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37वां सियाचिन दिवस: सेना की कर्मभूमि सियाचिन आज एडवेंचर टूरिज्म की पसंदीदा जगह बन रही

37th Siachen Day लद्दाख में विश्व का सबसे ऊंचा युद्ध क्षेत्र भारतीय युवाओं के बुलंद हौसले को परख रहा है। करीब चार दशक से भारतीय सेना की कर्मभूमि बना सियाचिन अब पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए देश-विदेश के पर्यटकों को अपनी ओर खींच रहा है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Tue, 13 Apr 2021 09:19 AM (IST)Updated: Tue, 13 Apr 2021 12:01 PM (IST)
37वां सियाचिन दिवस: सेना की कर्मभूमि सियाचिन आज एडवेंचर टूरिज्म की पसंदीदा जगह बन रही
सियाचिन को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने से दूरदराज के इलाकों के लिए रोजगार के साधन पैदा होंगे।

जम्मू, राज्य ब्यूरो: दुनिया का सबसे ऊंचा युद्ध क्षेत्र सियाचिन हमेशा ही आकर्षित करता रहा है। यह वह इलाका है, जब भारतीय सेना ने 1984 में आज के ही दिन आपरेशन मेघदूत चलाकर पाकिस्तान के मंसूबों को बर्फ में दफन कर दिया था। भारतीय जवानों ने दुश्मनों के ऐसे छक्के छुड़ाए कि वह आज तब इस बर्फीले रेगिस्तान की ओर देख तक न सके। तब से ही इस इलाके में भारतीय सेना मुस्तैदी के साथ डटी है। आज तक इन 37 वर्षों ने भारतीय सेना को हाई अल्टीट्यूड माउंटेन वारफेयर में सबसे बेहतर बना दिया है। सेना की यह कर्मभूमि आज एडवेंचर टूरिज्म के लिए पहली पसंद बन रही है।

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लद्दाख में विश्व का सबसे ऊंचा युद्ध क्षेत्र भारतीय युवाओं के बुलंद हौसले को परख रहा है। करीब चार दशक से भारतीय सेना की कर्मभूमि बना सियाचिन अब पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए देश-विदेश के पर्यटकों को अपनी ओर खींच रहा है। सियाचिन में पर्यटन को धार देने के लिए केंद्र ने कुमार पोस्ट तक पर्वतारोहियों को ट्रैङ्क्षकग के लिए रास्ता खोल दिया है। इस साल मई से पर्यटक इस इलाके में आने लगेंगे।

इसकी शुरुआत सेना की स्पेशल फोर्स के सेवानिवृत्त मेजर विवेक जैकब के नेतृत्व में दिव्यांगों का नौ सदस्यीय दल करेगा। इस अभियान के लिए बीस 20 दिव्यांग तैयारी कर रहे हैं। इनमें से अधिकतर स्पेशल फोर्स के वे कमांडो हैं जो विभिन्न अभियानों के दौरान घायल हो गए और फिर मेडिकल ग्राउंड पर सेवानिवृत्त हो गए। सियाचिन में पर्वतारोहियों के लिए ट्रैकिंग 11 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित आधार शिविर से 16 हजार फीट तक सियाचिन की कुमार पोस्ट तक ही संभव है। इससे आगे चुनौतियां बहुत ज्यादा बढ़ जाती हैं।

लद्दाख में तैनात रह चुके सेना के सेवानिवृत्त मेजर देवेंद्र सिंह का कहना है कि इसमें कोई शक नहीं है कि युवा सियाचिन को करीब से देखने के लिए कुछ भी कर सकते हैं, लेकिन क्षेत्र की सुरक्षा बहुत अहमियत रखती है। ऐसे में क्षेत्र में किसी भी प्रकार की गतिविधि पर नियंत्रण होना बहुत जरूरी है।

सेना की निगरानी में ही ट्रैकिंग संभव: सियाचिन की सुरक्षा का जिम्मा सेना की उत्तरी कमान की चौदह कोर संभाल रही है। पश्चिमी लद्दाख में नियंत्रण रेखा पर सियाचिन व पूर्व लद्दाख में चीन से सटी वास्तविक नियंत्रण रेखा की सुरक्षा को लेकर सेना बहुत गंभीर रहती है। इस दुर्गम इलाके की सुरक्षा को लेकर कोई जोखिम नहीं उठाया जा सकता है। सियाचिन में ट्रैकिंग सेना की कड़ी निगरानी में ही संभव है।

पर्यटन से पनपेंगे रोजगार: सियाचिन में पर्यटन से लद्दाख के लोग बड़ी उम्मीद लगाए हैं। इससे रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। लेह के कई दूरदराज गांवों से सेना के साथ पोर्टर के रूप में कार्य कर चुके युवा पर्वतारोहियों के गाइड बन सकते हैं। यही कारण है कि लद्दाख के जनप्रतिनिधि केंद्र सरकार से सियाचिन में पर्यटन को प्रोत्साहन देने का मुद्दा जोरशोर से उठा रहे हैं। लेह हिल काउंसिल के चीफ एग्जीक्यूटिव काउंसिलर ताशी ग्यालसन का कहना है कि सियाचिन को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने से दूरदराज के इलाकों के लिए रोजगार के साधन पैदा होंगे। 


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