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आप पर कोई ऊपरी चक्कर है तो इससे मुक्ति का आ रहा समय, काल भैरव को खुश करने का तरीका जानें

महामंडलेश्वर अनूप गिरि ने बताया कि रविवार तथा मंगलवार के दिन भैरव जी का पूजन करने से सभी प्रकार के ऊपरी चक्कर भूत प्रेत की बाधाएं तथा सभी प्रकार की अलाबला शांत हो जाती हैं। शत्रुओं के सभी षड्यन्त्र विफल हो जाते हैं।

By Lokesh Chandra MishraEdited By: Published: Sun, 21 Nov 2021 06:38 PM (IST)Updated: Sun, 21 Nov 2021 06:38 PM (IST)
आप पर कोई ऊपरी चक्कर है तो इससे मुक्ति का आ रहा समय, काल भैरव को खुश करने का तरीका जानें
काल भैरव को भगवान शिव का प्रतीकात्मक एवं चमत्कारी स्वरूप माना जाता है।

बिश्नाह, संवाद सहयोगी : मार्गशीर्ष मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव का अवतरण हुआ था। इस बार 27 नवंबर को श्री काल भैरव अष्टमी है। इसे कालाष्टमी भी कहते हैं। इस दिन व्रत रखकर जल का अर्ध्य देकर भैरव का पूजन करना चाहिए। इस दिन भैरव की पूजन, जप व संकीर्तन करने का विशेष माहात्म्य होता है। भैरव के बाद कुत्ते का भी पूजन करना चाहिए। कुत्ते को भैरव की सवारी माना जाता है। भैरव अष्टमी को रात्रि जागरण कर शिव-पार्वती की कथा सुननी चाहिए।

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काल भैरव को भगवान शिव का प्रतीकात्मक एवं चमत्कारी स्वरूप माना जाता है। भैरव का मुख्य हथियार दण्ड है, जिसके कारण भैरव को दण्डपति भी कहा जाता है। भैरव जी का दिन रविवार तथा मंगलवार माना जाता है। महामंडलेश्वर अनूप गिरि ने बताया कि रविवार तथा मंगलवार के दिन भैरव जी का पूजन करने से सभी प्रकार के ऊपरी चक्कर, भूत प्रेत की बाधाएं तथा सभी प्रकार की अलाबला शांत हो जाती हैं। शत्रुओं के सभी षड्यन्त्र विफल हो जाते हैं। यदि आप पर भैरव की कृपा हो जाए तो कोई भी आपका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता।

श्री कालभैरव अष्टमी के दिन क्या करें : सर्वप्रथम भैरव जी को स्नान कराएं फिर काले वस्त्र पहनाएं। उनको तिलक लगाएं। फूल और मालाएं पहनाएं। धूप-दीप करें, आरती करें। प्रसाद चढ़ाएं। भैरव जी के प्रसाद के लिए सोचना नहीं होता। इन्हें सब पसंद है। मिठाइयां, नमकीन, चाकलेट, बिस्किट, समोसे, पकोड़े, शराब आदि सभी कुछ पसंद है। आप अपनी श्रद्धा एवं सामर्थ्य अनुसार प्रसाद चढ़ा सकते हैं। भैरव अष्टमी के दिन कुत्ते का भी पूजन करें तिलक करके माला पहनाएं।

काशी के कोतवाल हैं भैरव : काशी शिव जी को सबसे ज्यादा प्रिय है। काशी के अन्य नाम वाराणसी और बनारस हैं। काल भैरव भगवान शिव की क्रोधाग्नि का विग्रह रूप हैं। शिव पुराण में कहा गया है कि काल भैरव भगवान शिव के ही स्वरूप हैं। शिव जी ने अपनी प्रिय नगरी काशी का कोतवाल भैरव जी को बनाया है। भैरव जी के कई स्वरूप हैं जो काशी में कई जगह स्थापित हैं। इनके नाम हैं काल भैरव, आस भैरव, बटुक भैरव, आदि भैरव, भूत भैरव, लाट भैरव, संहार भैरव, क्षेत्रपाल आदि।

कहा जाता है कि काशी के कोतवाल भैरव जी के दर्शन किए बिना भगवान काशी विश्वनाथ का दर्शन अधूरा रहता है। काशी में काल भैरव के मंदिर में भैरव कंठी मिलती है। किसी भी उम्र के स्त्री पुरुष को यदि कोई ऊपरी समस्या हो, जादू टोने का असर हो, भूत प्रेत का चक्कर हो तो उसे भैरव कंठी पहना दो। कुछ ही दिनों में वह व्यक्ति एकदम स्वस्थ हो जाएगा। यदि किसी ने भैरव कंठी पहनी हुई है तो उसे तो कोई चक्कर बन ही नहीं सकता। शत्रुओं के सारे षड्यन्त्र विफल हो जायेंगे। ऐसी ही कृपा होती है काशी के कोतवाल काल भैरव की।


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