दुनिया भर में जो सम्मान रंगकर्मी को मिलता है, हमारे देश में नहीं मिल रहा
आज वह रंगमंच के दिशा निर्देशकों में गिने जाते हैं। उनकी गिनती प्रयोग करने वाले कल्पनाशील नाट्य निर्देशकों में की जाती है।
जागरण संवाददाता, जम्मू : रंगकर्मी को जो सम्मान दुनिया भर में मिलता है, हमारे देश में नहीं मिल रहा। डोगरी संस्था के 'मलाटी' कार्यक्रम श्रृंखला में पद्मश्री बलवंत ठाकुर ने दुनिया के दूसरे क्षेत्रों में रंगमंच और साहित्यकारों की स्थिति और इज्जत की बात करते उन्होंने लेखकों के समक्ष अपने जीवन के अनुभव सांझा किए। रंगमंच की चुनौतियों पर भी बात की।
स्वागत भाषण में डोगरी संस्था के अध्यक्ष ललित मगोत्रा ने बलवंत ठाकुर की कई उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि डोगरी रंगमंच को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलवाने का श्रेय बलवंत ठाकुर को ही जाता है। बेशक आज उनकी पहचान रंगमंच की अग्रिम पंक्ति में की जाती है। इसके पीछे का संघर्ष प्रेरणादायी है। आज वह रंगमंच के दिशा निर्देशकों में गिने जाते हैं। उनकी गिनती प्रयोग करने वाले कल्पनाशील नाट्य निर्देशकों में की जाती है। अनचाहे पथों पर चलने की हिम्मत, उनकी दृढ़ता और सकारात्मक रवैये के अलावा उन्होंने पत्नी के भाग्य को हमेशा स्वीकारा है।
उन्होंने डोगरी भाषा और संस्कृति के लिए जो कुछ किया है, उसके लिए आभारी होना चाहिए और अपनी अभूतपूर्व उपलब्धियों में गर्व महसूस करना चाहिए। प्रो. मगोत्रा ने कहा कि न केवल ठाकुर ने बड़ी संख्या में युवाओं और बच्चों के बीच रंगमंच को लोकप्रिय बनाया। जिनमें से कई उत्कृष्ट कलाकार बने हैं। उन्होंने अपनी अगली पीढ़ी-उनकी बेटियों, अरुशी ठाकुर और गौरी को अपनी विरासत को संभालने के काबिल बनाया है। कला के क्षेत्र में शायद ही कोई सम्मान होगा, जो उन्हें नहीं मिला होगा। अपने विचार साझा करते हुए बलवंत ठाकुर ने कहा कि वह एक दूरदराज पहाड़ी क्षेत्र के रहने वाले एक गांव से हैं। जम्मू यूनिवर्सिटी लॉ की डिग्री की। यहीं से रंगमंच का सफर शुरू किया।
नटरंग की स्थापना की। थियेटर में सक्रियता के चलते ही उन्हें जम्मू-कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी के सचिव पद की जिम्मेवारी संभालने का मौका मिला। नटरंग संडे श्रृंखला के तहत लगातार 500 से ज्यादा मंचन करने का अपने आप में उनका एक रिकार्ड है। उन्होंने कई कार्यक्रमों से जुडे़ अपने अनुभव भी साझा किए। जम्मू में रंगमंच के वर्तमान और भविष्य के परिदृष्य के बारे में पूछे गए लेखकों के प्रश्नों के जवाब में ठाकुर ने कहा कि जम्मू में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। कलाकार काफी अच्छा काम कर रहे हैं। रंगमंच के विकास के लिए बुनियादी ढांचे की कमी है। प्रोत्साहन की कमी है। उत्थान के लिए विशेष प्रयास नहीं हो रहे।
उन्होंने खेद व्यक्त किया कि जम्मू क्षेत्र में पांच विश्वविद्यालय होने के बावजूद इनमें से कोई भी कला प्रदर्शन विभाग नहीं है। कलाकारों के पास रिहर्सल तक के लिए स्थान नहीं है। जिन लोगों ने बातचीत में भाग लिया उनमें छत्रपाल, वीना गुप्ता, चमन अरोड़ा, डा. निर्मल विनोद, अशोक अंगुराना और कुछ महत्वाकांक्षी युवा शामिल थे।