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Baba Chamliyal Mela: बाबा चमलियाल की दरगाह पर इस साल नहीं लगा मेला, मजार पर चादर चढ़ाकर पूरी की रस्म

बीएसएफ के आइजी एनएस जम्वाल डीआइजी ओपी उपाध्याय के साथ कुछ अन्य अधिकारियों व गांव के पंच-सरपंचों के साथ मिलकर बाबा दिलीप सिंह की मजार पर चादर चढ़ाई।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Thu, 25 Jun 2020 12:57 PM (IST)Updated: Thu, 25 Jun 2020 02:07 PM (IST)
Baba Chamliyal Mela: बाबा चमलियाल की दरगाह पर इस साल नहीं लगा मेला, मजार पर चादर चढ़ाकर पूरी की रस्म
Baba Chamliyal Mela: बाबा चमलियाल की दरगाह पर इस साल नहीं लगा मेला, मजार पर चादर चढ़ाकर पूरी की रस्म

जम्मू, जेएनएन। भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित बाबा चमलियाल दरगाह जो दोनों देशों के लोगों की आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है, पर आज बैरौनकी छाई हुई थी। आज के दिन जहां इस दरगाह पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ा रहता था वहां इक्का-दुक्का स्थानीय श्रद्धालु ही पहुंचे। कारण था कोरोना महामारी का प्रकोप। कोरोना संकट के चलते प्रशासन ने दरगाह पर मेले के आयोजन की इजाजत नहीं दी। हालांकि रस्म के अनुसार बीएसएफ के आइजी एनएस जम्वाल, डीआइजी ओपी उपाध्याय के साथ कुछ अन्य अधिकारियों व गांव के पंच-सरपंचों के साथ मिलकर बाबा दिलीप सिंह की मजार पर चादर चढ़ाई।

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करीब 322 वर्ष साल से लगातार जिला सांबा के रामगढ़ में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर लगने वाले चमलियाल मेले (उर्स) का आयोजन हर साल जून महीने के चौथे वीरवार को होता है। जम्मू कश्मीर प्रशासन व सीमा सुरक्षा बल की तरफ से मेले के लिए तैयारिया की जाती हैं। परंतु इस साल कोरोना संक्रमण के कारण प्रशासन ने अन्य धार्मिक समारोह की तरह ही इस मेले को भी आयोजित करने की इजाजत नहीं थी। इक्का-दुक्का अधिकारियों को ही चादर चढ़ाने के लिए कहा गया था।

चर्म रोग का इलाज करते थे बाबा दिलीप सिंहः

बजाया जाता है कि बाबा दिलीप सिंह चर्म रोग का इलाज करते थे। इस इलाज के जरिये वे काफी लोकप्रिय होने लगे। उनकी बढ़ती लोकप्रियता से कुछ लोगाें को ईर्ष्या होने लगी और उन्हें एक दिन सैंदावली गांव (अब पाकिस्तान में) इलाज कराने के बहाने बुलाया और उनका कत्ल कर दिया। हमले के दौरान वह वहां से लौटे तो उनका सिर सैंदावाली गांव में गिरी और धड़ रामगढ़ के दग गांव में गिरा। इस तरह से पाकिस्तान के सैंदावाली गांव में भी बाबा की मजार है। जहां जून में एक सप्ताह का मेला लगता है। पाकिस्तान के श्रद्धालु बाबा की मजार पर चादर चढ़ाने के लिए लाते हैं। वह पाकिस्तानी रेंजरों को चादर देते हैं और वह बीएसएफ के जवानों को पूरी रस्म के सौंपते हैं। इस तरह से वह चादर बाबा की मजार पर चढ़ाई जाती रही है।

1971 के युद्ध के बाद बंद हो गया पाकिस्तानियों का मजार पर आना:

रामगढ़ के निवासी बुआ दित्ता ने बताया कि वर्ष 1971 से पहले पाकिस्तानी श्रद्धालु बाबा की मजार पर आकर चादर चढ़ाते थे। सरहद के दोनों और बाबा के दरबार में हाजरी देने वालों का सैलाब उमड़ा रहता था परंतु भारत-पाक के बीच 1971 में हुए युद्ध के बाद यह रस्म बंद हो गई। बाद में पाकिस्तानी श्रद्धालु चादर रेंजरों को देने लगे। हालांकि जीरो लाइन पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता था, जिसमें पाकिस्तानी रेंजर व बीएसएफ अधिकारी और जम्मू-कश्मीर सिविल प्रशासन के अधिकारी व उनके परिवार भी शिरकत करते थे। अब यह सिलसिला भी वर्ष 2018 से बंद है। मेले से दो दिन पहले पाकिस्तानी रेंजरों ने दरगाह पर गोलीबारी की, जिसमें बीएसएफ अधिकारी समेत चार जवान शहीद हो गए थे। उस दौरान से यह सिलसिला बंद है। जीरो लाइन पर होने वाले कार्यक्रम को स्थगित कर दिया गया। यही नहीं पाकिस्तानी श्रद्धालुओं को शक्कर शरबत भी नहीं दिया जा रहा है।


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