम्मेदारी ली है। लेकिन इस हमले में ऐसा नहीं हुआ। यह कैसे हो सकता है, यह हमला सिर्फ पाकिस्तानी फौज के इशारे पर ही हुआ है और इसलिए पाकिस्तान की शह पर पलने वाले आतंकी संगठन चुप हैं। इस हमले के जरिए पाकिस्तान और आतंकी संगठनों ने 24 जून को दिल्ली में हुई सर्वदलीय बैठक और उसके बाद 25 जून को हुई एफएटीएफ की बैठक की खुन्नस निकाली है। 


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