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सत्संग सुन मंजिल तक पहुंच सकता है इंसान : कौल

विचारक यशपाल कौल ने कहा कि मनुष्य जिस तरह की संगति करता है उसका मन भी उसी प्रकार का हो जाता है। जैसी आदमी बैठक करता है मन भी उसी अनुरूप प्रवाहित होता चला जाता है। जीवन को कुछ नियमों से बंधा होना चाहिए लेकिन अधिकतर मनुष्य सिर्फ समय व्यतीत करने के लिए गलत संगति में पड़ जाते हैं और यही उनके पतन का कारण होता है। सही मायनों में व्यक्ति का मन ही उसे स्वर्ग या नरक में लेकर जाता है। जीवन में अगर सत्संग किया जाए और धर्म पर बताए मार्ग पर चला जाए तो ऐसी कोई बात नहीं कि वह मनुष्य अपनी मंजिल तक न पहुंच सके। नारी-चितपूर्णी में बगलामुखी जयंती के अवसर पर आयोजित दो दिवसीय धार्मिक कार्यक्रम के समापन सत्र में श्रद्धालुओं को प्रवचन देते हुए कौल ने कहा कि जो व्यक्ति जितना अधिक हासिल कर लेता है उतना ही उसके भीतर अहंकार हो जाता है। दरअसल अहंकार ही मनुष्य के कई कष्टों का कारण बनता है। इसलिए अच्छे संकल्प करो ताकि अच्छे मार्ग पर च

By JagranEdited By: Published: Mon, 13 May 2019 05:27 PM (IST)Updated: Tue, 14 May 2019 06:36 AM (IST)
सत्संग सुन मंजिल तक पहुंच सकता है इंसान : कौल
सत्संग सुन मंजिल तक पहुंच सकता है इंसान : कौल

संवाद सहयोगी, चितपूर्णी : विचारक यशपाल कौल ने कहा मनुष्य जिस तरह की संगति करता है, उसका मन भी उसी प्रकार का हो जाता है। जैसी आदमी बैठक करता है, मन भी उसी अनुरूप प्रवाहित होता चला जाता है। जीवन को कुछ नियमों से बंधा होना चाहिए, लेकिन अधिकतर मनुष्य सिर्फ समय व्यतीत करने के लिए गलत संगति में पड़ जाते हैं और यही उनके पतन का कारण होता है। सही मायनों में व्यक्ति का मन ही उसे स्वर्ग या नरक में लेकर जाता है। जीवन में अगर सत्संग किया जाए और धर्म पर बताए मार्ग पर चला जाए तो ऐसी कोई बात नहीं कि वह मनुष्य अपनी मंजिल तक न पहुंच सके। यह प्रवचन उन्होंने सोमवार को नारी-चितपूर्णी में बगलामुखी जयंती पर आयोजित दो दिवसीय धार्मिक कार्यक्रम के समापन पर किए। उन्होंने कहा जो व्यक्ति जितना अधिक हासिल कर लेता है, उतना ही उसके भीतर अहंकार हो जाता है। दरअसल अहंकार ही मनुष्य के कई कष्टों का कारण बनता है। इसलिए अच्छे संकल्प करो ताकि अच्छे मार्ग पर चलना संभव हो सके। प्यार करने योग्य भगवान ही हैं, उसी की प्रीति सच्ची है। सबके बदलने पर भी परमात्मा नहीं बदलने वाला है। ऐसे में उसी को पकड़ो, जो कभी छोड़ने वाला नहीं है। उपहार लेना हो तो इसी विश्वास के साथ लेना चाहिए कि उसे समय रहते चुकता कर दिया जाएगा अन्यथा उपहार के साथ मानव का नैतिक मूल्य भी गिर जाएगा।

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