Move to Jagran APP

World Book Day 2019: आज भी उपेक्षा के शिकार हैं लेखक, सरकार की ओर से नहीं मिलता प्रोत्साहन

World Book Day 2019 हिमाचल में लेखकों और साहित्यकार किताब तो लिख लेते हैं लेकिन प्रदेश में कोई प्रकाशक नहीं होने के कारण उन्हें किताब छपवाने के लिए बाहर जाना पड़ता है।

By BabitaEdited By: Published: Tue, 23 Apr 2019 11:03 AM (IST)Updated: Tue, 23 Apr 2019 11:03 AM (IST)
World Book Day 2019: आज भी उपेक्षा के शिकार हैं लेखक, सरकार की ओर से नहीं मिलता प्रोत्साहन
World Book Day 2019: आज भी उपेक्षा के शिकार हैं लेखक, सरकार की ओर से नहीं मिलता प्रोत्साहन

शिमला, रविंद्र शर्मा। सहित्य के संरक्षण के बड़े-बड़े दावे जरूर हुए हैं, लेकिन धरातल पर इसे सहेजने में अहम किरदार अदा करने वाले लेखकों की तरफ कोई ध्यान नहीं हैं। वे आज भी उपेक्षा के शिकार हैं। प्रदेश में सरकार किसी भी दल की रही हो। सत्ता में आने के लिए राजनीतिक दल कई वादे करते हैं, लेकिन कुर्सी मिलने के बाद सब भूल जाते हैं।

loksabha election banner

हिमाचल में लेखकों और साहित्यकारों की स्थिति ऐसी है कि वे किताब तो लिख लेते हैं, लेकिन उसे छपवाने के लिए जूते घिसने पड़ते हैं। प्रदेश में कोई प्रकाशक नहीं होने के  कारण उन्हें किताब छपवाने के लिए प्रदेश से बाहर जाना पड़ता है। लेखक दौड़-धूप करके अपने सीमित साधनों से पुस्तक प्रकाशित करवा भी लेता है तो फिर इसे बेचने की चुनौती खड़ी हो जाती है। पुस्तक खरीदने के लिए सरकार की कोई योजना नहीं है। हिमाचल भाषा, कला एवं संस्कृति अकादमी का भी लेखक व साहित्यकारों को साथ नहीं मिल पाता है। 

 

अकादमी में धूल फांकती हैं किताबें

हिमाचल भाषा, कला एवं संस्कृति अकादमी हर साल सिर्फ 15000 रुपये की पुस्तकें खरीदती है जो नाकाफी है। प्रदेश में अनगिनत पुस्तकालय हैं, लेकिन कहीं भी पुस्तक खरीद की संतोषजनक स्थिति नहीं है। वहीं, अकादमी द्वारा रचनात्मक लेखन के लिए पुस्तक प्रकाशित करने को दी जाने वाली राशि भी ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ के समान ही है। भाषा, कला एवं सस्कृति अकादमी लेखकों की किताबों को खरीदती तो है, लेकिन ये वहां धूल फांकती ही नजर आती हैं। पुस्तक मेलों में भी अकादमी अपनी पुस्तकों को ही प्रदर्शनी में रखती है।

कुछ साल से लेखकों के प्रोत्साहन की बड़ी योजनाएं बंद कर दी गई हैं। भाषा विभाग 15 साल से लेखकों के लिए दिए जाने वाले राज्य सम्मान तक नहीं दे पा रहा है और नई सरकार आने के बाद अकादमी के पुरस्कार भी ठंडे बस्ते में चले गए हैं। शिमला में प्रतिवर्ष दिल्ली की एक संस्था पुस्तक मेला लगा रही है, जिसे सरकार की ओर से कोई प्रोत्साहन नहीं मिल पाता है और उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वर्तमान सरकार भी पुस्तक संस्कृति से दूर होती जा रही है।

-एसआर हरनोट, लेखक एवं अध्यक्ष हिमालय मंच।

हिमाचल में नए लेखकों के लिए पुस्तक प्रकाशन एक चुनौती की तरह है। यहां साहित्य के प्रकाशक न के बराबर हैं और सरकारी संस्थाओं के संसाधन भी सीमित। इससे उबरने का एक ही रास्ता है कि युवा लेखक देश की श्रेष्ठ पत्रिकाओं में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाकर हिंदी की मुख्य धारा में अपनी पहचान बनाएं। हम सब मात्र हिमाचल के नहीं हिंदी के लेखक हैं इस चुनौती को स्वीकार करें। हिंदी साहित्य जगत में पहचान अर्जित करने के बाद यह कार्य इतना कठिन नहीं रह जाता। प्रदेश की सरकारी संस्थाओं को भी प्रोत्साहन संबंधी बजट में वृद्धि करनी चाहिए।

-आत्मा रंजन, युवा कवि शिमला

पुस्तक प्रकाशन और खरीद की बड़ी योजना हो और पुस्तकें पंचायत स्तर से लेकर मिडल, हाई स्कूलों के साथ कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और सरकारी दफ्तरों के पुस्तकालयों तक खरीदी जाएं। प्रदेश में यदि किताबें उचित मात्रा में खरीदी जाएंगी तभी कोई प्रकाशन खोलने का साहस प्रदेश में कर पाएगा और बाहर के प्रकाशक भी प्रोत्साहित होंगे। 

-प्रो. मीनाक्षी पॉल, लेखिका।

प्रदेश सरकार लेखक व साहित्यकारों का मनोबल बढ़ाने व लेखन कार्य में बढ़ोतरी के लिए काफी प्रयास कर रही है। स्कूलों में लाइब्रेरी बनाने की योजना है। अभी लेखकों की किताबें खरीदने के लिए फंड की कमी आड़े आ रही है। फंड को बढ़ाने की जरूरत है।

-डॉ. कर्म सिंह, सचिव हिमाचल भाषा, कला एवं संस्कृति अकादमी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.