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स्वतंत्रता का सारथी: वंचित गुज्जर समाज को समानता का अधिकार दिलाने में जुटे डा. जावेद राही

अपनी भाषीय पहचान के लिए उन्होंने अपने समुदाय के लोगों को गोजरी में अधिक से अधिक साहित्य रचने के लिए प्रेरित किया।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Mon, 10 Aug 2020 10:35 AM (IST)Updated: Mon, 10 Aug 2020 01:38 PM (IST)
स्वतंत्रता का सारथी: वंचित गुज्जर समाज को समानता का अधिकार दिलाने में जुटे डा. जावेद राही
स्वतंत्रता का सारथी: वंचित गुज्जर समाज को समानता का अधिकार दिलाने में जुटे डा. जावेद राही

जम्मू, अशोक शर्मा : पुंछ जिले के दूरदराज इलाके से उठ कर डॉ. जावेद राही धुमक्कड़ जनजातिय वंचित गुज्जर, बकरवाल समाज को समानता का अधिकार दिलाने में जुटे हुए हैं। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले गुज्जर समाज की सांस्कृतिक लोक पहचान बचाने के लिए मुहीम छेड़ी। गुज्जर समाज के साथ-साथ दुनिया को यह संदेश देने में जुटे हुए हैं कि गुज्जर समाज की एक समृद्ध लोक सांस्कृतिक विरासत है। उनकी एक समृद्ध भाषा है। इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए।

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अपनी भाषीय पहचान के लिए उन्होंने अपने समुदाय के लोगों को गोजरी में अधिक से अधिक साहित्य रचने के लिए प्रेरित किया। रेडियो दूरदर्शन से अधिक से अधिक गोजरी कार्यक्रमों का प्रसारण हो इसके लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। गुज्जर समुदाय के बच्चे शहरों में आ कर पढ़ सकें। उनकी पढ़ाई में किसी प्रकार की दिक्कत न हो। गुज्जर विद्यार्थियों को पढ़ाई के लिए रहने, खाने पीने की परेशानी न हो। इसके लिए लगातार गुज्जर होस्टलों का मुद्दा उठाते हैं। घुम्मकड समुदाय के बच्चों को शिक्षा मिले। इसके बने मोबाइल स्कूलों की हालत और सुविधाओं के लिए निरंतर आवाज उठाने वाले डा. जावेद राही का कहना है कि डुग्गर प्रदेश का हर हर वर्ग गुज्जर समुदाय से जुड़ा महसूस करता है लेकिन उनके हक के लिए कोई आवाज नहीं उठाता। यही कारण है कि आज भी घुमक्कड़ जनजातिय गुज्जर बकरवाल समुदाय जिस पहचान के लिए संघर्ष कर रहा है, उसे नहीं मिल सकी है। यही कारण है कि आज भी घुमक्कड़ जनजातिय गुज्जर बकरवाल समुदाय जिस पहचान के लिए संघर्ष कर रहा है, उसे नहीं मिल सकी है।

दुनिया को दिखाना है सिर्फ भेड़ बकरियां चराना हमारी पहचान नहीं: जम्मू यूनिवर्सिटी के उर्दू विभाग से निकलते ही गुज्जर समुदाय के स्कालर डा. जावेद राही के दिल में ख्याल आया कि इस घुमक्कड़ जनजातिय समुदाय की विरासत का संरक्षण किया जाना चाहिए। जब तक शिक्षा की लो इस समुदाय तक नहीं पहुंचेगी समुदाय का उत्थान संभव नही है। डा. जावेद राही ने कहा कि यह मेरी अपनी पीढ़ा थी कि इतनी समृद्ध विरासत से होते हुए मैं दुनिया के लिए मात्र भेड़, बकरी, भैंसे चराने वाले समुदाय का एक युवक हूं। अपनी समृद्ध विरासत को दुनिया तक पहुंचाने एवं बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करने का संकल्प लिया।

