कश्मीर में बदलाव और विकास की बयार, बुनियादी ढांचे में सुधार से होगा नया सवेरा
जम्मू-कश्मीर में आतंकी संगठन पुरजोर कोशिश कर रहे हैं कि दहशतगर्दी के जरिये माहौल बिगाड़ा जा सके और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह प्रचारित किया जा सके कि अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी किए जाने से वहां के बाशिंदे परेशान हैं और प्रतिक्रियास्वरूप इस प्रकार की वारदातों को अंजाम दे रहे हैं।
प्रो. रसाल सिंह। पिछला एक साल जम्मू-कश्मीर के लिए निर्णायक रहा है। अब यहां जमीनी बदलाव की आधारभूमि तैयार हो चुकी है। कई पुराने कानूनों को या तो निरस्त किया गया है या फिर उनमें आवश्यक संशोधन किए गए हैं। ऐसा करके न सिर्फ जम्मू-कश्मीर के शेष भारत के साथ एकीकरण की सभी बाधाओं और अड़चनों को समाप्त किया गया है, बल्कि समृद्धि, प्रगति और विकास का मार्ग भी प्रशस्त किया गया है। पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर की नई अधिवास नीति, मीडिया नीति, भूमि स्वामित्व नीति और भाषा नीति में बदलाव करते हुए दूरी और अलगाव को खत्म किया गया है। त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के तहत जिला विकास परिषद के गठन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। बहुत जल्द यहां की औद्योगिक नीति भी घोषित होने वाली है।
वर्ष 1889 से 1957 तक और तब से जम्मू-कश्मीर आधिकारिक भाषा विधेयक-2020 लागू होने तक उर्दू जम्मू-कश्मीर की राजभाषा रही है। राजकाज की दूसरी व्यावहारिक भाषा अंग्रेजी रही है। विडंबना यह है कि इस राज्य में उर्दू पढ़ने-लिखने वाले एक प्रतिशत ही हैं। अंग्रेजी बोलने-समझने वाले लोग भी लगभग दो प्रतिशत ही हैं। शेष लोग कश्मीरी, डोगरी, हिंदी आदि भाषाएं बोलते हैं। भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर आधिकारिक भाषा विधेयक-2020 लागू करते हुए पांच भाषाओं- कश्मीरी, डोगरी, हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी को राजभाषा का दर्जा दिया है।
उल्लेखनीय है कि जम्मू कश्मीर में 50 प्रतिशत से अधिक लोग कश्मीरी, 25 प्रतिशत लोग डोगरी और 20 प्रतिशत से अधिक लोग हिंदी का दैनंदिन प्रयोग करते हैं। बहुप्रयुक्त स्थानीय भाषाओं को राजभाषा का दर्जा मिलने से न सिर्फ इन भारतीय भाषाओं का विकास हो सकेगा, बल्कि शासन-प्रशासन में जनभागीदारी बढ़ेगी और स्थानीय भाषा-भाषी लोगों के लिए रोजगार जैसी संभावनाओं के द्वार खुलेंगे। कश्मीरी, डोगरी और हिंदी जैसी भाषाओं के राजभाषा बनने से जम्मू-कश्मीर के सांस्कृतिक एकीकरण की प्रक्रिया भी पूर्ण होगी। भारत में संपर्क, संवाद और संस्कृति की सर्वप्रमुख भाषा राष्ट्र भाषा हिंदी है।
जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी और डोगरी के साथ हिंदी के प्रचार-प्रसार और विकास से स्थानीय लोग न सिर्फ शेष भारत के साथ ज्यादा मजबूती के साथ जुड़ सकेंगे, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में और विज्ञापन, मीडिया, फिल्म, अनुवाद आदि कई क्षेत्रों में रोजगार भी प्राप्त कर सकेंगे। राष्ट्र भाषा हिंदी जम्मू-कश्मीर के शेष भारत के साथ जुड़ाव का सांस्कृतिक सेतु है। जम्मू-कश्मीर का राजनीतिक एकीकरण भले पांच अगस्त 2019 को हुआ हो, लेकिन सांस्कृतिक एकीकरण 22 सितंबर 2020 को जम्मू-कश्मीर आधिकारिक भाषा विधेयक-2020 के पारित होने से ही संभव हो सका है।
