सड़क सुविधा से वंचित बेहलांवासी
सुनने में अजीब लगता है कि आजादी के 72 वर्ष बीत जाने के बाद भी देश के कुछ गांव सड़क सुविधा से नहीं जुड़ पाए हैं।
अभिषेक कुमार, तूतड़ू
सुनने में अजीब लगता है कि आजादी के 72 वर्ष बीत जाने के बाद भी देश के कुछ गांव सड़क सुविधा से नहीं जुड़ पाए हैं। इस हकीकत से वर्तमान में जिला के उपमंडल बंगाणा की ग्राम पंचायत टकोली के तहत आता गांव अपर बेहलां आज जूझ रहा है।
बेहलां गांव में बात चाहे सड़क सुविधा की हो या मूलभूत सुविधाओं की। हर प्रकार से इस गांव के लोग सदियों से परेशानी झेल रहे हैं। बड़े तो परेशान हैं ही, स्कूली शिक्षा ग्रहण कर रहे बच्चे भी पल-पल घनघोर जंगल के साय से लड़ रहे हैं। गांव से मात्र वोट की राजनीति ही आज तक हुई है। मात्र सुविधाओं के आश्वासन नेताओं द्वारा दिए गए, लेकिन किसी ने धरातल पर काम नहीं किया।
-----------
गांव में 150 लोगों का भविष्य अंधकार में
बेहलां गांव में लगभग 150 लोगों की आबादी है। गांव के लोगों तक स्वयं लंबा एवं खतरों भरा सफर कर नेता लोग वोट की राजनीति के लिए इनके घरद्वार पहुंच जाते हैं तथा दुख दर्द भी बांटते हैं। लेकिन सत्तासीन होने के बाद इस गांव का नाम लेने से भी डरते हैं। आज तक जितनी भी सरकारें आई, किसी ने भी इस गांव के लोगों की समस्या की ओर ध्यान नहीं दिया।
-------------
तीन किलोमीटर के रास्ते पर ध्यान हो तो जुड़ेगा गांव मुख्य धारा से :
बंगाणा से बेहलां जाने के लिए दो रास्ते हैं। एक बाया खड़ोल जिसकी दूरी लगभग 20 किलोमीटर है। दूसरा वाया तलमेहड़ा जिसकी दूरी लगभग 45 किलोमीटर है। खड़ोल से बेहलां के लिए पैदल रास्ता है जो घने जंगल में से गुजरता है। इसकी दूरी लगभग 2.50 से तीन किलोमीटर है लेकिन टकोली के लिए भी घनघोर जंगल से होकर जाना पड़ता है। स्थानीय लोगों ने बताया कि गांव में जब कोई बीमार पड़ जाता है तो उसे पालकी या पीठ पर उठाकर मुख्य सड़क तक ले जाना पड़ता है। खराब मौसम में और रात्रि के समय जंगल से गुजरने में मुसीबत और बढ़ जाती है। इसके अलावा बच्चों को प्राइमरी शिक्षा ग्रहण करने के लिए भी तीन से चार किलोमीटर जंगली रास्ते से आना जाना पड़ता है। जबकि सेकेंडरी शिक्षा के लिए बच्चों को आज भी आठ किलोमीटर दूर अरलू या तलमेहड़ा, सोहारी आदि स्कूलों में पैदल सुनसान जंगल से होकर गुजरना पड़ता है।
-------------
स्वास्थ्य सुविधाओं से भी दूर हैं गांव के लोग
बेहलां गांव में स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करें तो गांव में कोई भी डिस्पेंसरी नहीं है। विडंबना यह भी है कि बिजली की थ्री फेज लाइन से भी ग्रामीणों को वंचित रखा गया है। इन दिक्कतों के चलते कुछ लोग या कुछ परिवार यहां से पलायन कर चुके हैं। लोगों के पलायन करने का सिलसिला आज भी जारी है। गांव में अगर कोई बच रहा है तो बेचारा गरीब या आर्थिक रूप से कमजोर, अन्यथा गांव से पलायन करने की सोच हर ग्रामीण के मन में है जिसका मुख्य कारण किसी भी राजनीतिक पार्टी द्वारा यहां का उत्थान न करना है।
----------
सुविधाओं की दरकार को जल्द पूरा करे सरकार
बेहलां निवासियों रणजीत सिंह, जोगिद्र सिंह, हंसराज, हरनाम, मनोरमा, केवल कुमार, किशन चंद कमला देवी, कुलदीप कुमार, रेणु बाला, नीलम, ज्ञानो देवी, पुष्पा देवी, वीना, राकेश, शशि, संतोष, सुमना, ब्यासां, सचिन व समाजसेवी राजकुमार ठाकुर ने प्रदेश सरकार से बेहलां गांव के लिए कच्ची या पक्की सड़क की मांग की है। साथ ही मूलभूत सुविधाएं भी ग्रामीणों को देने की मांग की है।