दीवार फांदकर हॉकी के मैदान में पहुंचे मनप्रीत सिंह, भारत के लिए रच दिया इतिहास
किसी इंसान को जितना चाहे रोक लो लेकिन उसके सितारे उसे उसके ट्रैक पर ले ही आते हैं। ऐसा ही कुछ मनप्रीत सिंह के साथ हुआ है जिनके परिवार ने उनको रोका लेकिन उन्होंने इतिहास रच दिया।
जालंधर, कमल किशोर। हॉकी के इतिहास में जो अब तक न हुआ, वो अब हुआ। बीते दिनों भारत की राष्ट्रीय पुरुष हॉकी टीम के कप्तान मनप्रीत सिंह को अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ ने वर्ष 2019 का सर्वश्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ी घोषित किया। वह यह खिताब हासिल करने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बने। टीम को लगातार सफलता की ओर ले जा रहे मनप्रीत से अब एक और इतिहास बनाने की उम्मीद लगाए बैठा है देश, और वो है ओलंपिक में मेडल।
कहते हैं किसी इंसान को जितना चाहे रोक लो, लेकिन उसके सितारे उसे उसके ट्रैक पर ले ही आते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ पंजाब के मनप्रीत सिंह के साथ, जिनके परिवार ने उन्हें हॉकी खेलने से लगातार रोका, लेकिन वह इसी खेल के लिए बने थे। तभी तो वह न केवल भारतीय टीम के कप्तान बने, बल्कि बीते दिनों वर्ष 2019 के सर्वश्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ी होने का खिताब हासिल कर इसे पाने वाले पहले भारतीय भी बने..
कई खिताब किए अपने नाम
साल 2014 में ग्लासगो में हुए कॉमन वेल्थ गेम्स में रजत पदक, इसी साल हुए एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक, लंदन में हुई हॉकी चैंपियनशिप में रजत पदक, साल 2017 में एशिया कप में स्वर्ण पदक, 2017 में हॉकी वल्र्ड लीग कांस्य पदक, साल 2018 चैंपियनशिप ट्राफी में रजत पदक जैसे कई खिताब हासिल कर चुके हैं।
ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी है कि पंजाब के जालंधर से निकला यह खिलाड़ी इस मुकाम तक कैसे पहुंचा.. और वो भी तब जब परिवार का कोई भी सदस्य उनके हॉकी खेलने के पक्ष में नहीं था। दरअसल, मनप्रीत के दो बड़े भाई अमनदीप सिंह और सुखराज सिंह हॉकी खेलते थे। शुरू-शुरू में मनप्रीत अपने भाइयों को खेलते हुए देखने के लिए मिट्ठापुर के खेल मैदान में पहुंच जाते थे। भाइयों को देखकर मनप्रीत में भी हॉकी खेलने की इच्छा बढ़ने लगी।
परिवार नहीं चाहता था कि सात-आठ साल की उम्र में मनप्रीत हॉकी खेले। परिवार के सदस्यों को चिंता सताती थी कि मैदान में मनप्रीत को किसी प्रकार की चोट न लग जाए, इसलिए मैदान से दूर रखने की कोशिश की। कई बार उनको घर में बंद रखने की कोशिश की गई, लेकिन वह काफी जिद्दी थे और किसी न किसी तरह घर से भागकर मैदान में पहुंच जाते। परिवार से बचकर चोरी छिपे हॉकी खेलते।
मनप्रीत की हॉकी के प्रति जिद ऐसी थी कि वह कई बार घर की दीवार फांदकर मैदान में पहुंचते थे। उन्होंने आठ साल की उम्र में हॉकी स्टिक थाम ली थी। हॉकी पकड़ने के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा और इस खेल में एक के बाद एक नए मुकाम हासिल करते गए। मनप्रीत सिंह का कहना है कि टोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतना उनका लक्ष्य है। शादी के सवाल पर हंसकर बोले, शादी तो एक दिन हो ही जाएगी, अभी पूरा फोकस केवल मिशन ओलंपिक पर है। ओलंपिक के बाद शादी के बारे में सोच सकता हूं।
हॉकी के जुनून से रिश्तेदार हो जाते थे नाराज
