टाटा टी जागो रे अभियान बना जरिया, बर्दाश्त नहीं, अब चुनौती देंगी महिलाएं
अभियान के पहले चरण में लोगो की प्रतिक्रियाशील प्रवृत्ति का प्रदर्शन किया गया था और सक्रियता का एक नया रूप पूर्व-सक्रियतावाद की अवधारणा पेश की गई थी।
समय तेज रफ्तार से बदल रहा है, अब हमें भी इसी के अनुसार खुद को सकारात्मक रूप से बदलने की जरूरत है।अगर ऐसा नहीं किया तो हमारे समाज का सम्पूर्ण विकास बेहद मुश्किल है। समाज में उपजी समस्याओं की बात करें, तो न जाने कितने मुद्दे नजर आ जाएंगे। लेकिन इनमें अहम मुद्दा है, ‘जेंडर सेंसिटाइजेशन’ जिसपर तुरंत कदम उठाने की जरूरत है।
टाटा टी ने इस साल की शुरुआत में अपने अभियान जागो रे 2.0 अलार्म बजने से पहले जागो रे का शुभारम्भ किया था जिसके जरिए लोगों से किसी हादसे से पहले कदम उठाने की अपील की गई थी। अब यह अभियान दूसरे चरण में प्रवेश कर रहा है, जिसमें लोगों से उन बदलावों की अगुआई करने की अपील की जा रही है, जिन्हें वे देखना चाहते हैं। अभियान के पहले चरण में लोगो की प्रतिक्रियाशील प्रवृत्ति का प्रदर्शन किया गया था और सक्रियता का एक नया रूप पूर्व-सक्रियतावाद की अवधारणा पेश की गई थी।
वहीं दूसरे चरण का उद्देश्य मौजूदा समय में देश के पीड़ादायक मसलों– महिला सुरक्षा एवं खेलों को प्रोत्साहन देने संबंधी प्रार्थनापत्र पर हस्ताक्षर कर पूर्व-करवाई और व्यवहारिक बदलाव के लिए लोगों को प्रेरित करना है। लड़कियों को जहां आज हमारे समाज में लड़कों से कम आंका जाता हैं, वहीं खेलों को पढ़ाई का हिस्सा नहीं माना जाता है। खेलों को सिर्फ पाठ्येतर गतिविधि माना जाता है।
सामाजिक अनुसंधान केंद्र की निदेशक रंजना कुमारी कहती हैं कि जब हम एक माता-पिता के रूप में अपने बच्चों में यह भेदभाव करते हैं तब समस्या की शुरूआत करते हैं। इस सोच को बदलने के लिए समाज को पहल करनी होगी। हमने अपनी बेटियों को देर रात तक बाहर जाने से तो मना कर दिया, ढंग के कपड़े पहनने को तो बोल दिया, पार्टियों में जाने से तो मना कर दिया। लेकिन कब तक समस्याओं से आंख-मिचौली खेल पाओगे? प्रतिक्रिया नहीं, अब परिवर्तन लाने का समय आ गया है।
जब हम अपने बच्चों को बचपन से ही पुरुष और महिलाओं को एक समान इज्जत देना सिखाएंगे, तभी हम एक नई दुनिया बना पाएंगे, जिसमें महिलाओं को डर कर नहीं जीना पड़ेगा। बच्चे कच्ची, मिट्टी के समान होते हैं, उन्हें जैसे ढाला जाता है, वे वैसा ही रूप और स्वभाव ले लेते हैं। बच्चों को बचपन में जो संस्कार दिए जाते हैं, वे ताउम्र उन पर ही चलते हैं, इसलिए लिंग संवेदीकरण विषय को स्कूलों से ही अनिवार्य बनाना चाहिए। अगर बचपन से ही बच्चोंं को समानता का पाठ पढ़ाया जाएगा, तो इसे वो ताउम्र नहीं भूल पाएंगे।
आज अगर लड़कों का रात दस बजे के बाद भी घर से बाहर रहना सामान्य माना जाता है, तो लड़कियों के लिए इसे गलत क्यों समझा जाता है? सिर्फ लड़कियों के पहनावे पर ही क्यों सवाल उठाए जाते हैं? लड़कियों को क्यों दबाकर रखा जाता है? ये सवाल कड़वे जरूर हैं, लेकिन यही हमारे समाज की सच्चाई है।
टाटा टी ने इस साल की शुरुआत में अपने अभियान जागो रे 2.0 अलार्म बजने से पहले जागो रे का शुभारम्भ किया था, जिसके माध्यम से लोगों से किसी हादसे से पहले कदम उठाने की अपील की गई थी। अब यह अभियान दूसरे चरण में प्रवेश कर रहा है, जिसमें लोगों से उन बदलावों की अगुआई करने की अपील की जा रही है, जिन्हें वह देखना चाहते हैं। अभियान के दूसरे चरण में लैंगिक समानता और खेलों को प्रोत्साहन देने के मुद्दों को उठाया गया है।
अगर आप महिलाओं को असल में बराबर समझते हैं और उन्हें सुरक्षित रखना चाहते हैं, टाटा के जागो रे अभियान से जुडि़ए। इस अभियान के तहत एक याचिका के जरिए एच.आर.डी मिनिस्ट्री से लिंग संवेदीकरण प्रोग्राम को हर स्कूल में अनिवार्य बनाने की अपील करें। आपकी एक छोटी-सी याचिका सामाजिक और विधायी परिवर्तन के लिए एक शक्तिशाली उपकरण बन सकती है। यह एक सर्वोत्तम अभ्यास साबित हो सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि सभी बदलाव चाहते हैं। अगर आप भी बदलाव के पक्षधर हैं, तो ये याचिका आपकी आवाज बन सकती है।
आपकी कोशिश को आज हम अपनी मुहिम के जरिये व इस याचिका के द्वारा ध्यानपूर्वक शोध करेंगे। इस याचिका पर आपका हस्ताक्षर एक सामाजिक कार्य होगा जो इस आंदोलन के अगले संभव पड़ाव में मदद करेगा। यह एक सफल जागरूकता अभियानों का नेतृत्व करने में सहायक बनेगा। इस जागरूता अभियान में शामिल होकर आप देश की आधी आबादी को उनका पूरा हक दिलाने की राह में एक कदम बढ़ा सकते हैं।
पेटिशन अभियान में शामिल होने के लिए यहां क्लिक करें
http://www.jagran.com/jaagore/petition-gender-sensitization.html
पेटिशन भरने के लिए आप 7815966666 पर मिस्ड कॉल भी दें सकते हैं।