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116 साल से मानव सेवा में तत्पर सीआरआइ कसौली

केंद्रीय अनुसंधान संस्थान (सीआरआइ) कसौली 116 साल से जीवनरक्षक दवाओं का

By JagranEdited By: Published: Sun, 02 May 2021 06:42 PM (IST)Updated: Sun, 02 May 2021 06:42 PM (IST)
116 साल से मानव सेवा में तत्पर सीआरआइ कसौली

मनमोहन वशिष्ठ, सोलन

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केंद्रीय अनुसंधान संस्थान (सीआरआइ) कसौली 116 साल से जीवनरक्षक दवाओं का उत्पादन कर मानव जीवन के कल्याण में अहम भूमिका निभा रहा है। तीन मई, 1905 को संस्थान की स्थापना हुई थी, जिसके बाद संस्थान ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। दवाओं के उत्पादन से करोड़ों मरीजों की जिंदगियां बचा चुका है।

एंटी रेबीज वैक्सीन, डीपीटी ग्रुप ऑफ वैक्सीन, यलो फीवर वैक्सीन, जैपनीज एनसेफालिटिस वैक्सीन, डायग्नोस्टिक रीजेंट, एंटी स्नेक बाइट वैक्सीन, एकेडी वैक्सीन, एंटी वेनम सीरम संस्थान के मुख्य उत्पादन हैं। हालांकि इनमें से कई महत्वपूर्ण वैक्सीन का उत्पादन बंद है। वर्तमान में संस्थान कोविड एंटी सीरम बनाने के लिए भी प्रयासरत है। संस्थान में सोमवार को ऑनलाइन तरीके से स्थापना दिवस मनाया जाएगा और संस्थान की सोवेनियर का विमोचन किया जाएगा।

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1893 में हुआ था प्रस्ताव पारित

22 अप्रैल, 1893 में द पाश्चर इंस्टीट्यूट खोलने के लिए लाहौर में एक बैठक में प्रस्ताव पास हुआ था और उस समय पंजाब राज्य के शांत पर्यावरण से भरपूर कसौली को इसके लिए चुना गया था। संस्थान में रेबीज के इलाज के लिए कार्य होने लगा। तीन मई, 1905 में केंद्रीय अनुसंधान संस्थान कसौली की स्थापना हुई। संस्थान के पहले निदेशक सर डेविड सेम्पल ने 1911 में भेड़ के दिमाग से एंटी रेबीज वैक्सीन भी विकसित की। देश की एकमात्र सेंट्रल ड्रग्स लैब (सीडीएल) भी यहां स्थापित है, जिसमें देश में बनने वाली सभी वैक्सीन की गुणवता को जांचा जाता है। 1906 में सीआरआइ ने देश में पहली बार सर्पदंश के इलाज के लिए सीरम व टायफायड बुखार के लिए वैक्सीन का उत्पादन शुरू किया। 1911 में यहां सेंट्रल मलेरिया ब्यूरो को स्थापित किया गया। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान संस्थान ने भारी मात्रा में वैक्सीन का उत्पादन किया। 1979 में संस्थान में एमफिल, माइक्रो बायोलॉजी की कक्षाओं को शुरू किया गया। इसके अलावा पीएचडी, पैथालोजी बीएससी, एमएससी माइक्रो बायोलॉजी सहित अन्य कक्षाएं भी यहां चलती हैं। यह संस्थान दक्षिण पूर्व एशिया का एकमात्र संस्थान था, जिसमें दिमागी बुखार निरोधक टीके तैयार किए जाते थे। यलो फीवर वैक्सीन का टीका भी यहां तैयार होता था, जो अफ्रीकन देशों में जाने से पूर्व लगाना जरूरी होता है। सीआरआइ सरकारी क्षेत्र में जीएमपी (गुड मेन्युफेक्चरिंग प्रेक्टिस) के तहत दवा उत्पादन करने वाला पहला संस्थान है।

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कई उतार-चढ़ाव देखे

अपने एक शताब्दी से भी अधिक के समय से देश-विदेशों के लिए महत्वपूर्ण वैक्सीन का उत्पादन करने वाले इस संस्थान ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। सीआरआइ को सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में मदर इंस्टीट्यूट का भी दर्जा प्राप्त है। 15 जनवरी, 2008 को स्वास्थ्य मंत्रालय ने संस्थान का वैक्सीन प्रोडक्शन लाइसेंस रद कर दिया था और 30 जनवरी, 2008 को संस्थान में दवा उत्पादन बंद हो गया। यह सब मानकों के अनुरूप दवा उत्पादन न होने के कारण हुआ था। दो साल बाद 15 जनवरी, 2010 को मंत्रालय ने लाइसेंस को रिवोक कर दिया था। आज एंटी रेबीज वैक्सीन का उत्पादन एक दशक से ठप है, वहीं जापानी बुखार (जेई) वैक्सीन व यलो फीवर वैक्सीन का उत्पादन भी बंद है।


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