भाई सुखराज सिंह ने कहा कि मनप्रीत में हॉकी का जुनून ऐसा था कि वह रिश्तेदारों के घरों में होने वाले कार्यक्रमों में कम जाता था। कार्यक्रमों के कुछ दिन पहले कोई हॉकी का टूर्नामेंट होता था तो वह किसी कार्यक्रम में शामिल नहीं होता। बस टूर्नामेंट की तैयारी को प्राथमिकता देता।
19 साल की उम्र में भारत के लिए खेलना शुरू किया
मनप्रीत ने 19 साल की उम्र में भारत के लिए खेलना शुरू कर दिया था। साल 2011 में भारत के लिए खेलना शुरू किया और साल 2012 ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने अभी तक 260 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले हैं। साल 2014 में एशिया के जूनियर प्लेयर ऑफ द ईयर के खिताब से उन्हें नवाजा गया। इससे पहले साल 2013 हुए हॉकी जूनियर विश्व कप में मनप्रीत भारतीय जूनियर पुरुष हॉकी टीम के कप्तान बने।
नए चेहरों को मिल रहा मौका, बेहतर कर आगे बढ़ रहे युवा
मनप्रीत सिंह ने दैनिक जागरण से फोन पर बातचीत में कहा कि दोनों भाइयों को देखकर हॉकी खेलना शुरू किया था। पहली से छठी कक्षा तक मिट्ठापुर के गुरु नानक पब्लिक स्कूल में पढ़ाई की। इसके बाद सरकारी मॉडल सीनियर सेकेंडरी स्कूल, लाडोवाली रोड में दसवीं तक पढ़ाई की। इसी दौरान सुरजीत हॉकी एकेडमी को ज्वाइन कर लिया। एकेडमी के ङिालमिल और मिट्ठापुर के कोच बलदेव सिंह से कोचिंग ली। डीएवी कॉलेज में बीए आर्ट्स की पढ़ाई के साथ-साथ डीएवी कॉलेज की हॉकी टीम में शामिल था। प्रो. मनु सूद उस समय कोच थे।
मनप्रीत ने बताया कि टीम में नए चेहरों को मौका मिल रहा है। जो खिलाड़ी बेहतर कर रहा है वही टीम में जगह बना रहा है। अगर खिलाड़ी अनुशासन के साथ बेहतर प्रदर्शन करें तो टीम ओलंपिक के फाइनल तक पहुंच सकती है। उम्मीद है कि इस बार टीम देश का 40 वर्ष का सूखा खत्म कर पदक जीतकर लौटेगी। भारत ने ओलंपिक में आखिरी पदक 1980 में मॉस्को में जीता था। इसके बाद भारत ने आठ बार ओलंपिक में हिस्सा लिया, लेकिन एक बार भी पदक जीतकर नहीं ला पाई। टीम उत्साह और सकारात्मकता के साथ मैदान में उतरेगी। उम्मीद है कि हम इस ओलंपिक में पदक जरूर जीतेंगे।
चोट न लग जाए इसलिए रोकते थे
मनप्रीत के बड़े भाई सुखराज सिंह ने कहा कि वह स्वयं राज्य स्तर तक हॉकी खेल चुके हैं। मनप्रीत दोनों भाइयों को हॉकी खेलते देखता था। एक दिन वह भी हॉकी स्टिक हाथ में पकड़ कर मैदान में पहुंच गया। कई बार हॉकी खेलने से मना किया, लेकिन इसकी जिद्द के आगे परिवार वालों की एक न चली। दीवार फांद कर मैदान में खेलने के लिए पहुंच जाता था। हम बस उसे चोट लगने से बचाना चाहते थे, लेकिन आज मनप्रीत ने सर्वश्रेष्ठ पुरुष खिलाड़ी का अवार्ड हासिल किया है तो गर्व महसूस हो रहा है।
बेटा कर रहा है देश का नाम रोशन अब ओलंपिक में स्वर्ण की चाहत
मनप्रीत की मां मनजीत कौर ने कहा कि बेटे में हॉकी खेलने की ललक थी। मना करने के बावजूद रुका नहीं। सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का अवार्ड मिला है, इससे बड़ी खुशी मां के लिए क्या हो सकती है। अब बेटा ओलंपिक में शानदार प्रदर्शन कर स्वर्ण जीतकर लाए।
11 की उम्र में सुरजीत की शरण में
मनप्रीत 11 साल की उम्र में कोच सुरजीत मिट्ठा की शरण में चले गए थे। सुरजीत बताते हैं कि मनप्रीत सिंह कम शरारती था। खेल में अधिक ध्यान देता था। उसके अंदर मैच पलटने की क्षमता थी। जब वह सुरजीत एकेडमी का हिस्सा था तो उसमें हॉकी का जुनून देखने लायक था। मनप्रीत खेलने के लिए घर से चोरी मिट्ठापुर के खेल मैदान में पहुंच जाता था। फिर परिवार वाले उसको देखने के लिए मैदान में पहुंच जाते थे।