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Tokyo Olympics: भारतीय हाकी का हुआ पुनर्जन्म, जीत के बाद खिलाड़ियों पर हुई ईनाम की बारिश

1980 में मास्को ओलिंपिक में स्वर्ण जीतने के बाद भारतीय हाकी में ऐसा सूखा आया कि टीम को पदक जीतने के लिए 41 साल तक इंतजार करना पड़ा।अतीत की मायूसियों से निकलकर कप्तान मनप्रीत सिंह की टीम ने पिछड़ने के बाद जबर्दस्त वापसी करते हुए मेडल जीता।

By Sanjay SavernEdited By: Published: Thu, 05 Aug 2021 08:10 PM (IST)Updated: Fri, 06 Aug 2021 07:15 PM (IST)
Tokyo Olympics: भारतीय हाकी का हुआ पुनर्जन्म, जीत के बाद खिलाड़ियों पर हुई ईनाम की बारिश
भारतीय हॉकी टीम के खिलाड़ी जश्न मनाते हुए (एपी फोटो)

अभिषेक त्रिपाठी, नई दिल्ली। भारतीय हाकी पुरुष टीम ने ओलिंपिक में अपने स्वर्ण पदक का अभियान 1928 में एम्सटर्डम ओलिंपिक से शुरू किया था। उस समय हाकी के जादूगर और 'दद्दा' के नाम से मशहूर मेजर ध्यानचंद का पूरे विश्व में बोलबाला था। उन्होंने अपनी हाकी की स्टिक से ऐसा जादू चलाया कि 1928 से 1936 तक देश ने इन खेलों में स्वर्णिम हैट्रिक लगा दी थी। हाकी में भारत ने लगातार 10 पदक जीते थे लेकिन 1980 में मास्को ओलिंपिक में स्वर्ण जीतने के बाद भारतीय हाकी में ऐसा सूखा आया कि टीम को पदक जीतने के लिए 41 साल तक इंतजार करना पड़ा। इस दौरान कितने दिग्गज खिलाड़ी आए और गए, लेकिन ओलिंपिक में पदक कोई नहीं ला सका। अब टोक्यो में कांस्य जीतकर भारतीय हाकी का पुर्नजन्म हुआ है।

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अतीत की मायूसियों से निकलकर कप्तान मनप्रीत सिंह की टीम ने पिछड़ने के बाद जबर्दस्त वापसी करते हुए रोमांच की पराकाष्ठा पर पहुंचे मैच में जर्मनी को 5-4 से हराकर ओलिंपिक में कांसे का तमगा जीत लिया। मैच के आखिरी छह सेकेंड में जर्मनी को पेनाल्टी मिल गई और उस समय जर्मनी की कोशिश मैच को पेनाल्टी शूटआउट में ले जाने की थी लेकिन गोलकीपर पीआर श्रीजेश ने यह पेनाल्टी बचाकर टीम को ऐतिहासिक जीत दिला दी। हाकी के गौरवशाली इतिहास को नए सिरे से दोहराने के लिए मील का पत्थर साबित होने वाली इस जीत ने पूरे देश को भावुक कर दिया। इस रोमांचक जीत के कई सूत्रधार रहे जिनमें दो गोल करने वाले सिमरनजीत सिंह (17वें मिनट, 34वें मिनट), हार्दिक सिंह (27वां मिनट), हरमनप्रीत सिंह (29वां मिनट) और रूपिंदर पाल सिंह (31वां मिनट) तो थे ही, लेकिन इस पूरे टूर्नामेंट में एक हीरो था जो दीवार बनकर खड़ा रहा और उसका नाम है पीआर श्रीजेश।

पहला क्वार्टर : भारत के लिए मुकाबले की शुरुआत अच्छी नहीं रही। जर्मनी ने शुरुआत में ही दोनों छोर से हमले करके भारतीय रक्षा पंक्ति को दबाव में डाला। दूसरे ही मिनट में ओरूज ने गोल कर दिया। पहले क्वार्टर में जर्मनी की टीम मनमाफिक तरीके से भारतीय डी में प्रवेश करने में सफल रही। श्रीजेश ने शानदार प्रदर्शन करते हुए जर्मनी को बढ़त दोगुनी करने से रोका और उसके दो हमलों को नाकाम किया। जर्मनी को अंतिम मिनट में लगातार चार पेनाल्टी कार्नर मिले, लेकिन अमित रोहिदास ने विरोधी टीम को सफलता हासिल नहीं करने दी।