वर्ष 1998 में जनजातीय समुदायों के सांस्कृतिक पहलुओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से गैर सरकारी संगठन ट्राइबल रिसर्च एंड कल्चरल फाउंडेशन की स्थापना की। एक शोध और संस्कृति संगठन के रूप में जनजातीय अध्ययन पर काम शुरू हुआ। मेरा उद्देश्य गुज्जरों के बारे में विश्व स्तरीय काम करना है। सार्वभौमिक समझ के लिए अनुसंधान, अध्ययन और संस्कृति के माध्यम से राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देकर गुर्जरों के अध्ययन और खानाबदोश अनुसंधान में योगदान करना है। इसके तहत राज्य के गुज्जरों के लोकगीतों के संरक्षण को लेकर कार्य किया। गोजरी शब्दकोष पर काम किया। कई सम्मेलनों एवं संगोष्ठियों का आयोजन किया।

डॉ. जावेद राही ने कहा कि ट्राइबल रिसर्च एंड कल्चरल फाउंडेशन की स्थापना के समय वस्तुत: कोई भी प्रकाशक आदिवासी भाषाओं गोजरी में पुस्तकों के प्रकाशन के समर्थन और प्रोत्साहन के लिए आगे नहीं आ रहा था। द ट्राइबल रिसर्च एंड कल्चरल फाउंडेशन ने रचनात्मक लेखन, इतिहास के कार्य, समाजशास्त्र और भारत की जनजातीय संस्कृति आदि से संबंधित कई पुस्तकें प्रकाशित कीं।

हमारी एक समृद्ध लोक विरासत है: गुज्जरों में लोक-गीतों और लोक-कथाओं की समृद्ध परंपरा है। लोक ज्ञान के ये खजाने गिर रहे हैं और समय बीतने के साथ गायब होने की आशंका है। इसलिए, गीतों और कहानियों के लोक खजाने को संरक्षित करने की एक आकस्मिक आवश्यकता थी। इस उद्देश्य को पूरा करने के उद्देश्य से उन्होंने जम्मू और कश्मीर राज्य की सभी प्रमुख जनजातीय भाषाओं की लोक कथाओं और लोक गीतों के संस्करणों का मुद्रण और प्रकाशन किया है।

अधिकांश जनजातीय क्षेत्र लगभग दुर्गम हैं। इन दूर दराज के क्षेत्रों में रहने वाले घुम्मकड़ लेखकों और कलाकारों के पास साहित्यिक परिदृश्य पर बदलते रुझानों के बीच रखने के लिए साधन और पहुंच नहीं थी। राज्य के लेखकों को एक-दूसरे के निकट संपर्क में लाने के लिए, ट्राइबल रिसर्च एंड कल्चरल फाउंडेशन ने मुशायरों, सेमिनारों, साहित्यिक सम्मेलनों, शाम-ए-अफसाना, शाम-ए-गक़ाल और इसके विभिन्न मुख्यालयों में साहित्यिक सम्मेलन आयोजित किए। कार्यालयों और दूरदराज के स्टेशनों पर ये गतिविधियां स्थानीय स्तर, राज्य स्तर और अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित की जाती हैं। ये कार्यक्रम युवा और नवोदित लेखकों को एक-दूसरे के साथ मिलने, सुनने और अंतर-कार्य करने और अपने वरिष्ठों के साथ एक दूसरे के साथ अपने अनुभव साझा करने का अवसर प्रदान करते हैं।

डॉ. जावेद राही ने बताया कि उनका संगठन अमूल्य पांडुलिपियों, लघु चित्रों और अन्य कलाकृतियों को संरक्षित करने में जुटा हुआ है। आभूषणों, वस्त्रों, गुज्जरों के रहन सहन आदि से जुड़ी एवं उनकी जीवन शैली को दर्शाती कई चित्रकला प्रदर्शनियों का भी आयोजन किया। गोजरी के प्रोत्साहन के लिए जावेद राही निरंतर प्रयासरत हैं। स्वयं वह रेडियो से मान्यता प्राप्त कलाकार हैं। वर्षो से गोजरी कार्यक्रम में भाग लेते रहे हैं। जम्मू-कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा में गोजरी के मुख्य संपादक हैं। उनके संपादन में दर्जनों किताबों का प्रकाशन हो चुका है। वह सभी युवाओं को गोजरी भाषा बोलने एवं अपनी संस्कृति से जुड़े रहने के लिए प्रेरित करते हैं। वह कई बच्चों की शिक्षा का जिम्मा भी उठा रहे हैं लेकिन इस पहलू को वह अपने तक ही रखना चाहते हैं। 


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