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फारूक ने कहा, वह मेरे लिए मददगार नहीं खुदा के भेजे फरिश्ते निकले

तेरे खून में मिले मेरा खून तुझे जिंदगी मिले मुझे सुकून। सीआरपीएफ के जवान ने अपना खून देकर बचाई नवजात की जिंदगी ।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 16 Mar 2019 09:37 AM (IST)Updated: Sat, 16 Mar 2019 10:06 AM (IST)
फारूक ने कहा, वह मेरे लिए मददगार नहीं खुदा के भेजे फरिश्ते निकले
फारूक ने कहा, वह मेरे लिए मददगार नहीं खुदा के भेजे फरिश्ते निकले

जम्मू, नवीन नवाज। श्रीनगर के जीबी पंत अस्पताल आधी रात के बाद दो बजे के समय बेटा पैदा होने की खुशी में चहक रहा फारूक अहमद डार के चेहरे पर हवाईयां अचानक उडऩे लगी। डॉक्टरों ने बताया कि नवजात के खून में कुछ पीला रंग नजर आ रहा है। खून बदलना पड़ेगा नहीं तो उसे बचाया नहीं जा सकेगा।

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श्रीनगर में उसका कोई रिश्तेदार भी नहीं था। वह तो करीब तीन घंटे पहले ही बारामुला अस्पताल से अपनी बीवी और नवजात को एंबुलेंस में लेकर यहां पहुंचा था। उसे समझ में नहीं आया कि क्या करे। पुलिस में एसपीओ फारूक ने तुरंत 100 नंबर पर डायल किया, लेकिन किसी ने नहीं उठाया। डॉक्टर उसे बोल रहे थे कि खून का जल्दी से बंदोबस्त करो।

फारूक ने बताया कि बस मैं खुदा से दुआ कर रहा था कि मेरी मदद कर। अचानक मुझे सीआरपीएफ की हेल्पलाइन मददगार की याद आई। बस मैंने तुरंत फोन किया। फोन उठा तो मैंने यह भी नहीं पूछा कौन बोल रहा है। बस कहा कि मददगार की जरूरत है। मेरा बच्चा मुश्किल में है। उसे बचाने के लिए ओ-नेगेटिव खून चाहिए। जल्दी करो। दूसरी तरफ जो था, उसने तसल्ली देते हुए कहा कि घबराओ नहीं। बताओ कहां आना है, कितने प्वाइंट ब्लड चाहिए। मैंने तुरंत अस्पताल पता और बाकी डिटेल दे दी। इसी दौरान सुबह हो गई।

बाबूलाल के रक्तदान से बचा मेरा बेटा :

सूरज निकलते ही सीआरपीएफ के जवान अस्पताल पहुंचे। डॉक्टरों ने एक ही जवान से कहा कि वह खून दे। उसका नाम बाबूलाल था। उसके रक्तदान से मेरा बेटा बच गया। सीआरपीएफ वालों ने मुझे कहा है कि अगर और जरूरत पड़े तो फोन कर देना और जवान आ जाएंगे। उन्होंने दवाएं भी उपलब्ध कराने की बात की।

सीआरपीएफ वालों ने नहीं देखा कि मैं कश्मीरी हूं या पुलिसकर्मी 

नियंत्रण रेखा से सटे उड़ी सेक्टर में लिंबर गांव के रहने वाले फारूक अहमद ने कहा कि मैं पुलिस में बतौर एसपीओ काम करता हूं, लेकिन मेरी मदद सीआरपीएफ ने की है। सीआरपीएफ वालों ने यह नहीं देखा कि मैं कश्मीरी हूं या पुलिसकर्मी। बस उन्होंने सिर्फ इंसानियत दिखाई। मेरे लिए यह मददगार नहीं खुदा के भेजे फरिश्ते हैं। मेरे दो बच्चे हैं, एक बेटी-एक बेटा। खुदा ने चाहा तो मैं अपने बेटे को भी सीआरपीएफ में ही भेजूंगा।

हम यहां आम कश्मीरियों के लिए ही तो हैं 

सीआरपीएफ की मददगार हेल्पलाइन के प्रभारी जुनैद खान ने बताया कि हमने कुछ खास नहीं किया। यह हमारा फर्ज है। हम यहां आम कश्मीरियों के लिए ही तो हैं। हमें जब फारूक डार का फोन आया तो उसी समय सभी यूनिटों में सूचित कर दिया कि ओ-नेगेटिव ब्लड चाहिए। बस फिर क्या था, कई जवान और अधिकारी तैयार हो गए। लेकिन यह सौभाग्य 117वीं वाहिनी के बाबूलाल को प्राप्त हुआ।

हमें समय रहते पता चल गया नहीं तो जिंदगी भर दुख रहता 

बाबूलाल ने कहा कि साहब रक्तदान-महादान है। मैं भी बाल-बच्चों वाला हूं। मुझे पता है कि बच्चे की तकलीफ बाप के लिए क्या होती है। चलो अच्छा हुआ, हमें समय रहते पता चल गया नहीं तो जिंदगी भर यही दुख रहता कि काश मैं समय पर पहुंच जाता तो वह बच जाता। गौरतलब है कि सीआरपीएफ ने 2017 में कश्मीर घाटी में आम लोगों से समन्वय बनाए रखने और मुसीबत में फंसे लोगों की मदद के लिए 24 घंटे क्रियाशील रहने वाली हेल्पलाइन सेवा मददगार शुरू की है।


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