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Kashmir Royal Cumin: पुलवामा की फिजा में केसर के साथ शाही जीरे की सुगंध, प्रति किलो कीमत 5000 से 5200 रुपये तक

विवि ने एडवांस्ड रिसर्च स्टेशन फार सेफरान एंड सीड स्पाइसेज के बैनर तले वर्ष 2018 में पुलवामा में केसर उत्पादकों को खेतों में शाही जीरा उगाने के लिए प्रेरित करना शुरू कर दिया था। आज दर्जनों किसानों ने शाही जीरा उगाना शुरू कर दिया है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Fri, 23 Oct 2020 06:46 PM (IST)Updated: Fri, 23 Oct 2020 06:52 PM (IST)
Kashmir Royal Cumin: पुलवामा की फिजा में केसर के साथ शाही जीरे की सुगंध, प्रति किलो कीमत 5000 से 5200 रुपये तक
शाही जीरा केवल पहाड़ी क्षेत्रों में उगता है।

श्रीनगर, रजिया नूर: केसर के लिए मशहूर दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा जिले की फिजा में केसर की सुगंध के साथ शाही जीरे की खुशबू भी घुली है। किसान अब केसर के अलावा शाही जीरे की खेतीबाड़ी को तरजीह दे रहे हैं। शाही जीरे की राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बाजार में काफी मांग है।

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दरअसल, किसानों को आत्मनिर्भर बनाने और शाही जीरे की पहाड़ी के साथ मैदानी क्षेत्रों में खेतीबाड़ी करने की मुहिम शेर-ए-कश्मीर कृषि विश्वविद्यालय (स्कॉस्ट) कश्मीर ने शुरू की है। उन्होंने पुलवामा क्षेत्र को चुना और तीन वर्ष पहले केसर के संग शाही जीरा उगाने की छेड़ी मुहिम रंग लाई। विवि ने एडवांस्ड रिसर्च स्टेशन फार सेफरान एंड सीड स्पाइसेज के बैनर तले वर्ष 2018 में पुलवामा में केसर उत्पादकों को खेतों में शाही जीरा उगाने के लिए प्रेरित करना शुरू कर दिया था। आज दर्जनों किसानों ने शाही जीरा उगाना शुरू कर दिया है।

रिसर्च स्टेशन के एचओडी डॉ. बशीर अहमद इलाही ने कहा कि पुलवामा का सेफरान टाउन पांपोर हो या दूसरा कोई और क्षेत्र पर्यटकों का तांता रहता है। इसे देख शाही जीरा जैसा महंगा मसाला उगाने की योजना बनाई।

कैसे होती है खेतीबाड़ी : पहाड़ी इलाकों में अमूमन काला या शाही जीरा खुद ही उग आता है। बहुत कम जगहों पर इसकी खेती होती है। घाटी के गुरेज में इसकी खेतीबाड़ी की जाती है, लेकिन पैदावार न बराबर होती है। इसका बीज लगाने के बाद इसका ट्यूबर निकलता है जिसमें चार साल लग जाते हैं। ट्यूबर निकलने के बाद उत्पादकों को उगाने में अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती। उत्पादक प्रति वर्ष सितंबर-नवंबर में ड्यूबर को बो सकते है। मार्च-अप्रैल में इसकी कोंपलें फूटती हैं और जून में फसल (जीरा) तैयार हो जाती है।

मैदानों में भी उगाया जा सकता है शाही जीरा: पहले कहा जाता था कि शाही जीरा केवल पहाड़ी क्षेत्रों में उगता है। गुरेज और चरार शरीफ (कश्मीर के दोनों पहाड़ी क्षेत्र) और जम्मू के किश्तवाड़ व पाडर में इसका उत्पादन होता है। शेर-ए कश्मीर कृषि विश्विवद्यालय ने जीरे को मैदानी इलाकों में उगाने का फैसला किया। एडवांस्ड रिसर्च स्टेशन फार सेफरान एंड सीड स्पाइसेज के एचओडी डॉ. बशीर अहमद इलाही ने कहा कि हमारे साथ यह किसानों के लिए भी चुनौती थी। किसानों को समझाया कि वे केसर के खेतों में भी इसकी खेतीबाड़ी कर सकते हैं। उन्हें रिसर्च सेंटर पर बुला शाही जीरा उगाने संबंधित उन्हें जानकारी दी।

