कभी जूते खरीदने के लिए नही थे रुपये, आज हॉकी के स्टार हैं सुमित; जानिए कैसे हासिल किया मुकाम
सुमित बताते हैं कि 2004-05 के गर्मियों के दिन थे जब बड़े भाई अमित जूते मिलने का लालच देकर उनको गांव में ही चल रही हॉकी अकादमी के ग्राउंड तक लेकर पहुंचे थे।
सोनीपत [दीपक गिजवाल]। बेशक खेल कोई भी हो हर खिलाड़ी का सपना होता है देश के लिए कुछ ऐसा कर जाए कि दुनिया याद रखे। गांव कुराड़ के हॉकी खिलाड़ी सुमित कुमार ने जिस वक्त ये सपना देखा उस वक्त घर में खाने तक के लाले थे। हालात ऐसे थे कि पांव में जूते थे और न ही बेहतर स्टिक, लेकिन आंखों में देश के लिए खेलने के सपना और दिल में आखिर तक हार नहीं मानने की जिद थी।
उनके कौशल को निखारने में मदद देने वाले साई कोच पीयुष दूबे बताते हैं कि सुमित को दूसरे खिलाड़ियों से जो बात अलग करती है जब तक बेस्ट ना दें तो वह रुकता नहीं है, फिर चाहे मैदान की बात हो या अभ्यास की।
सुमित बताते हैं कि 2004-2005 के गर्मियों के दिन थे जब बड़े भाई अमित जूते मिलने का लालच देकर उनको गांव में ही चल रही हॉकी अकादमी के ग्राउंड तक लेकर पहुंचे थे। कोच ने जूते व हॉकी स्टिक देने का वादा किया तो लालच में हर रोज ग्राउंड तक पहुंचने लगे। देखते ही देखते कोच के चेहते खिलाड़ियों में शुमार हो गए। हॉकी ग्राउंड से लेकर घर में खाने-पीने तक का ध्यान कोच रखने लगे। फिर एक दिन ऐसा आया जब साई सेंटर में कोचिंग लेने का मौका मिला। वहां कोच एनके गौतम ने प्रतिभा को पहचाना तो आगे मौके मिलने लगे।
प्रतियोगिता दर प्रतियोगिता बेहतर प्रदर्शन कर खुद को साबित किया जिसके बाद राह आसान होती चली गई। कड़ी मेहनत का फल है कि इंडिया के लिए खेलने का मौका मिला। हाल में सुमित बेंगलुरु में आयोजित हॉकी के राष्ट्रीय शिविर में अभ्यास में जुटे हैं।
सुमित वही खिलाड़ी हैं जिसके शानदार प्रदर्शन की बदौलत भारत ने 2016 में जूनियर हॉकी का वर्ल्ड कप जीता था। उनकी कामयाबी में एशियाई कप से लेकर एशियन चैंपियनशिप का मेडल भी शामिल है जबकि इसके अतिरिक्त जोहर कप एवं सुल्तान अजलान शाह हॉकी टूर्नामेंट में भी उसकी हॉकी स्टिक खूब बोली थी। सुमित ने 2017 में सुल्तान अजलान शाह कप से राष्ट्रीय टीम के लिए पर्दापण किया था।
मजदूर पिता के सपने करने थे पूरे
सुमित के पिता प्रताप सिंह एक मजदूर हैं और मां कृष्णा गृहिणी हैं। सुमित का बड़ा भाई मुरथल विवि में डीसी रेट पर कार्यरत हैं, तो दूसरे बड़े भाई अमित गांव में ही बच्चों को हॉकी के गुर सिखाते हैं। परिवार में सबसे छोटे सुमित ने हॉकी खेलना कुराड़ गांव में ही शुरू किया। सुमित कहते हैं कि शुरुआत से ही काफी आर्थिक तौर पर कठिनाइयों का सामना किया है। यही कारण है कि हौसला इतना बुलंद हो गया।
जी-जान से अभ्यास में जुटे हैं सुमित
बेंगलुरु में अभ्यास कर रहे सुमित इस समय आत्मविश्वास से भरे हैं। सुमित का कहना है जब जूनियर वर्ल्ड कप हाथों में उठाया था तभी से दिली ख्वाहिश ओलंपिक खेलने की थी, वैसे भी यह सपना तब से है जब हाथों में स्टिक थामी थी। इसके लिए जी-जान से अभ्यास में जुटे हैं।
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