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वैवाहिक जीवन को सुखद बनाने के टिप्स

हर नववधू के मन में शादी और पति को लेकर कुछ आकांक्षाएं होती हैं। अगर उसका पार्टनर इन्हें समझ लेता है तो वैवाहिक जीवन बहुत सुखद तरीके से व्यतीत होता है... शादी की बात चलते ही लगभग हर लड़की के दिमाम में तमाम तरह के सपने पलने लगते हैं। सही जीवनसाथी

By ChandanEdited By: Published: Sat, 15 Nov 2014 12:31 PM (IST)Updated: Sat, 15 Nov 2014 01:57 PM (IST)
वैवाहिक जीवन को सुखद बनाने के टिप्स

हर नववधू के मन में शादी और पति को लेकर कुछ आकांक्षाएं होती हैं। अगर उसका पार्टनर इन्हें समझ लेता है तो वैवाहिक जीवन बहुत सुखद तरीके से व्यतीत होता है...

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शादी की बात चलते ही लगभग हर लड़की के दिमाम में तमाम तरह के सपने पलने लगते हैं। सही जीवनसाथी मिलने पर उसकी उम्मीदों को पंख लग जाते हैं। अपने साथी को लेकर वह तमाम तरह की कल्पनाएं करती है। हर लड़की चाहती है कि उसका साथी सच्चा प्यार करने वाला, खुशमिजाज और आकर्षक व्यक्तित्व वाला हो। आमतौर पर लड़कियों के दिमाग में अपने साथी को लेकर यही सोच रहती है कि उसके पार्टनर में ढेर सारी विशेषताएं हों। वह सबसे अलग और खास हो। कुछ खास विशेषताएं जिनके बारे में लगभग हर लड़की सोचती है...

-मेरा जीवनसाथी मेरे सुख-दुख में साथ निभाए।

-वह ईष्र्या करने वाला बिल्कुल न हो।

-यह समझे कि शादी एक मजबूत संस्था है और इस संस्था का कोई विकल्प नहीं है।

-अपने रिश्ते के प्रति ईमानदार हो।

-थोड़ी सी मुझे भी आजादी दे, ताकि मैं अपना मनपसंद काम भी कर सकूं।

-मेरे दोस्तों और परिचितों से सम्मानपूर्वक बात करे।

-खाना खाने से पहले मुझसे भी पूछे कि मैंने खाना खाया है या नहीं।

-अपने दायित्वों का सही तरीके से पालन करे।

-प्लीज, सॉरी, थैंक्स जैसे शब्दों का सही समय पर प्रयोग अवश्य करे।

-उसे अपने प्रेम को अभिव्यक्त करना आता हो।

-जीवनसाथी हसंमुख, खुशमिजाज साथ ही रोमांटिक भी हो।

-मेरा जीवनसाथी ऐसा हो, जो मेरी इज्जत करे। साथ ही मेरे परिवार वालों की भी पूरी रेस्पेक्ट करे।

-मेरे जीवनसाथी को मेरी परवाह हो। वह मेरे प्रति लापरवाही न दिखाए।

-मेरी बात को भी ध्यान से सुने। ऐसा न हो कि केवल अपनी ही चलाता रहे।

-मुझसे कोई गलती हो जाने पर मुझे समझाए न कि सबके सामने खरी-खोटी सुनाना शुरू कर दे।

-जीवनसाथी सिर्फ अपनी कहने की ही नहीं, दूसरों की सुनने की भी क्षमता रखता हो।

-उसकी सोच खुली हो। वह संकीर्ण मानसिकता वाला न हो अर्थात किसी से बात करता देखकर आग बबूला न हो।

-अगर मैं कभी हंसी-मजाक करूं तो उसे मजाक स्वरूप ही ले। ऐसा न हो कि खुद तो चाहे जो कुछ कहता रहे, लेकिन मेरे मजाक करने पर विफर पड़े।

-मेरे बनाए खाने की तारीफ करे। भले ही वह कम स्वादिष्ट बना हो, पर मेरी भावनाओं को तो समझे।

-ऐसा न हो कि घर के सारे कामों की जिम्मेदारी मुझ पर ही डाल दे। मानो उसे पत्नी नहीं घर में काम करने वाली कोई बाई मिल गई है। परिवार सिर्फ एक की जिम्मेदारी नहीं है। यह दोनों की पारस्परिक जिम्मेदारी है।

-कभी-कभी बगैर कुछ कहे मेरी अनकही भावनाओं को भी समझने की कोशिश करे और मेरी भावनाओं की कद्र करे।

-उसके पास मुझसे बात करने का पर्याप्त समय हो। जब मैं कुछ कहूं तो वह उसे धैर्यपूर्वक सुने।

-मैं मोम की गुडिय़ा नहीं हूं। मेरी भी कुछ भावनाएं, इच्छाएं और आकांक्षाएं हैं, उनको समझने की कोशिश करे।

(निहारिका नारायण)


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