दूसरा क्वार्टर : दूसरे क्वार्टर में भारत की शुरुआत अच्छी रही। सिमरनजीत ने दूसरे ही मिनट में नीलाकांता शर्मा से डी में मिले लंबे पास पर रिवर्स शाट से जर्मनी के गोलकीपर एलेक्जेंडर स्टेडलर को छकाकर गोल किया और भारत को 1-1 से बराबरी दिला दी। जर्मनी ने दो मिनट में दो गोल दागकर 3-1 की बढ़त बना ली। भारतीय टीम ने पलटवार किया और तीन मिनट में दो गोल दागकर बराबरी हासिल कर ली। टीम को 27वें मिनट में पेनाल्टी कार्नर मिला। ड्रैगफ्लिकर हरमनप्रीत के प्रयास को गोलकीपर ने रोका लेकिन रिबाउंड पर हाíदक ने गेंद को गोलपोस्ट में डाल दिया। भारत को एक मिनट बाद एक और पेनाल्टी कार्नर मिला और इस बार हरमनप्रीत ने अपनी दमदार ड्रैगफ्लिक से गोल कर भारत को 3-3 से बराबरी दिला दी।

तीसरा क्वार्टर : तीसरे क्वार्टर में भारतीय टीम पूरी तरह हावी रही। पहले ही मिनट में जर्मनी के डिफेंडर ने मनदीप सिंह को गिराया जिससे भारत को पेनाल्टी स्ट्रोक मिला। रूपिंदर ने स्टेंडलर के दायीं ओर से गेंद को गोल में डालकर भारत को पहली बार मैच में आगे कर दिया। टोक्यो ओलिंपिक में रूपिंदर का यह चौथा गोल है। भारत ने इसके बाद दायीं छोर से एक ओर मूव बनाया और डी के अंदर गुरजंत के पास पर सिमरनजीत ने गेंद को गोल में डालकर भारत को 5-3 से आगे कर दिया। भारत को इसके बाद लगातार तीन और जर्मनी को भी लगातार तीन पेनाल्टी कार्नर मिले, लेकिन दोनों ही टीमें गोल करने में नाकाम रही।

चौथा क्वार्टर : चौथे क्वार्टर के तीसरे मिनट में जर्मनी को एक और पेनाल्टी कार्नर मिला और इस बार लुकास विंडफेडर ने श्रीजेश के पैरों के बीच से गेंद को गोलपोस्ट में डालकर स्कोर 4-5 कर दिया। भारत को 51वें मिनट में गोल करने का स्वíणम मौका मिला। लंबे पास पर गेंद कब्जे में लेने के बाद मनदीप इसे डी में ले गए। मनदीप को सिर्फ गोलकीपर स्टेडलर को छकाना था, लेकिन वह विफल रहे। श्रीजेश ने इसके बाद जर्मनी के एक और पेनाल्टी कार्नर को नाकाम किया। जर्मनी की टीम बराबरी की तलाश में अंतिम पांच मिनट में बिना गोलकीपर के खेली। मैच के आखिरी छह सेकेंड बचे थे और जर्मनी को पेनाल्टी कार्नर मिला, लेकिन भारत की दीवार श्रीजेश ने जर्मनी को गोल करने नहीं दिया और भारत को जीत दिला दी।

इनामों की वर्षा

— 2.5 करोड़ रुपये हरियाणा सरकार राज्य के प्रत्येक हाकी खिलाड़ी को देगी। इसके अलावा उन्हें खेल विभाग में नौकरी और रियायती दर प्लाट दिए जाएंगे। 

- 1 करोड़ रुपये की पुरस्कार राशि मध्य प्रदेश सरकार विवेक सागर और नीलाकांता को देगी। 

—1 करोड़ रुपये पंजाब सरकार अपने राज्य के खिलाडि़यों को देगी। कप्तान मनप्रीत सिंह, हरमनप्रीत सिंह, रूपिंदर पाल सिंह, हाíदक सिंह, शमशेर सिंह, दिलप्रीत सिंह, गुरजंत सिंह और मनदीप सिंह पंजाब से हैं। 

