एचपीएमसी प्लांट के बाहर सड़ गया करोड़ों का सेब
हिमाचल प्रदेश बागवानी उत्पाद विपणन एवं प्रसंस्करण निगम यानी एचपीएमसी सेब के रूप में करोड़ों रुपये नाले में फेंक रहा है।
मनमोहन संधू, परवाणू
हिमाचल प्रदेश बागवानी उत्पाद विपणन एवं प्रसंस्करण निगम यानी एचपीएमसी सेब के रूप में करोड़ों रुपये नाले में फेंक रहा है। निगम द्वारा बागवानों से इस वर्ष 65 हजार टन बी व सी ग्रेड का सेब 9.50 रुपये के हिसाब से खरीदा गया है। निगम सेब की पूरी खरीद को बेचने में विफल हो रहा है। यही वजह है कि करोड़ों रुपये का सेब निगम के प्लांट के बाहर रखा हुआ सड़ गया है। हैरानी की बात है कि निगम के अधिकारी इस सेब को सही जगह पर ठिकाने तक नहीं लगा पा रहे हैं।
परवाणू स्थित एचपीएमसी यूनिट की प्रोसेसिग क्षमता 18 हजार टन की है, जबकि तीन हजार टन की क्षमता सुंदरनगर स्थित जरोल प्लांट की है। यानी 21 हजार टन से अधिक की प्रोसेसिग एचपीएमसी नहीं कर पाता है। बावजूद इसके एचपीएमसी द्वारा अब तक 65 हजार टन सेब खरीदा जा चुका है। इस सेब की खरीद पर निगम ने करीब 60 करोड़ रुपये से अधिक की राशि भी खर्च की है। बताया जा रहा है कि निगम द्वारा बाहरी राज्यों के व्यापारियों को सेब बेचा जा रहा है।
व्यापारी व लदानी केवल वही सेब ले जाते हैं जो सही हालत में होता है। सेब में यदि किसी प्रकार निशान या धब्बा है तो वह इसे नहीं खरीदते हैं। इस प्रकार करीब 25 से 30 फीसद तक की वेस्टेज सेब की हो रही है। हालांकि एचपीएमसी यह दावा कर रहा है कि वेस्टेज का पैसा भी लदानियों से ही लिया जाता है। एचपीएमसी के प्लांट में जूस आदि का उत्पाद करने की क्षमता 21 हजार टन से अधिक नहीं है। यही वजह है कि सेब की खरीद में निगम को नुकसान झेलना पड़ रहा है। इससे करोड़ों रुपये का सेब प्लांट के बाहर रखा हुआ सड़ रहा है।
एचपीएमसी के अधिकारियों के पास इस बात का कोई स्पष्ट जवाब नहीं है। सरकार यदि इस मामले की गहनता से जांच करे तो करोड़ों रुपये का नुकसान सामने आ सकता है। यानी एचपीएमसी ने सेब की खरीद में शायत इतनी कमाई नहीं की होगी जितना नुकसान किया है।
एचपीएमसी के प्रबंधक विनीत कौशिक का कहना है कि लदानियों द्वारा केवल अच्छे किस्म का सेब ही खरीदा जा रहा है। जो सेब खराब हालत में है उसे यहीं पर किसी सुरक्षित स्थान पर फेंका जा रहा है। उन्होंने कहा कि निगम द्वारा वेस्टेज सेब की कीमत भी लदानियों से ही ली जा रही है।