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Atal Bihari Vajpayee Jayanti: वाजपेयी के दिल पर चुभा बाण था अनुच्छेद-370, मुखर्जी के साथ बतौर पत्रकार आए थे जम्‍मू

जम्मू-कश्मीर के पूर्ण जम्हूरियत के सपने को हर समय दिल में जीते रहे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ वह भी बिना परमिट के आ रहे थे। लेकिन मुखर्जी को उनके सामने गिरफ्तार कर लिया गया। मुखर्जी का वह सफर अंतिम साबित हुआ।

By lokesh.mishraEdited By: Published: Fri, 25 Dec 2020 06:00 AM (IST)Updated: Fri, 25 Dec 2020 12:54 PM (IST)
Atal Bihari Vajpayee Jayanti: वाजपेयी के दिल पर चुभा बाण था अनुच्छेद-370, मुखर्जी के साथ बतौर पत्रकार आए थे जम्‍मू
अटल बिहारी वाजपेयी को अनुच्छेद 370 रूपी बाण हमेशा उनके दिल को छलनी किए रहता था।

जम्मू, लोकेश चंद्र मिश्र: मृदुल स्वभाव के अटल बिहारी वाजपेयी जब भी जम्मू-कश्मीर आते थे तो प्रसन्नचित्त तो दिखते थे, लेकिन अनुच्छेद 370 रूपी बाण हमेशा उनके दिल को छलनी किए रहता था। अपनी सियासत में वह एक राष्ट्र, एक विधान के लक्ष्य को वह सबसे ऊपर रखते थे। उनके निधन के उपरांत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 370 तोड़कर अटल के सपने को पूरा किया।

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जम्मू के पुराने संघ कार्यकर्ता और भाजपा नेता चंद्रमोहन शर्मा पूर्व प्रधानमंत्री को उनके जन्मदिवस पर याद करते हुए बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर के पूर्ण जम्हूरियत के सपने को हर समय दिल में जीते रहे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ वह भी बिना परमिट के आ रहे थे। लेकिन मुखर्जी को उनके सामने गिरफ्तार कर लिया गया। मुखर्जी का वह सफर अंतिम साबित हुआ।

जम्मू-कश्मीर में ही उनकी संदिग्ध परिस्थिति में मौत भी हो गई। उस घटना ने वाजपेयी जी को झकझोर दिया। वे किसी भी तरह मुखर्जी के मौत का कारण बने अनुच्छेद 370 को तोड़ देना चाहते थे। इस अनुच्छेद को तोडऩे का एकमात्र विकल्प था मजबूती से सत्ता में आना। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वाजपेयी जी संकल्प पूरा हो गया।

गेस्ट हाउस में कार्यकर्ताओं को लगाई थी डांट: वर्ष 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी जम्मू प्रवास पर थे। वे गेस्ट हाउस में ठहरे थे। उसी समय विद्यार्थी परिषद का एक दल कश्मीर गया था। उसकी अगुवाई अनुराग ठाकुर कर रहे थे। कश्मीर से लौटने के बाद विद्यार्थी परिषद का दल गेस्ट हाउस में उनसे उत्साह से मिला और बताया कि उन्होंने उर्दू में लिखे बोर्डों को रास्ते में गिरा दिया। सोचा था अटल खुश होंगे। लेकिन उन्होंने अनुराग ठाकुर और विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं को डांटा। गहरी नाराजगी जताई और कहा कि हमारी दुश्मनी किसी भाषा से नहीं है, देश के दुश्मनों से है। इस पर विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं को गलती का अहसास हुआ। 

जम्मू की पुकार कविता में झलकती है उनकी संवेदनशीलता: वाजपेयी जी जम्मू के प्रति कितना संवेदनशील थे, इसका अंदाजा उनकी 'जम्मू की पुकार' कविता से लगता है। एक-एक शब्द में दर्द है। उनकी इस कविता डोगरी अनुवाद चंद्रमोहन शर्मा ने किया। शर्मा ने उनकी 52 कविताओं के डोगरी अनुवाद की एक किताब प्रकाशित की। जम्मू की पुकार कविता की पंक्तियां कुछ पंक्तियां इस तरह हैं :- 

अत्याचारी ने आज पुन: ललकारा,

अन्यायी का चलता है दमन-दुधारा।

आंखों के आगे सत्य मिट जाता है

भारत माता का शीश कटा जाता है।

क्या पुन: देश टुकड़ों में बंट जाएगा?

क्या सबका शोणित पानी बन जाएगा?

कब तक दानव की माया चलने देंगे?

कब तक भस्मासुर को हम छलने देंगे?

कब तक जम्मू को यों ही जलने देंगे?

कब तक जुल्मों की मदिरा ढलने देंगे?

चुपचाप सहेंगे कब तक लाठी गोली?

कब तक खेलेंगे दुश्मन खूं से होली?

मोती बाजार के पकौड़े खाए बिना नहीं लौटते थे वाजपेयी जी: चंद्रमोहन शर्मा बताते हैं कि वाजपेयी जी को जम्मू के मोती बाजार के पकौड़े बहुत अच्छे लगते थे। वे जब भी आते थे तो कहते थे- 'चंद्रमोहन, मोती बाजार के पकौड़े मंगवाओ।' उन्हें डोगरी भाषा से काफी लगाव था। वे अकसर डोगरी के मुहावरे चंद्रमोहन शर्मा से पूछते रहते थे। डोगरी से लगाव का ही परिणाम था कि जब वह प्रधानमंत्री बने और जम्मू के आठरह लोगों का प्रतिनिधिमंडल उनसे मिलकर डोगरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की तो कुछ ही महीने में यह मांग पूरी कर दी गई।


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