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मन शुद्ध तो मोक्ष प्राप्त करना मुश्किल नहीं : कौल

ेंक विचारक डा. राम कुमार कौल ने कहा है कि जो व्यक्ति परमात्मा से विमुख हो जाता है, उसे इस संसार से आसानी से छुटकारा नहीं मिल पाता है। वह जन्म-जन्मांतर तक इसी संसार में घूमता रहता है और अपनी इच्छाओं को तृप्त करने के चक्कर में हर जन्म में दुख सहता है। ऐसे में जीवन की व्यस्तता के बीच परमात्मा के लिए भी कुछ पल का समय निकाल

By JagranEdited By: Published: Fri, 18 Jan 2019 05:31 PM (IST)Updated: Fri, 18 Jan 2019 05:31 PM (IST)
मन शुद्ध तो मोक्ष प्राप्त 
करना मुश्किल नहीं : कौल
मन शुद्ध तो मोक्ष प्राप्त करना मुश्किल नहीं : कौल

संवाद सहयोगी, ¨चतपूर्णी : विचारक डॉ. रामकुमार कौल ने कहा है कि जो व्यक्ति परमात्मा से विमुख हो जाता है, उसे इस संसार से आसानी से छुटकारा नहीं मिल पाता है। वह जन्म-जन्मांतर तक इसी संसार में घूमता रहता है और अपनी इच्छाओं को तृप्त करने के चक्कर में हर जन्म में दुख सहता है। ऐसे में जीवन की व्यस्तता के बीच परमात्मा के लिए भी कुछ पल का समय निकाल लेना चाहिए। चूंकि इस संसार से जाते वक्त किसी के साथ कुछ जाने वाला नहीं है, लेकिन प्रभु स्मरण ही भव सागर से पार करने में मदद करता है। ¨चतपूर्णी में श्रीमद्भागवत कथा महायज्ञ में कौल ने कहा कि मनुष्य के जैसे विचार होते हैं, उसके वैसे ही बनने की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है। अगर अच्छा सोचोगे, तो अच्छा बनोगे। इंसान की मुक्ति में तन की अशुद्धि बाधक नहीं है लेकिन अगर मन शुद्ध न हो तो मोक्ष को प्राप्त करना मुश्किल ही नहीं वरना असंभव है। इसलिए मनुष्य को तन की अपेक्षा आत्मा का श्रृंगार करना चाहिए। लालच पाप का पिता होता है और लोभ ही हर बुराई का आधार है। इससे सदा बचने का प्रयास करना चाहिए। मनुष्य के सफल जीवन का आधार विचार हैं। सदा सद्विचारों की शरण मानव को स्वीकार करनी चाहिए।

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महाराज ने कहा कि जीवन की कठिनतम परिस्थितियों में जब साया भी साथ छोड़ने लगता है तब परमात्मा का स्मरण मात्र से ही सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। इस सृष्टि में अगर कोई कल था, आज है और कल रहेगा तो वह सिर्फ परम पिता परमेश्वर हैं। मनुष्य के दुत्‍‌नखों का कारण यही है कि वह जरूरत से ञ्जयादा इच्छाओं को पाल लेता है और जब ये इच्छाएं पूरी नहीं होतीं तो आदमी गहन अवसाद का शिकार हो जाता है। बेशक हमारे जीवन में कर्म प्रधान है और कर्म के बिना किसी को मंजिल नहीं मिल सकती, लेकिन कर्म ऐसा होना चाहिए कि इंसान को अपने जीवन के अंतिम क्षणों में यह ¨चता न सताए कि उसने फलां जगह पर फलां व्यक्ति के साथ गलत किया था। जीवन एक उत्सव है और इसे उल्लास व उमंग के साथ ही जीना चाहिए। लोभ, अहंकार और क्रोध से न तो किसी का भला हुआ है और न ही होगा।


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