पारंपरिक को भूल पाश्चात्य नृत्य की तरफ युवा
राजन पुंडीर नाहन हिमाचल में पारंपरिक नृत्य को बचाने के लिए लोक कलाकार जहां जद्दोजहद
राजन पुंडीर, नाहन
हिमाचल में पारंपरिक नृत्य को बचाने के लिए लोक कलाकार जहां जद्दोजहद कर रहे हैं वहीं युवाओं पर भी पारंपरिक नृत्यों की जगह पाश्चात्य नृत्य हावी होने लग पड़े हैं। वहीं प्रदेश सरकार भी लोक उत्सव, जिला, राज्य, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के मेलों व उत्सवों में प्रदेश के कलाकारों को अधिमान न देकर अन्य राज्यों व फिल्मी कलाकारों को बुलाकर लोक कलाकारों से रोजगार छीन रही है। यह बात अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोक नृत्य में पहचान बना चुके राजगढ़ उपमंडल के आसरा संस्था जालग के प्रभारी जोगेंद्र हाब्बी ने कही।
हाब्बी का कहना है कि पारंपरिक नृत्य को बचाने के लिए कोई भी सरकार तवज्जो नहीं दे रही है। प्रदेश सरकार को स्थानीय कलाकारों को अधिमान देना ही होगा। युवाओं की इसमें रुचि बढ़े इसके लिए कोरोना काल में ऑनलाइन प्रतियोगिता भी आरंभ करवानी चाहिए। लोक कलाकारों तथा नृत्य दलों को दूसरे देशों में पारंपरिक नृत्य को बचाने वाले लोक कलाकारों व नृत्य दलों की तरह हिमाचल में भी स्काई फंड उपलब्ध करवाना चाहिए। तभी प्रदेश के युवा राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नृत्य में जौहर दिखा पाएंगे।
जिला सिरमौर के प्रमुख पारंपरिक नृत्य में सिरमौरी नाटी, ठोडा नृत्य, दीपक नृत्य, रिहाल्टी गी अथवा मालानृत्य एवं रासा नृत्य, परात नृत्य, भड़ाल्टू नृत्य, सिंहटू नृत्य प्रमुख है। ठोडा नृत्य का संबंध महाभारत काल से है। दीपक नृत्य नृत्य शैली द्वारा अराध्य ईष्ट देव की अराधना करने की एक नृत्य अभियक्ति है। परात नृत्य का संबंध भगवान विश्णु द्वारा धारण किए गए सुदर्शन चक्र से माना जाता है। अंगुली पर धूामती हुई परात सुदर्शन चक्र की भांति नजर आती है। सिंहटू सिरमौरी भाषा में शेर के बच्चे को कहा जाता है तथा सिंह को मां दुर्गा भगवती का वाहन भी माना गया है।