आईवीएफ से जुड़े मिथक: कितनी हक़ीक़त, कितना झूठ
निःसंतानता से निपटने के लिए चिकित्सा विज्ञान में मौजूद बेहतरीन इलाजों में से सबसे कारगर है आईवीएफ। लेकिन इसके बारे में फैले मिथक के पीछे का सच जानकर जागरुकता बढ़ाना बहुत ही जरूरी है।
दुनियाभर में निःसंतानता के आंकड़े तेज़ी से बढ़ रहे हैं जिसके एक नहीं बल्कि कई अलग-अलग कारण हैं। निःसंतानता से निपटने के लिए चिकित्सा विज्ञान में कई तरह के इलाज हैं लेकिन आज के दौर में सबसे प्रचलित और कारगर इलाज है आईवीएफ यानी इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन जिसे टेस्ट ट्यूब बेबी भी कहा जाता है। इस तकनीक की मदद से निःसंतान महिला को गर्भधारण करने में मदद मिलती है। आईवीएफ एक बहुत ही पुरानी तकनीक है जिसे विज्ञान ने अपने शोध और आधुनिकता से बेहतर बनाया है। पिछले कुछ दशकों में ही आईवीएफ ने कई निःसंतान माताओं की सूनी गोद को भरा है।
आईवीएफ तकनीक में महिला के अंडों को पुरुष के स्पर्म के साथ लैब में रखा जाता है और इनके फर्टिलाइज़ होने के बाद इसे महिला के गर्भ में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। प्रत्यारोपित करने के बाद इस बात का पूरा ध्यान रखा जाता है कि महिला के गर्भ में यह सही तरीके से भ्रूण बन सके। आईवीएफ तकनीक आज के दौर में गर्भधारण की सबसे सफ़ल और कारगर तकनीक है जिससे दुनियाभर में हर साल लाखों निःसंतान दंपत्तियों के घर में किलकारियां गूंज रही हैं। लेकिन आईवीएफ से जुड़े कई मिथक ऐसे भी हैं जिनकी वजह से आज भी कई दंपत्ति आईवीएफ तकनीक से कतराते हैं। आइए जानते हैं आईवीएफ से जुड़े कुछ ऐसे मिथक जिनके बारे में जागरुकता बहुत ही ज़रूरी है।
मिथक 1 – आईवीएफ तकनीक से जन्मे बच्चे सामान्य तरीके से जन्म लेने वाले बच्चों से अलग होते हैं।
तथ्य – इंदिरा आईवीएफ वाराणसी केंद्र की आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. दीपिका मिश्रा के मुताबिक, आईवीएफ से जन्मे बच्चे मानसिक और शारीरिक रूप से बिल्कुल सामान्य तरीके से जन्म लेने वाले बच्चों की तरह ही होते हैं। आईवीएफ से जन्मे बच्चों को टेस्ट ट्यूब बेबी भी कहा जाता है लेकिन इन बच्चों और दूसरे बच्चों में कोई फ़र्क नहीं होता। जन्म के बाद इन बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास बिल्कुल सामान्य बच्चों की तरह ही होता है।
मिथक 2 – आईवीएफ प्रेगनेंसी के लिए महिला को गर्भावस्था की पूरी अवधि के लिए अस्पताल में रहना पड़ता है।
तथ्य – इंदिरा आईवीएफ दिल्ली केंद्र के विशेषज्ञ डॉ. अरविंद वैद ने इस मिथक का जवाब देते हुए कहा ‘आईवीएफ प्रक्रिया की शुरुआत में महिला को अंडों के संग्रह के लिए अस्पताल जाना होता है, जिसके कुछ दिनों बाद वो अंडे महिला के गर्भ में प्रत्यारोपित किए जाते हैं। इसके सफल हो जाने के बाद महिला को सिर्फ़ नियमित जांच के अलावा अस्पताल आने की ज़रुरत नहीं होती। ऐसे में ये केवल एक मिथक ही है कि महिला को गर्भावस्था की पूरी अवधि के दौरान अस्पताल में रहना पड़ता है।’
मिथक 3 – आईवीएफ तकनीक से सीज़ेरियन डिलिवरी की संभावनाएं बहुत ज़्यादा होती हैं।
तथ्य – इंदिरा आईवीएफ नवी मुंबई केंद्र की विशेषज्ञ डॉ. अमोल नायक के मुताबिक, आईवीएफ तकनीक से गर्भावस्था धारण करने वाली महिलाएं बिल्कुल सामान्य गर्भावस्था की ही तरह बच्चे को अपने गर्भ में रखती हैं। आईवीएफ तकनीक से डिलिवरी में किसी तरह की असमानता की कोई गुंजाइश नहीं रहती। इस तकनीक से नॉर्मल डिलिवरी होना पूरी तरह संभव है।
मिथक 4 – आईवीएफ तकनीक महिला के लिए सुरक्षित नहीं है।
तथ्य – आईवीएफ तकनीक महिला के लिए बिल्कुल सुरक्षित है। यह एक ऐसी तकनीक है जिसपर कई दशकों से शोध हो रहा है और अब तक इस तकनीक से किसी भी महिला को किसी भी तरह की परेशानी दर्ज नहीं की गई है। आईवीएफ तकनीक मां और जन्म लेने वाले बच्चे दोनों के लिए ही एक सुरक्षित तकनीक है। अब तक आईवीएफ के किसी भी तरह के दुष्प्रभाव को दर्ज नहीं किया गया है।
मिथक 5 – आईवीएफ तकनीक बहुत महंगी होती है।
तथ्य – आईवीएफ तकनीक एक बहुत ही विश्वसनीय तकनीक है जिसपर कई दशकों से शोध किया जा रहा है। चिकित्सा विज्ञान की उन्नति के साथ-साथ ही इस तकनीक को बेहतर बनाया गया है, जिससे इसपर होने वाले ख़र्च में भारी कमी आई है। आज से एक दशक पहले आईवीएफ का ख़र्च 3 से 5 लाख था जो अब महज़ 1 से 2 लाख रह गया है। लिहाज़ा इस मिथक में कोई सच्चाई नहीं है कि आईवीएफ तकनीक बहुत ही महंगी होती है। अब कोई भी निसंतान दंपत्ति आसानी से कम पैसे ख़र्च कर संतान सुख प्राप्त कर सकता है।
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