Move to Jagran APP

फिर ताजा हुए मेजर माेहित की वीरता के किस्से, आतंकियों के साथ रहकर नाकाम बनाए थे उनके मंसूबे

Martyr Major Mohit Sharma कुपवाड़ा के हफरोदा जंगल में 21 मार्च 2009 में मुठभेड़ के दौरान आतंकवादियों को उनके अंजाम तक पहुंचाते हुए वह शहीद हुए थे। उनकी शहादत के बाद उन्हें मरणोपरांत शांतिकाल का सबसे सर्वोच्च पदक अशोक चक्र दिया गया था।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Tue, 27 Apr 2021 08:39 AM (IST)Updated: Tue, 27 Apr 2021 02:44 PM (IST)
फिर ताजा हुए मेजर माेहित की वीरता के किस्से, आतंकियों के साथ रहकर नाकाम बनाए थे उनके मंसूबे
आतंकादियाें के सारे राज जाने व मौका मिलते ही उन्हें मार गिराया।

जम्मू, राज्य ब्यूरो: भारतीय सेना की स्पेशल फोर्स के कमांडो मेजर मोहित शर्मा की वीरता के किस्से सोमवार को विजय मशाल के टाइगर डिवीजन में पहुंचने पर ताजा हुए। अशोक चक्र विजेता, स्पेशल फोर्स के शहीद मेजर मोहित शर्मा की पत्नी लेफ्टिनेंट कर्नल रिशिमा सरीन विजय मशाल के स्वागत के कार्यक्रम में मौजूद रही।

loksabha election banner

वह इस समय जम्मू में तैनात हैं। मेजर मोहित ने कश्मीर में तैनाती के दौरान आतंकवाद के खात्मे में सराहनीय कार्य किया है। उनकी बहादुरी आज भारतीय सेना के वीरों में देश की खातिर कुछ भी कर गुजरने का जज्बा पैदा करती है।

मार्च 2004 में मेजर मोहित आतंकवादी का वेश बनाकर कश्मीर के शाेपियां में हिज्बुल मुजाहीदीन के आतंकवादियों में घुस गए थे। इफ्तकार बट बनकर वह कई दिन आतंकवादियों अबू तोरारा व अबु सब्जार के साथ रहे। मेजर मोहित ने बड़ा हमला करने की तैयारी कर रहे इन आतंकादियाें के सारे राज जाने व मौका मिलते ही उन्हें मार गिराया।

आज मेजर मोहित शर्मा की पत्नी लेफ्टिनेंट कर्नल रिशिमा सरीन पति के पद्चिन्हों पर चलते हुए देश के दुश्मनों के मंसूबों को नाकाम बनाने की राह पर है। हरियाणा के रोहतक के रहने वाले शहीद मेजर मोहित शुरू से ही एक पैरा कमांडो बनना चाहते थे। जून 2003 में वह 1 PARA (SF) -भारतीय सेना के संयुक्त बल में शामिल हो गए। उसके बाद उन्होंने 1 पैरा (SF) के साथ कश्मीर में सेवा की। जहाँ वर्ष 2004 में उन्हें सेना पदक (वीरता) से सम्मानित किया गया। उन्होंने जनवरी 2005 से दिसंबर 2006 तक 2 वर्षों तक कमांडो विंग बेलगाम में प्रशिक्षक के रूप में कार्य किया। कश्मीर से लौटने के बाद वह नाहन में तैनात थे, जहां से वह अक्टूबर 2008 में फिर से कश्मीर चले गए। उन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए अपना जीवन लगा दिया और 21 मार्च 2009 को अमरत्व प्राप्त किया।

कुपवाड़ा के हफरोदा जंगल में 21 मार्च 2009 में मुठभेड़ के दौरान आतंकवादियों को उनके अंजाम तक पहुंचाते हुए वह शहीद हुए थे। उनकी शहादत के बाद उन्हें मरणोपरांत शांतिकाल का सबसे सर्वोच्च पदक अशोक चक्र दिया गया था।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.