मां-बहन की पुकार, कुंद करेगी आतंक की धार, गुमराह युवाओं को मुख्यधारा से जोड़ने की मुहिम तेज
प्रधानमंत्री के आह्वान और चारु सिन्हा की नियुक्ति के बाद गुमराह युवाओं को मुख्यधारा से जोड़ने की मुहिम तेज होने की उम्मीद
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। घाटी में आतंकी ¨हसा की सबसे ज्यादा मार माताओं और बहनों ने झेली है। यही वजह है कि अब महिला शक्ति इस पीड़ा को सहने के बजाय गुमराह युवकों को मुख्यधारा में लिवा लाने के लिए खुलकर सामने आ रही है। धमकियों को दरकिनार दर्जनों गुमराह युवक उनकी अपील पर हथियार छोड़ घर लौट आए हैं। वादी में अमन की मुहिम में जुटी केंद्र सरकार और सुरक्षा बल भी मां-बहनों की भूमिका को समझ रहे हैं। शायद यही वजह है कि वादी में महिला अफसरों की भूमिका को बढ़ाया गया है ताकि माताओं-बहनों को साथ रख आतंक की धार कुंद की जा सके।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मां की पुकार की ताकत को समझते हुए महिला अफसरों से इस मुहिम को आगे बढ़ाने को कहा है। प्रधानमंत्री का बयान कश्मीर में सीआरपीएफ की पहली महिला आइजी की नियुक्ति के चंद दिन बाद ही आया है। तेलंगाना में नक्सल विरोधी ऑपरेशन में चारु सिन्हा कई नक्सलियों का सरेंडर और पुनर्वास करवा चुकी हैं।
संयुक्त राष्ट्र के कोसोव शांति मिशन का उनका अनुभव टकराव संभालने में उनकी योग्यता में भरोसा बढ़ाता है।पिछले कुछ माह में जम्मू कश्मीर पुलिस, बीएसएफ और सेना ने भी महिला अधिकारियों की भूमिका को बढ़ाया है। महिला कांस्टेबल और सब इंस्पेक्टर से लेकर महानिदेशक रैंक की महिला अधिकारी आतंकरोधी अभियानों में मुख्य भूमिका निभा रही हैं। करीब 60-65 युवक मां-बहनों की पुकार सुन मुख्यधारा में लौट चुके हैं।
यह रोचक संयोग है कि श्रीनगर सिटी की एसपी भी महिला हैं। शीमा नबी कसाबा आतंकियों व अलगाववादियों का गढ़ कहलाने वाले श्रीनगर के डाउन-टाउन क्षेत्र की मूल निवासी हैं और वह भी इन गुमराह युवकों की मनोस्थिति को बेहतर समझ सकती हैं।
पुलिस में आइजी रैंक के अधिकारी ने बताया कि आतंकवाद के खिलाफ महिला अधिकारियों और कश्मीरी महिलाओं की भूमिका को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। कई सफल अभियानों की जमीन महिलाओं ने ही तैयार की। उन्होंने कहा कि कई मामलों में महिला अधिकारी ज्यादा शांत और सजग दिखती हैं। पत्थरबाजों और आतंकवादियों की काउंस¨लग में उनकी भूमिका अहम रही है।
पत्थरबाजों को मुख्यधारा में लौटाने में सक्रिय रही समाजसेवी राबिया बाजी का कहना है कि आतंकियों के सरेंडर और पुनर्वास की मुहिम में महिला अधिकारियों की भूमिका बढ़ती है तो आतंकियां की भर्ती रोकने में बहुत मदद मिलेगी, क्योंकि वह मां-बहन के नजरिए से काम करेंगी।
मां ही लौटा लाई थी फुटबालर को
समाजसेवी सलीम रेशी ने कहा कि आतंकवाद के समूल नाश के लिए मां-बहनों की भूमिका को और बढ़ाने की आवश्यकता है। अनंतनाग के नवोदित फुटबॉलर माजिद को मुख्यधारा में लाने में उसकी मां की अपील ही कारगर रही है। सेना अब महिला अधिकारियों को ही आम महिलाओं से संवाद में आगे रख रही है। इससे आम लोग सेना से जुड़ते हैं।
'मां बुला रही है' मुहिम को मिलेगा बल
सेवानिवृत्त पुलिस महानिरीक्षक अशकूर वानी ने कहा कि कश्मीर में गुमराह युवकों को मनाने के लिए 'मां बुला रही है' मुहिम चल रही है। इससे कई गुमराह युवकों को नई जिंदगी मिली है। उन्होंने कहा कि इस समय कश्मीर में सबसे बड़ी चुनौती आतंकियों की भर्ती रोकना और उनका सरेंडर सुनिश्चित बनाना है। चारु सिन्हा की नियुक्ति को आप इस संदर्भ में देख सकते हैं। उनका तेलंगाना का अनुभव अवश्य सरकार की नजर में होगा।
दर्जनों महिला अधिकारी निभा रही अहम भूमिका
उधमपुर में शरगुन शुक्ला और रियासी में रश्मि वजीर जिला पुलिस प्रमुख हैं। इनके अलावा निशा नाथ्याल, अनीता शर्मा, ममता शर्मा, सनैया अशकूर वानी, शाहिदा परवीन, रानु कुंडल, शक्ति देवी समेत जम्मू कश्मीर पुलिस की कई महिला अधिकारियों ने आतंकरोधी अभियानों और नशा विरोधी अभियानों में अपनी काबलियत साबित कर चुकी हैं।