जीत के बाद गोल पोस्ट पर बैठ गए श्रीजेश

भारतीय गोलकीपर श्रीजेश ने कहा, 'यह पुनर्जन्म है। 41 साल हो गए। अब हमने पदक जीत लिया जिससे युवा खिलाडि़यों को हाकी खेलने की प्रेरणा और ऊर्जा मिलेगी। यह खूबसूरत खेल है। हमने युवाओं को हाकी खेलने का एक कारण दिया है।' जीत के बाद भारतीय खिलाड़ी जहां रोते हुए एक-दूसरे को गले लगा रहे थे, वहीं, श्रीजेश गोलपोस्ट पर बैठ गए थे। उन्होंने कहा, 'मैं आज हर बात के लिए तैयार था क्योंकि यह 60 मिनट सबसे महत्वपूर्ण थे। मैं 21 साल से हाकी खेल रहा हूं और मैंने खुद से इतना ही कहा कि 21 साल का अनुभव इस 60 मिनट में दिखा दो। एक पेनाल्टी बचानी है।' पूरे ओलिंपिक में श्रीजेश ने कई मौकों पर भारतीय टीम के लिए संकटमोचक की भूमिका निभाई। उन्होंने कहा, 'मेरी प्राथमिकता गोल होने से रोकना है। इसके बाद दूसरा काम सीनियर खिलाड़ी होने के नाते टीम का हौसला बढ़ाना है। मुझे लगता है कि मैंने अपना काम अच्छे से किया।'

ओलिंपिक में भारतीय टीम का सफर

1928 एम्सटरडम : ब्रिटिश हुकूमत के दौरान भारतीय टीम ने फाइनल में नीदरलैंड्स को 3-2 से हराकर पहली बार हाकी का स्वर्ण पदक जीता। भारतीय हाकी को ध्यानचंद के रूप में नया सितारा मिला जिन्होंने 14 गोल दागे।

1932 लास एंजिलिस: टूर्नामेंट में सिर्फ तीन टीमें भारत, अमेरिका और जापान। भारतीय टीम 42 दिन का समुद्री सफर तय करके पहुंची और दोनों टीमों को हराकर खिताब जीता

1936 बर्लिन : ध्यानचंद की कप्तानी वाली भारतीय टीम ने मेजबान जर्मनी को 8-1 से हराकर लगातार तीसरी बार खिताब जीता

1948 लंदन : आजाद भारत का पहला ओलिंपिक खिताब जिसने दुनिया के खेल मानचित्र पर भारत को पहचान दिलाई। ब्रिटेन को 4-0 से हराकर भारतीय टीम लगातार चौथी बार ओलिंपिक चैंपियन बनी और बलबीर सिंह सीनियर के रूप में हाकी को एक नया नायक मिला

1952 हेलसिंकी : मेजबान नीदरलैंड्स को हराकर भारत फिर चैंपियन। भारत के 13 में से नौ गोल बलबीर सिंह सीनियर के नाम जिन्होंने फाइनल में सर्वाधिक गोल करने का रिकार्ड भी बनाया

1956 मेलबर्न : पाकिस्तान को फाइनल में एक गोल से हराकर भारत ने लगातार छठी बार ओलिंपिक में स्वर्ण पदक जीतकर अपना दबदबा कायम रखा

1960 रोम : फाइनल में एक बार फिर चिर प्रतिद्वंद्वी भारत और पाकिस्तान आमने-सामने। इस बार पाकिस्तान ने एक गोल से जीतकर भारत के अश्वमेधी अभियान पर नकेल कसी

1964 टोक्यो : पेनाल्टी कार्नर पर मोहिंदर लाल के गोल की मदद से भारत ने पाकिस्तान को हराकर एक बार फिर ओलिंपिक स्वर्ण जीता

1968 मेक्सिको : ओलिंपिक के अपने इतिहास में भारत पहली बार फाइनल में जगह नहीं बना सका। सेमीफाइनल में आस्ट्रेलिया से मिली हार

