अमेरिका-इटली से सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त स्नाइपर सरहद पर हुए तैनात, बर्फ पिघलने से घुसपैठ की आशंका बढ़ी
स्कारपियो टीजीटी .338 लापुआ मैग्नम (8.6 मिमी 70 मिमी या 8.58 मिमी 70 मिमी) एक रिमलेस बाटल नेक सेंटर फायर राइफल कारतूस का इस्तेमाल करती है।
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर: पहाड़ों पर बर्फ पिघलने के साथ ही एलओसी पर पाकिस्तान की तरफ से घुसपैठ में बढ़ोतरी की आशंका को देखते हुए भारतीय सेना ने अग्रिम इलाकों में घुसपैठ रोधी तंत्र को मजबूत बनाने के लिए .339 लैप्यूआ मैग्नम स्कारपियो टीजीटी राइफल और .50 कैलीबर की एम95 राइफल से लैस पूरी तरह प्रशिक्षित स्नाइपरों को अग्रिम इलाकों में तैनात कर दिया है। इन स्नाइपरों को संयुक्त राज्य अमेरिका और इटली के सैन्य प्रशिक्षिकों ने प्रशिक्षित किया है।
सैन्य सूत्रों ने बताया कि एलओसी पर तैनात सेना की बटालियनों में तैनात कुछ सैनिकों के अलावा विशेष सैन्य दस्तों को विदेश से बुलाए गए विशेषज्ञों ने इन अत्याधुनिक राइफलों और इनमें परिस्थितियों विशेष के अनुरूप इस्तेमाल होने वाले गोली-बारुद के बारे में ट्रेनिंग दी है। उन्होंने बताया कि नई स्नाइपर राइफलें भारतीय सेना के स्नाइपरों के पास पहले से उपलब्ध रशियन द्राग्नोव के मुकाबले कहीं ज्यादा घातक और लंबी दूरी तक मार करने में समर्थ हैं।
उन्होंने बताया कि अमेरिका निॢमत बैरेट एम 95 एक एंटी मैटेरियल राइफल है। यह 1,800 मीटर की दूरी तक स्टीक मार करने में समर्थ है। एंटी मैटेरियल राइफल का मतलब उस गोली से है जो किसी भी मजबूत धातु को पूरी तरह भेद सकती है। दुनिया में कई मुल्कों के विशेष सैन्य दस्तों द्वारा इस्तेमाल की जा रही यह राइफल, एक .50 ब्राउनिंग मशीन गन कारतूस (12.7 मिमी 99 मिमी) से लैस एक बोल्ट-एक्शन स्नाइपर है।
लगभग 10 किलोग्राम वजन वाली एम95 पहली बार 1995 में प्रयोग में लाई गई थी। यह वर्ष 1982 में निर्मित .50 कैलीबर की एंटी मैटेरियल राइफल है, जिसे दुनिया में सराहा गया है। यह एम 82 बैरेट राइफल का ही एक परिष्कृत रूप है। इसे एम82 बैरेट परिवार की राइफल भी कहते है। एलओसी और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर तैनात सैनिकों और स्नाइपरों को सौंपी जा रही दूसरी अत्याधुनिक विदेशी स्नाइपर राइफल इटली की कंपनी बेरेट द्वारा निॢमत .338 लापुआ मैग्नम स्कॉॢपयो टीजीटी है।
स्कारपियो टीजीटी .338 लापुआ मैग्नम (8.6 मिमी 70 मिमी या 8.58 मिमी 70 मिमी) एक रिमलेस, बाटल नेक सेंटर फायर राइफल कारतूस का इस्तेमाल करती है। यह 1980 के दशक में विकसित की गई और अफगानिस्तान व इराक युद्ध में इसका इस्तेमाल भी हुआ है। हालांकि .338 लापुआ मैग्नम को शुरुआत में 1,000 मीटर की दूरी पर शरीर के कवच में घुसने के लिए विकसित किया गया था, लेकिन इसे प्रभावी ढंग से 1,500 मीटर और आगे तक इस्तेमाल किया गया है। जंग के मैदान पर स्नाइपरों द्वारा इसके जरिए दुश्मनों को चोट पहुंचाने के कई रिकार्ड हैं।
संबधित सैन्य सूत्रों ने हालांकि एलओसी पर इन दो अत्याधुनिक राइफलों से लैस स्नाइपर शूटरों की संख्या या फिर इन राइफलों की संख्या की जानकारी तो नहीं दी है, लेकिन यह जरूर कहा कि घुसपैठ की दृष्टि से संवेदनशील इलाकों के अलावा अंतरराष्ट्रीय सीमा व एलओसी पर सभी प्रमुख अग्रिम चौकियों पर इनसे लैस दस्ते मौजूद हैं।
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