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Jammu Kashmir: किसी योद्धा से कम नहीं है जम्मू के छन्नी में रहने वाली दिव्यांग जसप्रीत कौर

मंदिरों के शहर जम्मू के छन्नी हिम्मत में रहने वाली दिव्यांग जसप्रीत कौर की जिसे लोग प्यार से प्रीति पुकारते हैं। 35 वर्षीय जसप्रीत शारीरिक रूप से दिव्यांग है। वह बैठ भी नहीं सकती। जसप्रीत कभी स्कूल नहीं गई लेकिन वह पढ़-लिख सकती है। जिंदगी में कभी हार नहीं मानी।

By Vikas AbrolEdited By: Published: Thu, 25 Mar 2021 04:44 PM (IST)Updated: Thu, 25 Mar 2021 04:44 PM (IST)
Jammu Kashmir: किसी योद्धा से कम नहीं है जम्मू के छन्नी में रहने वाली दिव्यांग जसप्रीत कौर
35 वर्षीय जसप्रीत शारीरिक रूप से दिव्यांग है। वह बैठ भी नहीं सकती।

जम्मू, अंचल सिंह। हौसले बुलंद हो तो कोई भी बाधा आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती। फिर चाहे व्यक्ति का शरीर ही क्यों न हो। जी हां, हम बात कर रहे हैं मंदिरों के शहर जम्मू के छन्नी हिम्मत में रहने वाली दिव्यांग जसप्रीत कौर की जिसे लोग प्यार से प्रीति पुकारते हैं। 35 वर्षीय जसप्रीत शारीरिक रूप से दिव्यांग है। वह बैठ भी नहीं सकती। जसप्रीत कभी स्कूल नहीं गई लेकिन वह पढ़-लिख सकती है। उसने जिंदगी में कभी हार नहीं मानी। शरीर का संपूर्ण विकास तो नहीं हुआ, लेकिन भगवान ने उन्हें तेज दिमाग दिया है। यही कारण है कि वह आज सभी के लिए प्रेरणास्रोत है।

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एक ही जगह लेटे हुए वह वे सभी कार्य कर रही है, जो आम आदमी की सोच से परे हैं। जसप्रीत ने मोहल्ला नहीं देखा, पर सारे शहर की खबर रखती हैं। सोशल मीडिया पर सक्रिय रहकर जहां उनका ज्ञान बढ़ा है। कोरोना काल में मुश्किलें से गुजरी जसप्रीत का जन्म 8 मार्च को हुआ है। जान-पहचान वाले ही नहीं मुहल्ले के लोग भी उसे जन्मदिन पर बधाइयां देने पहुंचते हैं। वह वाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया का इस्तेमाल बखूबी कर रही हैं। सोशल मीडिया पर हजारों लोग उनको फॉलो करते हैं। रोजाना कोई न कोई उनसे मिलने भी पहुंचता है। नन्हे हाथों वाली प्रीति को देखकर कोई भी थोड़ी देर के लिए अपने होश गंवा बैठे क्योंकि उन्हें देखकर कोई सोच ही नहीं सकता कि वह 35 वर्ष की हैं।

जीना तो है उसी का, जिसने यह राज जाना। है काम आदमी का, औरों के काम आना... गीत को गुनगुनाते हुए जसप्रीत कहती है कि उसे खुशी है कि दिव्यांग होेते हुए भी वह ऐसे बहुत से काम कर पा रही है जो आम लोग भी नहीं करते। घर में लेटे-लेटे ही फोन से कई दिव्यांग को रास्ता दिखाती है। ऊधमपुर की रहने वाली एक बच्ची को उसने अपने प्रयासों से रूपनगर में नेत्रहीन स्कूल में दाखिला दिलाया। लखनऊ की निधि का हौसला बढ़ाते हुए जसप्रीत ने उसे लैपटाॅप पर काम करने को ही प्रेरित नहीं किया बल्कि स्टार मेकर पर गीत गाकर उसकी आवाज को भी बुलंद किया।

पिता एसआरटीसी से सेवानिवृत्त हैं

प्रीति के पिता मनमोहन सिंह जम्मू-कश्मीर पथ परिवहन निगम (एसआरटीसी) में कंडक्टर थे। करीब दो साल पहले ही वह सेवानिवृत्त हुए। प्रीति का एक छोटा भाई है। छह वर्ष पहले मां की मृत्यु हो चुकी है। तब से प्रीति को जिंदगी ने बहुत कुछ सिखाया। जिंदगी और मौत से जूझते हुए वह कई बार हतोत्साहित हुई, लेकिन फिर हौसला बुलंद कर आगे बढ़ती गईं। वह अपने अंदाज में जिंदगी को जीने लगी।

अब लोगों को रास्ता दिखा रहीं

सोशल मीडिया पर सक्रिय होने के बाद कई संस्थाएं, समाज सुधारक व अच्छे लोग उनसे जुड़े। प्रीति अपने नन्हें हाथों से मालाएं भी बनाती है। इतना ही नहीं उसे लिखने का भी शौक है। उसके छोटी-छोटी कविताएं भी लिखी हैं। कई कार्यक्रमों में वह भाग लेती है और इन कविताओं को अपने अंदाज में पेश करती है। वह कोलकाता, राजस्थान, दिल्ली में भी कार्यक्रमों में भाग लेकर अपनी प्रतिभा दिखा चुकी है। जसप्रीत कुछ संस्थाओं के साथ विभिन्न कार्यक्रमों का हिस्सा बन चुकी हैं।

गरीब परिवार से जसप्रीत

जसप्रीत एक माध्यम वर्गीय परिवार से है। घर परिवार का खर्च भी मुश्किल से चलता है। कुछ दानी पुरुष व संस्थाएं कभी-कभार जसप्रीत की मदद को हाथ बंटाते रहते हैं। चलने-फिरने से लाचार जसप्रीत कहती है कि कोरोना महामारी के बीच वर्ष 2020 के सात-आठ महीने बहुत मुश्किल भरे रहे। वह घर में बंद कमरे में रहीं। घर का भी सिर्फ एक सदस्य ही कमरे के अंदर आता था ताकि वह सुरक्षित रहें। कहीं से कोई वायरस उस तक न पहुंचे। अब हालात सामान्य होने और जम्मू-कश्मीर में 4जी सेवा बहाल होने से जसप्रीत बहुत खुश हैं। अब वह फोन पर लगी रहती हैं।

स्टार मेकर पर बनाया पार्टी रूम

जस्रपीत स्टार मेकर पर गाने भी गाती है। उसका पसंदीदा भजन 'ओ पालन हारे, र्निगुण और न्यारे, तुझ बिन अपना कोई नहीं..' है। उसका कहना है कि स्टार मेकर पर 100 से ज्यादा दोस्त बन चुके हैं। उसने इस पर अपना पार्टी रूम आओ गाओ मस्त रहो बनाया है जो किसी भी हाल में खुश रहने को प्रेरित करता है। काेरोना काल से वह स्टार मेकर पर सक्रिय है। वह कहती हैं कि इंसान कोई हार नहीं माननी चाहिए। शरीर से दिव्यांग कोई मायने नहीं रखता। इंसान का दिमाग और भावना ठीक होनी चाहिए।


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