Water Purifier: सहजन से बना वाटर प्यूरीफायर दिलाएगा डायरिया और पीलिया से मुक्ति
water purifier. शोधार्थियों ने सहजन (ड्रमस्टिक) के बीजों में मौजूद जीवाणुरोधी औषधीय गुणों को इस काम के लिए सबसे उपयुक्त पाया।
सुनील शर्मा, सोलन। सहजन यानी ड्रमस्टिक के बीजों के पाउडर से बनाए गए इस वाटर प्यूरीफायर का इस्तेमाल टी-बैग की तरह ही आसानी से किया जा सकता है। पांच मिनट में एक लीटर दूषित पानी पीने योग्य बन जाता है। कीमत मात्र पचास पैसे है। जी हां, पानी को अब जीवाणुमुक्त और शतप्रतिशत शुद्ध बनाना आसान हो जाएगा। सोलन, हिमाचल प्रदेश स्थित शूलिनी विश्वविद्यालय ने यह वाटर प्यूरीफायर किट तैयार की है।
शूलिनी विवि में इस प्रोजेक्ट पर तीन साल से काम चल रहा था। लक्ष्य यह था कि औषधीय रसायनों का इस्तेमाल करते हुए एक ऐसा सस्ता और आसान वाटर प्यूरीफायर तैयार किया जाए, जो गांवों में रहने वाले गरीब परिवारों को दूषित जल से होने वाली संक्रामक बीमारियों से बचा सके। शोधार्थियों ने सहजन (ड्रमस्टिक) के बीजों में मौजूद जीवाणुरोधी औषधीय गुणों को इस काम के लिए सबसे उपयुक्त पाया। ट्रायल पूरे होने के बाद तय हुआ कि इससे टी-बैग की तर्ज पर वाटर प्यूरीफायर (जल शोधक) किट तैयार की जाएगी। सहजन के बीजों को पीस कर, पाउडर को छोटी सी थैली (टी-बैग की तरह) में भर जब इसे सामान्य पानी (एक लीटर) में पांच से दस मिनट तक डुबोया गया, तो इसके जीवाणुरोधी रसायनों ने पानी को जीवाणुरहित बना दिया। दूषित पानी अब पीने योग्य बन गया था।
इस प्रोजेक्ट के लिए छात्रा अमनप्रीत कौर को बेल्जियम की यंग वाटर फेलोशिप मिली है। भारत सरकार ने उन्हें अध्ययन के लिए यंग इंडिया अवार्ड के तहत दस लाख रुपये दिए हैं। अमनप्रीत का मॉडल देशभर में पहले स्थान पर रहा है। कहती हैं, नदियों में सीवरेज छोड़े जाने, भूजल के अशुद्ध होते जाने और टूटी-फूटी पाइपलाइन जैसे अनेक दूसरे कारणों से पानी अशुद्ध हो रहा है। जीवाणुओं के कारण हर वर्ष कई लोगों की जान चली जाती है। दूषित जल में मौजूद जीवाणुओं से डायरिया और पीलिया जैसे रोग फैलते हैं। यह किट ऐसे सभी बैक्टीरिया को खत्म कर देती है। सहजन के बीजों में मौजूद विशेष प्रोटीन जीवाणुरोधी औषधि का काम करता है।
शूलिनी विश्र्वविद्यालय के प्रबंधक विशाल आनंद, प्रो. पीके खोसला और अतुल खोसला अमनप्रीत की उपलब्धि से उत्साहित हैं। उन्होंने बताया कि इस किट को गांवों तक पहुंचाने के लिए बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। इसे इस तरह से भी बनाया जा रहा है कि इसका इस्तेमाल बड़े बर्तनों, घड़े आदि में भी हो सके।
डीन, रिसर्च एंड डिवेलपमेंट प्रो. सौरभ कुलश्रेष्ठ ने बताया कि इस प्रोजेक्ट की सफलता में बायोटेक्नॉलाजी में पीएचडी अमनप्रीत कौर, पीएचडी की ही छात्रा आलिया अली और इशांत शर्मा (एमटेक) का योगदान है। अनप्रीत पंजाब के फरीदकोट की रहने वाली हैं। अमनप्रीत ने कहा कि इस युक्ति का इस्तेमाल लोग खुद भी पानी शुद्ध करने के लिए कर सकते हैं।