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नाटक 'अगरबत्ती' में जातीय प्रेरणा से हुई फूलन की हत्या पर उठाए सवाल

नूतन इंटरनेशनल थिएटर फेस्टिवल के पांचवें दिन अभिनव थियेटर में मंचित नाटक अगरबत्ती जातीय प्रेरणा से हुई फूलन देवी की हत्या पर सवाल उठाता दिखा।

By Edited By: Published: Thu, 06 Feb 2020 09:25 AM (IST)Updated: Thu, 06 Feb 2020 09:25 AM (IST)
नाटक 'अगरबत्ती' में जातीय प्रेरणा से हुई फूलन की हत्या पर उठाए सवाल
नाटक 'अगरबत्ती' में जातीय प्रेरणा से हुई फूलन की हत्या पर उठाए सवाल

जागरण संवाददात, जम्मू : नूतन इंटरनेशनल थिएटर फेस्टिवल के पांचवें दिन अभिनव थियेटर में मंचित नाटक 'अगरबत्ती' जातीय प्रेरणा से हुई फूलन देवी की हत्या पर सवाल उठाता दिखा। समागम रंगमंडल जबलपुर की इस प्रस्तुति ने मंच पर एक जादुई आभा पैदा की और दर्शकों ने प्रस्तुति की जमकर सराहना की। आशीष पाठक द्वारा लिखित और स्वाति दुबे द्वारा निर्देशित नाटक फूलन देवी के दस्यु क्वीन बनकर बीहड़ में जाने और उसके बाद अपने साथ हुई हैवानियत का बदला लेने के लिए ठाकुरों की हत्या और उसके बाद ठाकुरों के घर में विधवा महिलाओं के जीवन पर आधारित है।

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फूलन देवी एक दलित जाति और बेहद गरीब परिवार की महिला थी, जिसके साथ ठाकुरों ने जघन्य अपराध को अंजाम दिया था। उस समय राजनीति में भी सवर्ण वर्ग का ही दबदबा था, इसलिए महिला दलित की आवाज किसी ने नहीं सुनी और वह बीहड़ की शरण लेकर दस्यु क्वीन बन जाती है। इसके बाद वह अपना बदला लेती है। नाटक इस पर भी सवाल उठाता है कि जब फूलन अपना बदला लेती है तो ठाकुरों की पत्‍ि‌नयों पर क्या बीतती है। महिलाओं के समूह द्वारा नृत्य और संगीत के साथ जब नाटक शुरू होता है तो गोलियों की तड़तड़ाहट से सब सिहर जाते हैं। नाटक पितृसत्ता, जाति, वर्ग-संघर्ष और राजनीति पर सवाल उठाता है। जब दस्यु क्वीन अपना बदला लेती है तो ठाकुरों के घरों में 24 महिलाएं विधवा हो जाती हैं।

इनमें से एक लालाराम की ठकुराइन कसम खाती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार तब तक नहीं करेगी, जब तक कि फूलन देवी को मार नहीं दिया जाता। नरसंहार करने वाले ठाकुरों की विधवाओं के पुनर्वास के लिए सरकार गांव में एक अगरबत्ती फैक्ट्री खोलती है। नाटक में अगरबत्ती कारखाने का सेट दिखता है, जो दर्शकों के दिल में महिलाओं की आपबीती को भी उतार देता है। सवाल यह नहीं कि फूलन के साथ क्या हुआ, सवाल यह भी उठता है कि बदले के बाद ठकुराइनों का क्या होगा। नाटक ऐसी दुनिया से दर्शकों का सामना करवाता है जहां जातिगत विभेद, गरीबी-अमीरी की खाई बहुत गहरी है और समाज में पितृसत्तात्मक ढांचा बहुत कठोर है।

अगरबत्ती के बहाने महिला सशक्तिकरण को भी उठाया गया है। सेट डिजाइन न्यूनतम और कुशल था। साउंड इफेक्टस और लाइट डिजाइनिंग ने कहानी के साथ न्याय किया। मंच का प्रयोग काफी सूझबूझ के साथ किया गया था। नाटक में ठकुराइन के रूप में स्वाति दुबे, सुमन के रूप में अर्चना मिश्रा, पार्वती के रूप में पूजा गुप्ता, लज्जो के रूप में शिवांजलि, दमयंती के रूप में मानसी, कल्ली के रूप में मेगना पांचाल, नानी बाई के रूप में शैवी, हर्षित ¨सह, अर¨वद, शिवकर, साहिल और सौरभ ने भी नाटक को अपने अभिनय से जीवंत किया।


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