गुड मॉर्निग की जगह जय श्रीराम बोलने लगे बच्चे
घड़ी की सुई जैसे ही नौ पर आकर टिकती है लोगों की नजरें टीवी स्क्रीन पर टिक जाती हैं।
राजेश डढवाल, ऊना
घड़ी की सुई जैसे ही नौ पर आकर टिकती है, लोगों की नजरें टीवी स्क्रीन पर टिक जाती हैं। क्या बच्चे तो क्या बुजुर्ग, घर का हर सदस्य अब नौ बजने के इंतजार में होता है। वजह इन दिनों 90 के दशक में दूरदर्शन पर प्रसारित हो रहा लोकप्रिय धारावाहिक रामायण है।
रामायण धारावाहिक के पात्र और उनके द्वारा प्रयोग की जा रही भाषा इन दिनों बच्चों की जुबान पर है। दीवानगी ऐसी कि बच्चे 'तथास्तु' जो आज्ञा माता श्री व प्रणाम गुरुदेव और गुड मॉर्निग के स्थान पर जय श्रीराम जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने लगे हैं। रामायण में दिखाई जा रहे दृश्यों में ऋषि मुनियों की दिनचर्या, साधारण जीवनशैली, उनके तप, यज्ञ पर्यावरण को लेकर अलग समझ, हवन की महत्ता, पेड़-पक्षियों से लगाव को प्रेरित कर रही है।
भरत मिलन का प्रसंग हो या माता सीता को अपहरण के दौरान जटायू (पक्षी)का माता सीता को बचाने का प्रसंग, बच्चों की समझ और रहन सहन के तौर तरीकों को अपग्रेड करने में मददगार साबित हो रहा है। बच्चे घर की क्यारियों में लगाए गए पौधे और उन्हें जीवित रखने की औपचारिकताओं में रुचि दिखाने लगे हैं। साथ ही पक्षियों के प्रति भावनाओं में भी बदलाव आया है।
एक समय में रामायण को देख चुके लोग दोबारा अपने घर के टेलीविजन सेट के सामने बैठने लगे हैं, वहीं नई पीढ़ी जो इस लोकप्रिय धारावाहिक से अनजान है उसे भी बैठाने का प्रयास कर रहे हैं। एक-दो एपिसोड में बेशक बच्चे दूर भाग रहे थे लेकिन अब बच्चों को श्रीराम, लक्ष्मण, हनुमान का चरित्र इतना भाने लगा है कि बच्चे भी बैठकर आनंद ले रहे हैं।
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ये बोले अभिभावक
कई परिवार के अभिभावकों ने बताया कि किशोर उम्र के बच्चे जिन्होंने अब रामायण के पात्रों को सिर्फ कार्टून चरित्रों के माध्यम से जाना, उनके लिए रामायण देखना नया अनुभव है। इस धारावाहिक के प्रसारण से कई अहम सामाजिक बदलाव भी देखने को मिल रहे हैं।