पेड़ कटवाकर चमका रहे इंसानों के लिए पार्क, भौर कैंप में पार्क के लिए 200 पेड़ों की बलि
यह जंगल यह पेड़ रातो रात नही बनते। बरसों का पालनहार होने के बाद पेड़ परिपक्क होते हैं। अगर कहीं भांति भांति के पेड़ हो तो सोने पर सौहागा जीव जंतुओं का भी काम निकल अाया और इंसान को भी दो पल स्कून के लिए हरियाली नसीब हुई।
जम्मू , जागरण संवाददाता। यह जंगल, यह पेड़ रातो रात नहीं बनते। बरसों का पालनहार होने के बाद पेड़ परिपक्क होते हैं। अगर कहीं भांति भांति के पेड़ हो तो सोने पर सौहागा, जीव जंतुओं का भी काम निकल अाया और इंसान को भी दो पल स्कून के लिए हरियाली नसीब हुई। यही नहीं जरूरत का समान भी तो मिला। यहीं वातावरण था भौर कैंप में जहां कुछ साल पहले तकरीबन 230 कनाल भूमि गार्डन बनाने के अधीन आ गई। फिर बना पार्क बनाने का खाका, कहीं झील तो कहीं बच्चों के झूले लगाने की योजना बनी, कहीं फूल लगाने हैं तो कहीं रोज गार्डन बनाना है।
अच्छी बात , सबने सराहना की क्योंकि आज के दौर में पार्क इंसान के लिए बहुत जरूरी हैं। मगर पेड़ों की बलि चढ़ाकर पार्क बनेगा, ऐसी तो मनोकामना किसी ने नही की थी। चूंकि यह क्षेत्र घना जंगल था और कुछ कुछ पेड़ हटाने की मजबूरी को तो पर्यावरणविद् समझ सकते हैं मगर पार्क के लिए पूरा जंगल ही काट दिया जाएगा, यह किसी ने नही सोचा था। भौर कैंप गार्डन को अति आधुनिक बनाने और विदेशी सजावटी पौधों को यहां लहलहा कर वाहवाही पाने के चक्कर मेे दो सौ से अधिक देसी पेड़ों की बलि चढ़ा दी गई। इसमें कीकर, शीशम, बैर आदि प्रमुख हैं। पार्क में बने पाथ से ताे पेड़ों को हटवा ही दिया मगर वहीं पाथ से बाहर लगे पेड़ भी कट गए। भौर कैंप गार्डन यहां पहले घना जंगल होने के कारण कोई घुस नही सकता था, आज पेड़ों से खाली खाली है। महज दस बीस फीसद पेड़ ही यहां बाकी रह गए हैं और उनका नंबर भी जल्दी आने वाला है।
हालांकि फ्लोरिकल्चर विभाग काटे गए पेड़ों की भरपाई में नए पौधे लगाने की बात कह रहा है मगर यह पौधे विदेशी नस्ल के हैं जोकि सजावट के लिए हैं। इनकी तुलना किसी भी हाल से देसी पेड़ों के साथ नही की जा सकती। इन्ही देसी पेड़ों के कारण भौर कैंप गार्डन के इसी क्षेत्र में नायाब परिंदों को कई बार देखा गया है। ईंट कोहरी फाख्ता जोकि चुनिंदा जगह पर ही बेसरा बनाता है, अक्सर भौर कैंप में नजर आया मगर अब यहां नजर नही आता।
नाराज हैं पर्यावरणविद्
पर्यावरणविद् मंजीत सिंह का कहना है कि आज देश में इको टूरिज्म पर जोर दिया जा रहा है। यानि कि प्रकृति से छेड़छाड़ किए बिना ही लोगों के लिए पार्क बाग बनाए जाते हैं। बैठने के लिए स्थान भी लकड़ी या मिट्टी के बनते हैं। पक्के ढांचे नही बनाए जाते। जंगल को छेड़े बिना ही प्राकृतिक वातावरण में पार्क बनाए जाते हैं। इसी इको टूरिज्म पर काम होता तो भौर कैंप गार्डन में पेड़ों को काटने से रोका जा सकता था। यानि पेड़ भी नही कटते और पार्क में फूल भी सजते, बच्चों के झूले भी लगते। लेकिन भौर कैंप में महज पार्क की खूबसूरती की तरफ ही ध्यान रखा गया है।
मीरां साहिब के समाज सेवक किशोर कुमार का कहना है कि भारत की भूमि पर देसी पेड़ ही बेहतर हैं क्योंकि यह कई तरह के फल फूल उपलब्ध कराते हैं जोकि पक्षियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। मगर सजावटी पेड महज देखने में अच्छे लगते हैं। न ही इसकी छाया होती है और न ही फल लगते हैं। दरअसल भारतीय भूमि पर विदेशी पौधों को तो वैसे भी लगाने से परहेज करना चाहिए। अच्छा होता हम कम से केम पेड़ पार्क में नष्ट करते और उसके बदले में भारतीय पेड़ ही लगाते। पार्क बनाना अच्छी बात है मगर पार्क के लिए पेड़ों को बर्बाद कर देना अच्छी बात नही।
देसी पेड़ लगवाए जायेंगे
फ्लोरिकल्चर विभाग के असिस्टेंट फ्लोरिकल्चर आफिसर इश्तेयाक अहमद मलिक का कहना है कि काटे गए पेड़ों की भरपाई की जाएगी। क्योंकि गार्डन में देसी किस्म के पेड़ लगाने की भी योजना है और इसके लिए पूरी तैयारी कर ली गई है। जल्दी ही पौधे लगाने का काम आरंभ होगा। गार्डन लोगों के लिए ही बनाया जा रहा है। इसे बेहद आकर्षक बनाया जाएगा। हां कुछ पेड़ काटना विभाग की मजबूरी थी मगर इसके बदले में दूसरे पेड़ लगाए जायेंगे।