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जम्मू-कश्मीर: 21 जनवरी को है भुग्गा व्रत, इस विधि से सभी तरह के दुख दूर होंगे, भौतिक सुखों की होगी प्राप्ति

चंद्रोदय जम्मू में रात्रि 09.06 पर होगा इसके बाद व्रतधारी महिलाएं रात्रि को चांद को अर्घय देकर श्रद्धापूर्वक बच्चों के नाम का भुग्गा निकालकर अलग रखती हैं। इसके साथ मूली गन्ना भी रखा जाता है। जिसे बाद में कुल पुरोहित व कन्याओं को बांटा जाता है।इसके बाद महिलाएं व्रत खोलेंगी।

By Vikas AbrolEdited By: Published: Tue, 18 Jan 2022 05:40 PM (IST)Updated: Tue, 18 Jan 2022 05:40 PM (IST)
जम्मू-कश्मीर: 21 जनवरी को है भुग्गा व्रत, इस विधि से सभी तरह के दुख दूर होंगे, भौतिक सुखों की होगी प्राप्ति
शुभ मुहूर्त सुबह 08.52 के बाद पूरा दिन शुभ है क्योंकि सुबह 08 बजकर 52 मिनट तक भद्रा काल रहेगा

जम्मू, जागरण संवाददाता : डुग्गर संस्कृति में विशेष महत्व रखनेवाला श्रीगणेश संकष्ट चतुर्थी, भुग्गा व्रत शुक्रवार 21 जनवरी को है। यह व्रत मां अपनी संतान की रक्षा, लंबी आयु, मंगलकामना व ग्रहों की शांति के लिए और भगवान श्रीगणेश जी की कृपा प्राप्ति के लिए इस व्रत को करती है।

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इस व्रत को माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है। इस व्रत को सकट चौथ, गणेश चतुर्थी, तिलकूट चतुर्थी, संकटा चौथ, तिलकुट चौथ के नाम से जाना जाता हैं। महंत रोहित शास्त्री ज्योतिषाचार्य ने बताया कि भुग्गा व्रत, संकष्ट चतुर्थी, उद्यापन, मोख कर सकते हैं। शुभ मुहूर्त सुबह 08.52 के बाद पूरा दिन शुभ है क्योंकि सुबह 08 बजकर 52 मिनट तक भद्रा काल रहेगा और माघ कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि भी शुक्रवार सुबह 08 बजकर 52 मिनट के बाद शुरू होगी।

पूजन विधि

भुग्गा व्रत के दौरान महिलाएं नहा धोकर सबसे पहले श्रीगणेश जी की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराने के बाद फल, लाल फूल, अक्षत, रोली, मौली, दूर्वा, अर्पित करें और फिर तिल से बनी वस्तुओं अथवा तिल और गुड़ से बने भुग्गे का प्रसाद लगाती हैं।

चंद्रोदय जम्मू में रात्रि 09.06 पर होगा

इसके बाद व्रतधारी महिलाएं रात्रि को चांद को अर्घय देकर श्रद्धापूर्वक बच्चों के नाम का भुग्गा निकालकर अलग रखती हैं। इसके साथ मूली, गन्ना भी रखा जाता है। जिसे बाद में कुल पुरोहित व कन्याओं को बांटा जाता है।इसके बाद महिलाएं व्रत खोलेंगी। सकट चौथ के दिन 108 बार गणेश मंत्र ॐ श्री गणेशाय नमः का जाप करें। सारा दिन व्रत निराहार किया जाता है। व्रत में पानी का सेवन भी नहीं किया जाता। इसलिए यह व्रत काफी कठिन माना जाता है। हालांकि पूरा दिन पूजा की तैयारियों में निकल जाता है। तिल व गुड़ को पीस कर भुग्गे का विशेष प्रसाद तैयार किया जाएगा। और इस व्रत की कथा पढ़ते एवं सुनते हैं वैसे तो भुग्गा हलवाई की दुकानों पर भी उपलब्ध होता है। हलवाई इसे सफेद तिल को खोए में मिलाकर बनाते हैं लेकिन घर में भुग्गा पीसकर बनाना शगुन समझा जाता है।

व्रत का फल

इस व्रत को करने से व्रतधारी के सभी तरह के दुख दूर होंगे और उसे जीवन के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। चारों तरफ से मनुष्य की सुख-समृद्धि बढ़ेगी। पुत्र-पौत्रादि, धन-ऐश्वर्य की कमी नहीं रहेगी। विघ्नहर्ता गणेश जी इस व्रत को करने वाली माताओं के संतानों के सभी कष्ट हर लेते हैं और उन्हें सफलता के नये शिखर पर पहुंचाते हैं।डुग्गर संस्कृति में विशेष महत्व :डुग्गर संस्कृति में विशेष महत्व रखनेवाला भुग्गे का व्रत मौसम के बदलाव से जुड़ा हुआ है। डुग्गर समाज में ऐसी मान्यता है कि भुग्गे के व्रत के साथ ही सर्दी में कमी आना शुरू हो जाती है। प्रत्येक चंद्र मास में दो चतुर्थी होती है। पूर्णिमा के बाद की चतुर्थी संकष्टी एवं अमावस्या के बाद आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। इस प्रकार 1 वर्ष में 12 संकष्टी चतुर्थी होती है जिनमें माघ कृष्ण पक्ष की चतुर्थी विशेष फलदाई है।


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