आर्थिक रूप से पिछड़े और असहाय विद्यार्थियों को निशुल्क शिक्षा देना बहुत सुकून देता
डॉ. बलजीत कहते कि चालीस वर्षो के पढ़ाने के सफर को मुड़ कर देखता हूं तो अत्यंत प्रसन्नता होती। आत्मिक संतोष मिलता कि अध्यापक बनने का निर्णय गलत नहीं था।
जम्मू, सतनाम सिंह। ज्ञान बांटकर दूसरों की जिंदगी से अंधकार मिटाने से बढि़या और कोई नेक कार्य नहीं है। मैं जब आर्थिक रूप से पिछड़े बच्चों को पढ़ाता हूं और वे अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो उनके चेहरों पर खुशी देख आत्मविभोर हो जाता हूं। यह कहना है डॉ. बलजीत सिंह का। उन्होंने कभी पैसे को प्राथमिकता नहीं दी। उनसे पढ़कर बच्चे आज अहम पदों पर हैं।
डॉ. बलजीत कहते हैं कि आज जब लगभग चालीस वर्षो के पढ़ाने के सफर को मुड़ कर देखता हूं तो अत्यंत प्रसन्नता होती है। इससे आत्मिक संतोष मिलता है कि अध्यापक बनने का निर्णय गलत नहीं था। जम्मू संभाग के मौजूदा डिवीजनल कमिश्नर संजीव वर्मा, एसपी नासिर खान, पुलिस विभाग के अजय भट्ट, धीरज नागपाल, रंजीत सिंह, फुटबॉल खिलाड़ी गुरमीत सिंह, विवास्वन साहनी, रोहित कलोत्रा, क्रिकेटर रंजीत बाली, प्रदीप बाली, अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी उज्ज्वल गुप्ता के अलावा हमारे कई ऐसे विद्यार्थी हैं जो देश-विदेश की बहुराष्ट्रीय कंपनियों में कार्यरत हैं।
डॉ. गुरमीत सिंह, डॉ. मनदीपसिंह, डॉ. रजनी सिंह और न जाने कितने विद्यार्थी इंग्लैंड में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।श्रीनगर में जन्मे डॉ. बलजीत सिंह ने वहीं के खालसा हाई स्कूल, डीएवी हायर सेकेंडरी स्कूल और एसपी कॉलेज से स्नातक की उपाधि ली। वर्ष 1977 में संयुक्त राष्ट्र में स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के हिंदी में दिए गए भाषण से प्रभावित होकर लॉ विभाग में दाखिले को छोड़ कश्मीर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से एमए करने की ठानी।
इसके बाद एमफिल और 'नई कहानी में सांस्कृतिक चेतना' विषय पर पीएचडी की। वर्ष 1984 में हिंदी में पीएचडी करने वाले राज्य के पहले सिख विद्यार्थी होने का उन्हें गौरव प्राप्त हुआ। पठन-पाठन में रूचि ने अध्यापक बनने के लिए प्रेरित किया। पहले कुछ वर्ष कश्मीर विश्वविद्यालय में अध्यापक के रूप में कार्य करने के बाद जम्मू के दीवान बद्रीनाथ विद्या मंदिर में पढ़ाना शुरू किया। वर्ष 2015 में प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद निट विद्यालय में अंग्रेजी विषय के प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं।
डॉ. बलजीत कहते हैं कि आर्थिक रूप से पिछड़े और असहाय विद्यार्थियों को निशुल्क शिक्षा देने का काम जो अपने पिता स्वर्गीय तेजा सिंह से सीखा था, उस पर आज भी अमल करता हूं। साहित्य में रूचि ने कहानी और कविता लिखने के लिए भी प्रेरित किया। डॉ. बलजीत भावुक होते हुए कहते हैं कि आज युवा पीढ़ी में सामाजिक मूल्यों में कमी के पीछे कुछ अध्यापकों की धन लोलुपता और स्वार्थ छिपा है। पांच सितंबर को शिक्षक दिवस पर अध्यापक वर्ग को देश निर्माण और मानव सेवा के संकल्प को फिर से दोहराने की जरूरत है।