रैका के जंगलों की पुकार: जंगलों की कटाई, सेहत पर पड़ रही भारी, लोगों की जिंदगी लग रही दांव पर
जम्मू संभाग का कुल क्षेत्रफल 26293 वर्ग किलोमीटर है। इसमें 12066 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है। यह कुल क्षेत्र का 45.89 फीसद है। राष्ट्रीय औसत में वन क्षेत्र सिर्फ 24.47 फीसद है।
जम्मू, रोहित जंडियाल। जम्मू कश्मीर में पेड़ों के काटने और उद्योग स्थापित होने से कुछ सालों में प्रदूषण की समस्या बढ़ी है। इसका समाधान न करने से प्रदूषण का असर लोगों की सेहत पर भी पड़ रहा है। लोग सांस संबंधी समस्याओं से लेकर कैंसर व अन्य कई रोगों से पीडि़त हो रहे हैं।
जम्मू संभाग का कुल क्षेत्रफल 26,293 वर्ग किलोमीटर है। इसमें 12,066 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है। यह कुल क्षेत्र का 45.89 फीसद है। राष्ट्रीय औसत में वन क्षेत्र सिर्फ 24.47 फीसद है। ऐसे में देखा जाए तो जम्मू संभाग में वन क्षेत्र लगभग दोगुना है। इस वन क्षेत्र में देवदार, चीड़, कैल और फर के पेड़ करीब 34 फीसद वन बनाते हैं, लेकिन धीरे-धीरे वनों की कटाई हो रही है। विकास कार्यों के लिए छह महीने में ही 60 से अधिक परियोजनाओं को वन सलाहकार समिति ने मंजूरी दी है। यही नहीं आतंकवाद के कारण जंगलों में अंधाधुंध कटाई हुई है। इससे जम्मू संभाग के पहाड़ी क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। हालांकि अभी जम्मू में प्रदूषण स्तर बहुत खतरनाक नहीं है, लेकिन इसका असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। लोग विभिन्न प्रकार के रोगों से पीडि़त हो रहे हैं।
जम्मू के चेस्ट डिजिजेस अस्पताल के एचओडी डॉ. राहुल गुप्ता का कहना है कि अभी जम्मू में प्रदूषण का स्तर अधिक नहीं है, जिस कारण बहुत अधिक मरीज प्रदूषण के कारण अस्पताल में नहीं आते हैं, लेकिन अगर अधिक पेड़ कटना शुरू हो जाएं तो निश्चित रूप से इसका असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ेगा। वायु प्रदूषण से सांस संबंधी समस्या सबसे अधिक आती है। सांस लेते समय कई बार हवा में फैले खतरनाक सूक्ष्म कण शरीर में चले जाते हैं। इससे दमा, खांसी, फेफड़े का कैंसर होने की आशंका रहती है। यही नहीं त्वचा में एलर्जी और आंखों में जलन की भी आशंका रहती है। पिछले कुछ समय से सांस संबंधी रोग अस्पतालों में बढ़े हैं, लेकिन प्रदूषण की समस्या का स्थायी समाधान हो तो बीमारी नहीं रहती।
कम हो सकती है औसत आयु
देश में लोगों की औसत आयु 69 साल है। सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे 2013-17 के आंकड़ों के अनुसार पुरुषों की औसत आयु 67.8 वर्ष है, जबकि महिलाओं की 70.4 वर्ष है। जम्मू कश्मीर में महिलाओं की औसत आयु 71.8 साल और पुरुषों की 68.3 वर्ष है। यह राष्ट्रीय औसत से अधिक है। इसके पीछे जम्मू कश्मीर के लोगों की जीवन शैली और अच्छा पर्यावरण होना भी है, लेकिन डॉक्टर भी मानते हैं कि अगर पर्यावरण के साथ खिलवाड़ होता रहा तो औसत आयु राष्ट्रीय औसत से भी कम हो सकती है। आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. अशोक शर्मा का कहना है कि अच्छा पर्यावरण लोगों के स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है। अगर प्रदूषण अधिक होगा तो सेहत खराब होगी। इसलिए अपने आसपास पेड़ लगाने चाहिए और हरियाली को बढ़ावा देना चाहिए।
पेड़ों की कटाई व औद्योगिक इकाइयां लगने से प्रदूषित हो रही हवा
वायु प्रदूषण बढऩे का एक प्रमुख कारण लगातार पेड़ों की कटाई भी है। पेड़ कार्बन डाईऑक्साइड लेकर ऑक्सीजन छोड़ते हैं, लेकिन पेड़ों की कटाई होने से हवा लगातार प्रदूषित हो रही है। इसी से सांस संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं। लगातार औद्योगिक इकाइयां लगने से भी हवा प्रदूषित हो रही है। वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। जम्मू के गंग्याल, सांबा के बड़ी ब्राह्मणा, कठुआ की घाटी, ऊधमपुर के बट्टल बालियां में प्रदूषण की समस्या बढ़ी है। इन उद्योगों से निकलने वाले धुएं में सल्फर डाईऑक्साइड की मात्रा होने से त्वचा कैंसर होने की संभावना रहती है।
बट्टल वालियां में अधिकांश लोग थे प्रभावित
जम्मू के श्रेय भट अस्पताल ने कुछ साल पहले ऊधमपुर के औद्योगिक क्षेत्र बट्टल वालियां में एक सर्वे किया था। इस सर्वे में क्षेत्र में रहने वाले अधिकांश लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित था। हालांकि अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में आज तक कोई विशेष सर्वे तो नहीं हुआ है, मगर डॉक्टरों का कहना है कि औद्योगिक क्षेत्रों से निकलने वाले जहरीले धुएं और रसायनों के कारण बीमारियां होती हैं। हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. सुशील शर्मा का कहना है कि प्रदूषण के कारण सांस संबंधी समस्याओं के अलावा हृदय रोग भी अधिक होते हैं।
सांबा में बढ़े हैं कैंसर के मामले
सांबा जिले में कई उद्योग स्थापित होने के बाद इस जिले में कैंसर के मामले बहुत बढ़े हैं। पिछले पांच साल में इस जिले में कैंसर के करीब सौ मामले मिले हैं। हालांकि इसके पीछे के कारणों का हवाला नहीं दिया गया है, लेकिन डॉक्टर मानते हैं कि जिस तरह हवा से लेकर पानी और मिट्टी तक में प्रदूषण बढ़ रहा है, उससे कैंसर सहित कई रोग हो रहे हैं। कैंसर विशेषज्ञ डॉ. दीपक अबरोल का कहना है कि पर्यावरण को स्वच्छ बनाकर और पारंपरिक जीवनशैली अपनाकर कैंसर से बचा जा सकता है।