बजट के अभाव में दम तोड़ जाते हैं लाखों पौधे, पौधारोपण के बाद नहीं कोई ठोस प्लान
पौधारोपण अभियान के बाद रोपे गये पौधों के संरक्षण के लिए कोई दूरगामी योजना का प्रावधान ही नहीं है।
ऊना, राजेश डढवाल। सरकारी अमला किसी योजना को लेकर संजीदगी के चाहे कितने भी दावे क्यों न करे लेकिन हकीकत यह भी है कि लाल फीताशाही और जिम्मेदारी के अभाव में कई योजनाएं परवान नहीं चढ़ पाती हैं। इसका एक उदाहरण पौधरोपण जैसे अभियान में देखने को मिल जाता है। प्रदेश में हर साल जुलाई में पौधारोपण अभियान जोरशोर से शुरू किया जाता है। हर बार नए कीर्तिमान बनाने के दावे किए जाते हैं। हकीकत यह है कि लाखों पौधों को रोपने के बाद उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है।
लाखों का बजट महज पौधे लगाने तक ही सीमित
हैरानी इस पर भी कि रोपे पौधों संरक्षण के लिए कोई दूरगामी योजना का प्रावधान ही नहीं है। ज्यादातर मौकों पर पौधों की रखवाली सिर्फ इसलिए नहीं हो पाती क्योंकि सरकार के पास इसके लिए बजट ही नहीं। वर्षों से ऐसे ही पौधरोपण अभियान को सिरे चढ़ाए जाने का प्रयास किया जा रहा है।
लाखों रुपये के पौधों को उनके हाल पर छोड़ देना जिला में पर्यावरण को मजबूती देने की राह में वर्षों से रोड़े अटकाने का काम कर रहा है। बजट के अभाव में हर साल बड़ी संख्या में पौधारोपण के बाद पौधे सूख जाते रहे हैं। इस तरफ सरकार व विभाग को ध्यान देना होगा ताकि अधिक से अधिक संख्या में पौधे बच सकें। इसके लिए बजट का प्रावधान करना अति आवश्यक है।
आज से शुरू हुआ है जिलेभर में पौधरोपण अभियान
शुक्रवार से एक बार फिर जिला में पौधारोपण अभियान की शुरुआत हो गई। 20 से 25 जुलाई तक दो लाख पौधे रोपे जाएंगे। वन विभाग ने इस पर काम शुरू कर दिया है। इस बार भी वन विभाग के सामने सबसे बड़ी चुनौती इनका संरक्षण होगी। अभियान तो जोर शोर से शुरू किया गया है लेकिन कितने पौधे संरक्षित रह पाते हैं, यह बड़ी बात होगी।
वन विभाग पर्यावरण संरक्षण को लेकर गंभीरता से काम कर रहा है। पौधरोपण को जनसहभागिता के साथ
तालमेल बैठाकर सफल बनाया जाएगा। विभाग के पास पौधों के संरक्षण को लेकर बजट के सीमित प्रावधान हैं।
-यशुदीप सिंह , वन मंडलाधिकारी
पौधों की गुड़ाई किसका जिम्मा
पौधों की निराई कौन करेगा, इतना ही नहीं पौधों के इर्दगिर्द उगने वाली जंगली घास को कौन हटाएगा। इसे लेकर कोई ठोस प्लान अब तक नहीं बन सका है। यह भी एक बड़ा कारण रहा है कि हर साल प्रदेशभर में लाखों पौधे तो रोपे जाते हैं लेकिन जब समीक्षा होती है तो सक्सेस रेट में गिरावट दर्ज होती है। कई बार पानी न मिल पाने के कारण तो कई बार सुरक्षा और निगरानी के अभाव में ये पौधे सूख जाते हैं। पौधरोपण के बाद कितने पौधे बचेंगे या कैसे बचाए जाएंगे, इस पर आज दिन ठोस प्लान नहीं बना है। ऐसे में महज मानसून के भरोसे लाखों पौधों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है। बजट के अभाव में हर साल बड़ी संख्या में पौधारोपण के बाद पौधे सूख जाते रहे हैं।