Kashmiri Pandits : कश्मीरी पंडितों को शैक्षणिक लाभ के निर्देश, कहा- कानून के दायरे में रहकर गौर करें
कश्मीर में रह रहे कश्मीरी पंडितों को शैक्षणिक लाभ देने की मांग की है। इस पर चीफ जस्टिस पंकज मित्थल व जस्टिस विनोद चटर्जी ने जम्मू कश्मीर के मुख्य सचिव को याचिका में उठाई गई मांग पर कानून के दायरे में रहकर गौर करने का निर्देश दिया।
जम्मू, जेएनएफ : हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने प्रदेश प्रशासन को कश्मीर में रह रहे कश्मीरी पंडितों को शैक्षणिक लाभ देने पर गौर करने का निर्देश दिया है।
कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति की याचिका में कश्मीर में रह रहे कश्मीरी पंडितों को शैक्षणिक लाभ देने की मांग की है। इस पर चीफ जस्टिस पंकज मित्थल व जस्टिस विनोद चटर्जी ने जम्मू कश्मीर के मुख्य सचिव को याचिका में उठाई गई मांग पर कानून के दायरे में रहकर गौर करने का निर्देश दिया। बेंच ने कहा कि अगर याची चाहे तो अपनी मांग दो सप्ताह के भीतर स्वयं भी मुख्य सचिव के सामने रख सकते हैं।
जनहित याचिका में कहा गया कि उच्च शिक्षा के लिए केंद्र व प्रदेश अल्पसंख्यक कोटे तथा एससी-एसटी कोटे में देश भर के कालेजों में आरक्षण दिया जाता है। कश्मीर घाटी से विस्थापित होकर जम्मू समेत देश के अन्य शहरों में बसे युवाओं को भी उच्च शिक्षा के लिए व्यवसायिक कालेजों में आरक्षण दिया गया है, लेकिन जो कश्मीरी पंडित कश्मीर में ही रह रहे हैं, उन्हें किसी तरह का आरक्षण नहीं मिल रहा। जनहित याचिका में विस्थापित कश्मीरी पंडितों को दिए जाने वाले आरक्षण का लाभ कश्मीर में रहने वाले कश्मीरी पंडितों को दिए जाने की मांग की गई है।
अनुपालन रिपोर्ट पेश न होने की सूरत में आयुक्त सचिव को पेश होने के निर्देश : हाईकोर्ट के आदेश का पालन न किए जाने पर मोहन लाल की ओर से दायर अवमानना याचिका पर गौर करने के बाद हाईकोर्ट ने वन विभाग के आयुक्त सचिव को चार सप्ताह के भीतर अनुपालन रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि अनुपालन रिपोर्ट पेश न किए जाने की सूरत में आयुक्त सचिव अगली सुनवाई पर स्वयं पेश होकर स्थिति स्पष्ट करें। केस के मुताबिक वर्ष 2012 में हाईकोर्ट ने याची को उसके पद पर स्थायी करने का निर्देश दिया था।
याची के जूनियर कर्मचारियों को चार साल पहले स्थायी किया गया था और हाईकोर्ट ने कहा था कि याची को भी उसी दिन से स्थायी करते हुए सभी लाभ दिए जाए। याची मोहन लाल ने अवमानना याचिका दायर करते हुए कहा कि स्पष्ट निर्देश के बावजूद उसकी सेवाओं को स्थायी नहीं किया गया। हाईकोर्ट ने पाया कि इस मामले में पहले भी विभाग को अनुपालन रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया गया है लेकिन विभाग ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। लिहाजा चार सप्ताह के भीतर अनुपालन रिपोर्ट पेश की जाए या फिर वन विभाग के आयुक्त सचिव स्वयं पेश होकर स्थिति स्पष्ट करें।