योजनाओं का सफल कार्यान्वयन : जम्मू-कश्मीर के नए उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने चलो गांव की ओर व माइ सिटी माइ प्राइड जैसे कार्यक्रमों की शुरुआत करके शासन-प्रशासन को जनता से जोड़ने और उसे संवेदनशील बनाने की पहल की है। ये कार्यक्रम विकास योजनाओं में जनभागीदारी पर बल देने वाले हैं। सभी हितधारकों खासकर आम नागरिकों में भरोसा पैदा करके और उन्हें साथ जोड़कर ही सरकारी योजनाओं का सफल कार्यान्वयन संभव है। जम्मू-कश्मीर भू-स्वामित्व कानून में बदलाव के बाद उनके द्वारा आयोजित निवेशक सम्मेलन का विशेष महत्व है। इस सम्मेलन में देश के 30 शीर्षस्थ उद्योगपतियों ने भागीदारी करते हुए राज्य में भारी आíथक निवेश के प्रति आश्वस्त किया है। यह निवेशक सम्मलेन नई संभावनाओं का सूत्रपात करने वाला है।
नए भू-स्वामित्व कानून के संबंध में कुछ शरारती तत्व यहां के मूल निवासियों को भड़काने की साजिश कर रहे हैं और जम्मू-कश्मीर ऑन सेल जैसे भ्रामक बयान दे रहे हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि इस कानून में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की भांति सुरक्षात्मक प्रावधान किए गए हैं। कृषि भूमि को जम्मू-कश्मीर के कृषकों को ही बेचा जा सकता है। सरकार ही औद्योगिक इकाइयों के लिए भूमि की पहचान करते हुए किसानों को बाजार मूल्य देकर उसका अधिग्रहण करेगी और उद्यमियों को उद्योग लगाने हेतु आवंटित करेगी। इसलिए बाहरी लोगों द्वारा जम्मू-कश्मीर की भूमि हथियाने की आशंकाएं निर्मूल हैं। यह संशोधित कानून नई औद्योगिक इकाइयों की स्थापना द्वारा जम्मू-कश्मीर के नौजवानों के लिए रोजगार के अवसर मुहैया कराएगा। अन्य नौकरीपेशा और कामकाजी भारतीयों के यहां बसने से भी अर्थव्यवस्था में गतिशीलता पैदा होगी।
आतंकी संगठनों में हताशा का माहौल : पिछले एक साल में मिली नाकामयाबी की वजह से तमाम आतंकी संगठनों और उनके आकाओं में हताशा है। उल्लेखनीय है कि कश्मीर की आजादी का राग अलापने वाले इन तथाकथित नेताओं की फाइव स्टार जीवनशैली, विदेशी सैर-सपाटे और बीवी-बच्चों का विदेश प्रवास और शिक्षा-दीक्षा, सब हवाला फंडिंग का प्रतिफल था। अब उन्हें आटे-दाल का सही भाव पता चलने लगा है। पाकिस्तान पोषित इन राष्ट्रद्रोहियों को इनके सेवाकार्यो के लिए पैसे और अन्यान्य प्रलोभनों के अलावा तरह तरह के पुरस्कार भी दिए जाते रहे हैं। अब आतंकवाद व अलगाववाद की दुकानों का क्रमिक लॉकडाउन हो रहा है। रोशनी एक्ट की आड़ में राजनेताओं और नौकरशाहों ने सरकारी भूमि की व्यापक लूट की। अब उसकी भी जांच की जा रही है और सरकारी भूमि को उनके कब्जे से छुड़ाया जा रहा है। इसलिए गुपकार घोषणा-पत्र के माध्यम से जम्मू-कश्मीर की लूट में शामिल तमाम राजनीतिक दल (नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस आदि) एकजुट हो रहे हैं। इनकी बौखलाहट का आलम यह है कि जहां फारुख अब्दुल्ला अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए चीन से सहायता मांग रहे हैं, वहीं महबूबा मुफ्ती ने तिरंगा उठाने से इन्कार कर दिया है। इनका यह रुख इनके असली रंग को उजागर करता है।
31 मार्च 2020 को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (राज्य विधि का अनुकूलन) आदेश-2020 अधिसूचित किया था। इसके तहत राज्य में पूर्व-प्रचलित 129 कानूनों में आंशिक संशोधन किया गया है और 29 कानूनों को निरस्त किया गया है। इसी आदेश में जम्मू-कश्मीर प्रशासनिक सेवा (विकेंद्रीकरण और भर्ती) अधिनियम-2010 में आंशिक बदलाव करते हुए स्थायी निवासी के स्थान पर अधिवासी जोड़ा गया है। इससे जम्मू-कश्मीर में लंबे समय से रह रहे पाकिस्तान से विस्थापित अल्पसंख्यकों, वाल्मीकि और गोरखा समुदायों व राज्य की बेटियों के साथ न्याय हो सकेगा तथा उनके बच्चों की सरकारी सेवाओं और शिक्षण संस्थाओं में भागीदारी सुनिश्चित हो सकेगी। जिस प्रकार 1991 के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए थे, ठीक उसी प्रकार के परिवर्तन के मुहाने पर अभी यह राज्य है। पूंजी-निवेश और आर्थिक पुनर्नियोजन के लिए उसके द्वार खुल चुके हैं। यह सचमुच एक ऐतिहासिक परिघटना है। पर्यटन, सीमेंट, बिजली, औषधिक संपदा, ऊनी वस्त्र, चावल, केसर, फल, मेवा, शहद और दुग्ध-उत्पाद आदि से संबंधित यहां के उद्योग-धंधे और व्यापार आवश्यक पूंजी-निवेश और नई श्रम-शक्ति, कौशल और प्रतिभा से कई गुना विकसित होने की संभावना है। अगर ये उद्योग और व्यापार पूर्ण क्षमता से विकसित होते हैं तो इससे स्थानीय युवाओं को रोजगार के अधिक अवसर मिलेंगे।
