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ऊना के आलू की बिहार, पश्चिम बंगाल व असम तक मांग

ऊना के आलू की उत्तर भारत ही नहीं बल्कि बिहार असम और पश्चिम बंगाल तक मांग है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 02 Dec 2020 06:33 AM (IST)Updated: Wed, 02 Dec 2020 06:33 AM (IST)
ऊना के आलू की बिहार, पश्चिम बंगाल व असम तक मांग
ऊना के आलू की बिहार, पश्चिम बंगाल व असम तक मांग

जागरण संवाददाता, ऊना : ऊना के आलू की उत्तर भारत ही नहीं बल्कि बिहार, असम और पश्चिम बंगाल तक मांग है। इसमें कुछ कंपनियां चिप्स तैयार करती हैं तो कुछ इस आलू के अलग-अलग उत्पाद भी तैयार करती हैं। इस बार आलू की रिकार्ड पैदावार होने पर भी किसानों के हाथ बड़ा मुनाफा नहीं लग पाया है। बिचौलियों और किसानों का कंपनियों के साथ फसल का करार भी कहीं न कहीं अधिक मुनाफे की राह में रोड़ा बना है।

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स्थानीय स्तर पर छोटे किसान ही उत्पादन मंडियों तक पहुंचा रहे हैं, जबकि बड़े किसानों का उत्पादन भारत की अलग-अलग शहरों तक पहुंच रहा है।

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कैसे होती है ढुलाई

आलू को ट्रकों के माध्यम से उत्तर प्रदेश, बिहार, ओड़िशा और असम तक पहुंचाया जा रहा है। ईसपुर और पंजावर की ट्रक यूनियनों के सैकड़ों ट्रक इस काम में जुटे हुए हैं। क्षेत्र के मुख्य ट्रक ऑपरेटर संजीव कुमार ने बताया कि उनके 12 पहियों वाले ट्रक असम और अन्य प्रदेशों के लिए फसल लेकर गए हैं। असम में किसी कंपनी के लिए भी आलू की ढुलाई इन ट्रकों के माध्यम से हो रही है। इसमें कई ट्रक ऑपरेटरों को भी काम मिल रहा है।

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बीज से पैदावार तक कंपनी का खर्च

जिले में रवि की फसलों के दौरान पैदा होने वाले आलू की खेती के लिए कंपनियां पहले से ही सौदा निर्धारित कर लेती हैं। किसानों को महज फसलों की रखवाली तक का जिम्मा होता है। आलू की फसल को लगाने से लेकर उसमें खाद व छिड़काव के साथ फसल निकालने तक का पूरा खर्च भी कंपनी का ही होता है। ऐसे में कंपनियां खुद ही भूमि के भाड़े तक ही अधिकांश किसानों को सीमित रखती हैं।

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आलू की कीमत में कंपनी का हस्तक्षेप

जिले में अगस्त और सितंबर के बीच आलू की फसल लगाई जाती है और यह आलू महज साठ दिन में तैयार होता है। ऊना की जलवायु में इतनी तेजी से आलू तैयार होने के कारण चिप्स बनाने व आलू से अन्य उत्पाद तैयार करने वाली कंपनियां स्थानीय किसानों को अपने खर्चे पर आलू की फसल लगाने को प्रेरित करते हैं। इस दफा यह क्षेत्र तीस फीसद तक बढ़ गया था। फसल पर खर्च भी कंपनियों का होता है और कंपनियां खुद इसके लागत मूल्य का आकलन करती हैं।

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जिले में आलू का रिकार्ड उत्पादन होता है। यह उत्पादन अधिकांश अन्य राज्यों के लिए निर्यात होता है और कई कंपनियां सीधे किसानों से करार के मुताबिक स्टाक लेकर जाती हैं। स्थानीय स्तर पर छोटे किसान अपना उत्पादन लेकर आते हैं और मार्केट रेट सब्जी मंडी में पहुंचे स्टाक पर ही तय होता है।

-डा. सर्वजीत डोगरा, सचिव मंडी समिति ऊना।


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