Olympic Day विशेष: अंपायर ने नहीं दिया था पेनाल्टी कार्नर, वरना पाकिस्तान को हरा देते
ओलंपिक खेल चुके जालंधर के विधायक परगट सिंह ओलंपियन संजीव कुमार और ओलंपियन वरिंदर सिंह ने दैनिक जागरण के साथ Olympic Day पर अपने अनुभव साझा किए।
संवाददाता, कमल किशोर। ओलंपिक खेलों में भाग लेने वाले खिलाड़ी आज भी गर्व महसूस करते हैं और कई खिलाड़ी इस उम्मीद के साथ अगले ओलंपिक की तैयारी के लिए जुटे हैं कि वह पदक हासिल कर देश का गर्व बढ़ाएंगे। ओलंपिक खेल चुके जालंधर के हॉकी खिलाड़ियों ओलंपियन व विधायक परगट सिंह, ओलंपियन संजीव कुमार और ओलंपियन वरिंदर सिंह ने दैनिक जागरण के साथ अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने कई पहलुओं पर दैनिक जागरण के साथ खुलकर बात की।
1972 में कांस्य जीतने की खुशी जहां आज भी उन्हें गर्व महसूस करवाती है तो 1996 में सेमीफाइनल में न पहुंच पाने की टीस आज भी खिलाडि़यों के मन में बरकरार है।
अंपायर के एक गलत फैसले ने रोक दी स्वर्ण पदक की राह
पूर्व ओलंपियन ने उन पलों को याद करते हुए बताया, भारत और पाकिस्तान का मैच क्रिकेट का हो या फिर हॉकी का, दर्शकों में मैच देखने में काफी उत्साह रहता है। मुझे आज भी याद है कि साल 1996 में यूएसए में ओलंपिक गेम्स का आयोजन हुआ। हमारा मैच पाकिस्तान के साथ था। टीम बेहतर प्रदर्शन कर रही थी।
भारतीय टीम ने पाकिस्तान टीम पर लगातार दबाव बनाकर रखा। स्टेडियम में दर्शक भी रोमांच से भरे इस मैच का उत्साह के साथ आनंद ले रहे थे। मैच के दूसरे हॉफ में भारतीय टीम को मिलने वाला पेनाल्टी कार्नर अंपायर ने नहीं दिया। टीम के साथ धक्का किया गया।
अगर अंपायर से पेनाल्टी कार्नर मिलता तो तय था कि हम उसे गोल में तब्दील कर पाकिस्तान टीम पर शून्य के मुकाबले एक गोल से बढ़त बना लेते और यह गोल हमे सेमीफाइनल में प्रवेश दिलवा देता। पेनाल्टी कार्नर न मिलने की वजह से मैच के अंत में दोनों टीमों का स्कोर 0-0 रहा।
आज भी जब पाकिस्तान के साथ मैच के क्षण याद आते है तो दुख होता है कि टीम में ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने की क्षमता थी। भारतीय टीम शानदार प्रदर्शन कर रही थी। प्वाइंट बेस के चलते हम सेमीफाइनल में प्रवेश नहीं कर पाए।