एक बार फिर उनके हाथ में पत्थर और बंदूक की जगह कलम-किताब और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट होंगे। लगभग छह महीने से 2जी इंटरनेट की सुविधा बहाल हो गई है। जल्द ही 4जी इंटरनेट शुरू होने की भी प्रबल संभावना है। हाल ही में राज्य में लागू की गई मीडिया नीति और आचार संहिता ने पत्रकारिता और पत्रकारों को अधिक जिम्मेदार और जवाबदेह बनाया है। अब भड़काऊ और भारतविरोधी खबरों के प्रसार को आपराधिक कृत्य माना जाएगा। लोगों को उकसाकर उपद्रव करवाने वाले स्वयंभू नेताओं की नजरबंदी के अलावा अस्थायी रूप से इंटरनेट पर भी रोक लगाई गई, ताकि इंटरनेट मीडिया के माध्यम से अफवाहें और प्रायोजित खबरें फैलाकर शांति और सौहार्द को बिगाड़ने की नापाक कोशिश न की जा सके।
अधिष्ठाता, छात्र कल्याण, जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय : जम्मू-कश्मीर ज्ञान-विज्ञान और दर्शन की उर्वरा-भूमि है। यहां की जीवन-शैली और चिंतन प्राचीन काल से ही उन्नत रहा है। बीच में राजनीतिक कारणों से कुछ अवरोध और अंतराल पैदा हो गया था। अब पठन-पाठन और चिंतन की अड़चनों और अशांति की समाप्ति हो रही है। इस प्रकार एक विशेष अर्थ में यह जम्मू-कश्मीर की समृद्ध ज्ञान-परंपरा के नवजागरण की बेला भी है। यहां वैष्णो देवी और अमरनाथ धाम जैसे अनेक सर्वमान्य तीर्थस्थल हैं। यहां का वातावरण प्रदूषण मुक्त है और श्रेष्ठतम शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य के अनुकूल है। इसलिए यहां प्राकृतिक, धार्मिक, शैक्षणिक और स्वास्थ्य पर्यटन के विकास की अपरिमित संभावनाएं हैं। अब इन संभावनाओं का सुनियोजित विकास और सतत दोहन करने की आवश्यकता है। राज्य के नौजवानों को देश की मुख्यधारा में शामिल करके और विकास योजनाओं में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करके ही पाकिस्तान पोषित आतंकवाद को मात दी जा सकती है। शांति, सौहार्द, सद्भाव, समरसता और सहयोग किसी भी सभ्यता के पूर्णविकास की आधारभूमि हैं।
कश्मीर की ज्ञान समृद्ध सभ्यता अब प्रगति और परिवर्तन की राह पकड़ रही है। इसी कड़ी में जम्मू-कश्मीर में अखिल भारतीय आयर्विज्ञान संस्थान, भारतीय तकनीकी संस्थान, भारतीय प्रबंधन संस्थान, भारतीय जनसंचार संस्थान और दो केंद्रीय विश्वविद्यालय जैसे राष्ट्रीय स्तर के प्रतिष्ठित संस्थान गति पकड़ रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के प्रत्येक लगभग प्रत्येक जिले में मेडिकल कॉलेज खोले जा रहे हैं। इससे राज्य की बदहाल और लचर स्वास्थ्य सेवा में गुणात्मक सुधार होगा। दुर्गम पहाड़ी इलाकों को संपर्क मार्गो से इन मेडिकल कॉलेजों और जिला मुख्यालयों से जोड़ा जा रहा है, ताकि अभी तक स्वास्थ्य सुविधाओं और सरकारी योजनाओं से वंचित रहे लोगों की सहज पहुंच सुनिश्चित की जा सके। एक सुपर एक्सप्रेस वे बनाकर दिल्ली से कटरा (वैष्णो देवी) तक की यात्र को मात्र छह घंटे की बनाया जा रहा है। इसी प्रकार जम्मू से श्रीनगर हाई वे को फोर लेन किया जा रहा है। वंदे भारत जैसी सबसे तेज और आरामदायक नियमित रेल सुविधा भी शुरू की गई है। ये सारी कोशिशें जम्मू-कश्मीर को आपस में जोड़ने और उसे शेष भारत और विकास की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रतिफलन हैं।
[अधिष्ठाता, छात्र कल्याण, जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय]