जम्मू-कश्मीर के जिला किश्तवाड़ में फिर आतंक की आहट, 1990 जैसा बन रहा माहौल
नेता धार्मिक संस्थाओं से जुड़े लोग और आम नागरिकों में डर सताने लगा है। लोग जल्दी ही अपने घरों में चले जाते हैं।
किश्तवाड़, बलबीर सिंह जम्वाल। किश्तवाड़ जिले में आतंकवाद की आहट से लोग सहम उठे हैं। दो सियासी नेताओं सहित चार हत्याएं व आतंकियों के फिर सक्रिय होने से प्रशासन से लेकर सुरक्षा एजेंसियां सकते में हैं। किश्तवाड़ में वर्ष 1990 जैसा माहौल बन रहा है। बाजार शाम होते ही सूने पडऩे लगे हैं।
90 के दशक में जब कश्मीर के साथ किश्तवाड़ में भी आतंकवाद ने पैर पसारे थे तो तब हालात इतने खराब हो गए कि रोज शाम को कफ्यरू लगा दिया जाता था। कई नरसंहार भी हुए। दहशत में लोग जल्द अपना कामकाज निपटाकर घरों में चले जाते थे। कई दूरदराज क्षेत्रों में पलायन तक की नौबत आई। बाजार में दुकानदार सामान बाहर नहीं सजाते थे। उन्हें डर रहता था कि शहर में जब भी कोई वारदात हो जाए तो एकदम से भगदड़ में दुकान बंद करने में परेशानी न हो। ऐसे हालात 2002 तक रहे। उसके बाद धीरे-धीरे सेना और पुलिस ने आतंकवादियों को मौत के घाट उतारा।
वर्ष 2008 के बाद किश्तवाड़ में इक्का-दुक्का आतंकी को छोड़कर बाकी सभी मारे गए थे। सिर्फ एक आतंकी मोहम्मद अमीन उर्फ जहांगीर सरूरी बचा था जिसका आज कोई अता पता नहीं चला। किश्तवाड़ को आतंकवाद मुक्त घोषित कर दिया गया। इसके बाद माहौल शांत हो गया। वर्ष 2017 को महसूस होने लगा कि किश्तवाड़ में आतंकवाद फिर से पैर पसार रहा है। प्रशासन ने परवाह नहीं की। चोरी छिपे किश्तवाड़ में युवाओं की आतंकी संगठनों में भर्ती होने लगी। एक नवंबर 2018 को भाजपा के प्रदेश सचिव अनिल परिहार और उनके भाई अजीत दुकान बंद करके घर जा रहे थे तो रात साढ़े आठ बजे दोनों की गोलियां मारकर हत्या कर दी। इनके हत्यारे आज तक पकड़े नहीं गए। यह मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंप दिया। एनआइए ने छानबीन शुरू कर कई सुराग जुटाए।
किश्तवाड़ में माहौल अशांत, लोग डरे-सहमे
कुछ दिन बाद किश्तवाड़ से पाक की खुफिया एजेंसी आइएसआइ का जासूस पकड़ा गया। उसके बाद आंतकी गतिविधियों में शामिल मदरसे का शिक्षक और दो लोगों को पुलिस ने दबोचा। फिर किश्तवाड़ में डीसी के अंगरक्षक से बंदूक छीनने का मामला सामने आया। छानबीन में सामने आने लगा कि यह वारदात आंतकी है। इसमें आंतकी ओसामा बिन जावेद का नाम आ रहा था। अचानक नौ अप्रैल को दिन दिहाड़े आरएसएस नेता चंद्रकांत शर्मा और उनके अंगरक्षक राजेंद्र कुमार की गोली मारकर हत्या कर दी। तब से ही किश्तवाड़ में माहौल अशांत से बना है। नेता, धार्मिक संस्थाओं से जुड़े लोग और आम नागरिकों में डर सताने लगा है। लोग जल्दी ही अपने घरों में चले जाते हैं। शाम होते ही पूरा बाजार सूना पड़ जाता है। रात का कफ्र्य अभी भी जारी है।
नागसेनी और पाडर में छिपे आतंकी
किश्तवाड़ में जिन आठ आतंकियों के होने के दावे किए जा रहे उनमें कुछ नागसेनी और कुछ पाडर में छिपे हैं। सबसे पुराना आंतकी मोहम्मद अमीन उर्फ जांहगीर सरूरी और एक साल पहले आतंकी बना तालिब गुज्जर के साथ एक या दो आतंकवादी और हैं। सुरक्षा बलों को चिंता है कि कहीं ये आतंकी मचैल यात्र के दौरान वारदात न करें। अभी से ही किश्तवाड़ से गुलाबगढ़ तक सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता की जा रही है। गुलाबगढ़ में पहले पुलिस की तैनाती रहती थी। अब वहां एसएसबी को तैनात कर दिया है। किश्तवाड़ से गुलाबगढ़ तक आधा दर्जन से ज्यादा नाके हैं। मचैल यात्र से पहले मिंधंल यात्र जाती है। उसके बाद चिट्टौ माता सिंहासिनी की यात्र और उसके बाद मचैल यात्र चलती है। तीनों यात्रएं चुनौती होगी। सूत्रों के अनुसार इलाके में और आतंकी भी सक्रिय हो चुके हैं जिनके बारे में सुरक्षाबलों को भनक है।
मचैल यात्र चुनौती बनी : किश्तवाड़ के बिगड़ रहे हालात के बीच 25 जुलाई से शुरू हो रही मचैल यात्र करवाना भी सुरक्षा बलों के लिए चुनौती भरा होगा। देशभर से लाखों श्रद्धालु माता चंडी के दर्शन करने पहुंचते हैं। चिंता का कारण इसलिए है कि किश्तवाड़ में सक्रिय कुछ आतंकी यात्र मार्ग से सटे क्षेत्रों में छिपे हैं। उनके देखे जाने की सूचनाएं मिल रही हैं। हालांकि स्थानीय लोग आतंकियों के देखे जाने के दावे किए, लेकिन प्रशासन इसकी पुष्टि नहीं कर रहा है। यात्र किश्तवाड़ से गुलाबगढ़ तक गुजरती है। इन क्षेत्रों के साथ कई जंगल सटे हैं जो सुरक्षाबलों के खास चुनौती हैं।
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