Coronavirus Effect: जिंदगी के अंतिम सफर में चिता से उठवा दिया शव, संवेदनहीनता के आगे प्रशासन भी हुआ लाचार
क्या कोरोना ने संवेदनाओं को मार दिया है कोरोना पीड़ित बुजुर्ग के शव का लोगों ने शमशानघाट में नहीं होने दिया अंतिम संस्कार आखिर तवी के किनारे चिता को दी आग
जम्मू, रोहित जंडियाल। कोरोना के संक्रमण काल ने क्या रिश्तों के मायने बदल दिए? क्या इस महामारी ने लोगों की संवेदनाओं को जला दिया? अज्ञानता इतनी हावी कि शव का अंतिम संस्कार तक न करने दें। यहां तक कि शव को चिता से उठवा दें। यह तो समाज के लिए संवेदना शून्य होने से भी बदतर स्थिति है। यह सब कल्पना भरी कहानी में नहीं हुआ, बल्कि जम्मू शहर में सोमवार की सुबह हकीकत में हुआ।
यहां कोरोना संक्रमित की मौत के बाद अंतिम संस्कार के लिए शव को चिता से उठवा दिया गया। जिन लोगों ने ऐसा कराया, वह लाख समझाने के बावजूद वह नहीं पसीजे। इस संवेदनहीनता के आगे प्रशासन तक लाचार हो गया। जम्मू कश्मीर में ऐसा एक बार नहीं, बल्कि पिछले कुछ सप्ताह में बार-बार देखने को मिला है। कोरोना संक्रमण के चंद घंटों बाद सोमवार को जिंदगी को अलविदा कहने वाले डोडा के 70 वर्षीय वृद्ध भी उनमें से एक है। जब तक वही जीवित रहे ऐसा कभी सोचा भी नहीं होगा कि मौत के बाद उनके शव के अंतिम संस्कार के लिए एक-जगह से दूसरी जगह भटकना होगा। उनके शव को बेशक उनके अपनों के चार कंधे नसीब नहीं हुए, लेकिन शव को चिता से उठाना पड़ेगा यह किसी ने भी नहीं सोचा था।
जम्मू शहर के दोमाना क्षेत्र में शमशान घाट पर सुबह-सुबह उनके शव को अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया। शव को चिता पर रख दिया गया। बस मुखाग्नि देना बाकी था। इसी बीच शमशानघाट पर समाज के कुछ ऐसे लोग जमा हो गए, जिन्होंने अज्ञानता की चादर ओढ़ रखी थी। इन्हें किसी की भावनाओं, संस्कारों से कुछ लेना देना नहीं था। उन्होंने शव का अंतिम संस्कार नहीं होने दिया और शव को ले जाने के दबाव बनाने लगे। उन्होंने मौके पर मौजूद प्रशासनिक अधिकारियों तक की नहीं मानी। विवश होकर शव को चिता से उठाना पड़ा। इसके बाद शव को जीएमसी अस्पताल जम्मू के शवगृह ले जाया गया और फिर तवी नदी के किनारे ले जाकर पुलिस की सुरक्षा में अंतिम संस्कार किया गया।
परिजनों की बेबसी पर भी नहीं पसीजा दिल
डोडा के बुजुर्ग के मौत के बाद जो कुछ घटा, कुछ ऐसा ही दर्दनाक मंजर कुछ सप्ताह पहले जोगी गेट जम्मू में देखने को मिला था। तब प्रीतनगर जम्मू के एक बुजुर्ग के शव को शमशान घाट से उठाकर जीएमसी के शवगृह में वापस रखना पड़ा था। मृतक के परिजनों की आंखों से निकले रहे आंसू और बेबसी वहां मौजूद कुछ राजनेताओं व पत्थर दिल लोगों पर कोई असर नहीं कर रही थी। तर्क यह था कि कोरोना संक्रमित का अंतिम संस्कार होने पर पूरे क्षेत्र में संक्रमण फैल जाएगा। समाज के जिम्मेदार तबके के लोग भी समझने को तैयार नहीं थे। उनके लिए कोरोना बस एक काल की तरह है। वे यह भी समझने को तैयार नहीं थे कि प्रदेश में संक्रमित मरीजों की मृत्यु दर एक प्रतिशत से भी अधिक नहीं है।
मुखाग्नि देने को परिजन भी नहीं हुए तैयार
ऊधमपुर के नरसू क्षेत्र की महिला की मौत के बाद तो वह हुआ जो किसी ने कभी नहीं सोचा होगा। उसके अपने लोग ही अंतिम संस्कार के लिए आगे नहीं आ रहे थे। शव जब अंतिम संस्कार के लिए शमशानघाट पर था तो मुखाग्नि देने के लिए कोई परिजन नहीं था। कुछ अधिकारियों ने समझाया तब परिजन आगे आए। क्या कोरोना ने संवेदनाओं को मार दिया है या फिर जागरूकता के अभाव में समाज ऐसी घटनाओं को बढ़ावा दे रहा है, इस पर सोचने की जरूरत है। कोरोना से संक्रमित व्यक्ति का शव ही क्यों न हो, महामारी से पीड़ित लोगों के साथ ऐसा व्यवहार समाज के उदासीन रवैये को दर्शाता है। इससे यह भी लगता है कि संवेदनाएं किस तरह से दम तोड़ रही हैं।
प्रो. चंद्रशेखर, मनोविज्ञान विभाग, जम्मू विश्वविद्यालय-
एक जिम्मेदार समाज को ऐसा बर्ताव करना उचित नहीं है। शव के साथ ऐसा न हो, इसके लिए लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। प्रशासन को भी लोगों को जागरूक करना चाहिए। उन्हें बताना चाहिए कि कोरोना से मरने वालों के अंतिम संस्कार करने में कोई समस्या नहीं आती है।
डॉ. जेपी , मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी-
कोरोना से संक्रमित अगर किसी भी व्यक्ति की मौत होती है तो उसके शव को पूरी तरह से सैनिटाइज किया जाता है। इसके बाद शव को पूरी तरह से पैक किया जाता है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के दिशा निर्देशों के तहत सभी को जरूरी किट दी जाती है। अंतिम संस्कार करने से कहीं पर संक्रमण नहीं फैलता है। इसे सभी को समझने की जरूरत है।