1972 म्युनिख : भारत सेमीफाइनल में पाकिस्तान से हारा, लेकिन प्लेआफ में नीदरलैंड्स को 2-1 से हराकर कांस्य पदक जीता।

1976 मांट्रियल : फील्ड हाकी में पहली बार एस्ट्रो टर्फ का इस्तेमाल। भारत ग्रुप चरण में दूसरे स्थान पर रहा और 58 साल में पहली बार पदक की दौड़ से बाहर। सातवें स्थान पर।

1980 मास्को : नौ टीमों के बहिष्कार के बाद ओलिंपिक में सिर्फ छह हाकी टीमें। भारत ने स्पेन को 4-3 से हराकर स्वर्ण पदक जीता जो उसका आठवां और अब तक का आखिरी स्वर्ण था।

1984 लास एंजिलिस : 12 टीमों में भारत पांचवें स्थान पर रहा।

1988 सियोल : परगट सिंह की अगुआई वाली भारतीय टीम का औसत प्रदर्शन। पाकिस्तान से क्लासीफिकेशन मैच हारकर छठे स्थान पर।

1992 बार्सिलोना : भारत को सिर्फ दो मैचों में अर्जेंटीना और मिस्त्र के खिलाफ मिली जीत। निराशाजनक सातवें स्थान पर।

1996 अटलांटा : भारत के प्रदर्शन का ग्राफ लगातार गिरता हुआ। इस बार आठवें स्थान पर।

2000 सिडनी : एक बार फिर क्लासीफिकेशन मैच तक खिसका भारत सातवें स्थान पर।

2004 एथेंस : धनराज पिल्लै का चौथा ओलिंपिक। भारत ग्रुप चरण में चौथे और कुल सातवें स्थान पर।

2008 बीजिंग : भारतीय हाकी के इतिहास का सबसे काला पन्ना। चिली के सैंटियागो में क्वालीफायर में ब्रिटेन से हारकर भारतीय टीम 88 साल में पहली बार ओलिंपिक के लिए क्वालीफाई नहीं कर सकी।

2012 लंदन : भारतीय हाकी टीम एक भी मैच नहीं जीत सकी। ओलिंपिक में पहली बार 12वें और आखिरी स्थान पर।

2016 रियो : भारतीय टीम क्वार्टर फाइनल में पहुंची, लेकिन बेल्जियम से हारी। आठवें स्थान पर रही।

2020 टोक्यो : तीन बार की चैंपियन जर्मनी को 5-4 से हराकर भारत ने 41 साल बाद ओलिंपिक में पदक जीता। मनप्रीत सिंह की कप्तानी में भारतीय टीम ने रचा इतिहास।

कोट----

भारत में लोग हाकी को भूल रहे थे। वे हाकी को प्यार करते हैं लेकिन उन्होंने यह उम्मीद छोड़ दी थी कि हम जीत सकते हैं। वे भविष्य में हमारे से और अधिक उम्मीदें लगा पाएंगे। हमारे ऊपर विश्वास रखें।

- रूपिंदर पाल सिंह, ड्रैग फ्लिकर

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दो गोल से पिछड़ने के बाद भी हमने हार नहीं मानी थी और एक दूसरे से यही कह रहे थे कि यही हमारे पास कुछ कर गुजरने का आखिरी मौका है, बाद में पूरी जिंदगी पछताना नहीं है।

- हरमनप्रीत सिंह, उप कप्तान

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हम सेमीफाइनल हार गए थे। पूरी टीम दुखी थी, लेकिन हमने साथ मिलकर एक-दूसरे का मनोबल बढ़ाया। हम हमेशा से टीम सबसे पहले मानसिकता पर जोर देते आए हैं। सेमीफाइनल में हार के बाद आज इस तरह से वापसी करना जबर्दस्त था। यह ओलिंपिक सबसे अलग था। कोरोना की वजह से सब कुछ बदला हुआ था। इन खिलाडि़यों ने काफी मेहनत की है और बलिदान भी दिए हैं।

- ग्राहम रीड, कोच

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गोल मेरी स्टिक से भले ही निकले हो, लेकिन यह टीम के प्रयास का नतीजा होता हैं। हमने दिखा दिया कि हम क्या कर सकते हैं।

- सिमरनजीत सिंह


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