केसर के सभी खेतों में लहलहाएगा शाही जीरा: डॉ. बशीर ने कहा कि पुलवामा जिले में चार हजार हेक्टेयर जमीन में केसर उगाई जाती है। हमारी कोशिश है कि जिले के सभी खेतों में किसान केसर के साथ शाही जीरे की भी खेतीबाड़ी करें। खुशी है कि किसान खेतों में इसे उगाने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं।

दूसू और वुयन गांव में नर्सरियां : जिले के दूसू और वुयन में शाही जीरे की नर्सरियां लगाई गई हैं। 10-10 मरले पर शाही जीरे की नर्सरियां लगाई हैं। नर्सरिर्यों में उग आने वाले जीरे के ट्यूबर्स किसानों में बांटे जाएंगे। नर्सरी के मालिक अब्दुल रशीद ने कहा कि 2018 में हमें रिसर्च स्टेशन ने बीज दिए थे। अब हमें एक साल और इंतजार करना है। अगले साल हमारी नर्सरी तैयार होगी और हम जीरे के ट्यूबर्स बाकी किसानों में बांटेंगे। युवन में जीरे की नर्सरी लगाने वाले अब्दुल मजीद ने कहा कि मेरे 14 कनाल जमीन पर केसर की खेती है। मैं आराम से केसर की खेती संभालता हूं और यह नर्सरी भी। नर्सरी तैयार होते ही मैं खेत में जीरा उगाऊंगा।

कई इलाकों में बोए गए शाही जीरे के बीज: पुलवामा जिले के पांपोर, मेज, लधू, ख्रिव शार, दुसू, पोखरीबल और वुयन में दर्जनों केसर उत्पादकों ने खेतों में शाही जीरे के बीज लगाए हैं। वह इसके ट्यूबर्स तैयार होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। सेफरान एसोसिएशन ऑफ कश्मीर के अध्यक्ष अब्दुल मजीद भट ने कहा कि हमें पता है कि शाही जीरा केसर के टक्कर का मसाला है। इसमें अधिक मेहनत की दरकार नहीं है। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बाजार में केसर की तरह हमारे शाही जीरे की काफी मांग है।

पानी की नहीं होती है अधिक दरकार, मेहनत भी कम: शाही जीरा भले ही महंगा मसाला है लेकिन इसे उगाने के लिए मेहनत की दरकार नहीं होती है। बस इसका बीज उगाने के बाद उत्पादक को चार वर्ष का इंतजार करना पड़ता है। चार वर्ष के बाद इसका ट्यूबर्स फसल देना शुरू कर देता है। ट्यूबर्स बनने के बाद हर वर्ष सितंबर व अक्तूबर में इसकी बुआई करनी होती है। मार्च-अप्रैल में इसकी कोंपलें फूटती हैं और फिर जून में शाही जीरे की फसल तैयार होती है। केसर की तरह इसके लिए पानी की दरकार नही होती है। खेत में जीरा उगाने का प्रयास करने वाले हाजी असलम ने कहा कि एक मरला जमीन से ढाई किलो जीरा उगाया जा सकता है यानी 10 से 12 हजार रुपये आपकी जेब में आराम से आ सकते है।

क्यों खास होता है कश्मीर का शाही जीरा: कश्मीरी शाही जीरे का रंग काला होता है। लिहाजा इसे काला जीरा भी कहा जाता है। सफेद जीरे की तुलना में इस जीरे में आवश्यक की मात्रा आठ प्रतिशत होती है जबकि सफेद जीरे में यह मात्रा केवल 1 या 2 प्रतिशत होता है। आवश्यक तेल अधिक मात्रा में मौजूद होने के चलते काला या शाही जीरे की खुशबू भी तेज होती है। इसका इस्तेमाल व्यंजनों का स्वाध बढ़ाता है। इतना ही नहीं इसका औषधीय मूल्य सफेद जीरे से अधिक होता है। यह विभिन्न दवाइयों में कास्मेटिक में इस्तेमाल होता है। बाजार में प्रति किले शाही जीरे की कीमत 5000 रुपये से 5200 रुपये तक होती है। सफेद जीरा प्रति किलो सात से 800 में मिलता है। 


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