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stamps collection: जुनून ऐसा कि 5000 से ज्यादा डाक टिकट कर लीं इकट्ठी

stamps collectionशिमला के रहने वाले प्रो. अनुराग शर्मा का डाक टिकट करने का शौक अब जुनून बन चुका है पेशे से प्रोफेसर अनुराग शर्मा अब तक 5 हजार से भी ज्‍यादा डाक टिकट का संग्रह कर

By Babita kashyapEdited By: Published: Mon, 14 Oct 2019 08:48 AM (IST)Updated: Mon, 14 Oct 2019 08:48 AM (IST)
stamps collection: जुनून ऐसा कि 5000 से ज्यादा डाक टिकट कर लीं इकट्ठी
stamps collection: जुनून ऐसा कि 5000 से ज्यादा डाक टिकट कर लीं इकट्ठी

शिमला, रामेश्वरी ठाकुर। stamps collection डाक टिकटों का संग्रहण करने का जुनून कई लोगों की प्रेरणा का स्त्रोत बन जाता है। जुनून की एक ऐसी ही दास्तान है शिमला के रहने वाले प्रो. अनुराग शर्मा की। अनुराग शर्मा हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में जियोग्राफी विभाग के प्रोफेसर हैं। डाक टिकटों से उनका इतना प्रेम और घनिष्ठ संबंध हो गया की जिंदगी का जुनून ही डाक टिकट जुटाना बना लिया है। 

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1963 लेकर आज तक उनकी वर्षों की मेहनत रंग लाई और उनके पास विभिन्न देशों के डाक टिकटों का एक दुर्लभ और नायाब संग्रह है। उनके पास करीब 5000 से अधिक डाक टिकटें हैं। चंडीगढ़ के 22 सेक्टर में परिवार के साथ रहने वाले अनुराग शर्मा ने बचपन से इस शौक को बरकरार रखा है। 

बकौल अनुराग, ‘मैं जब 10वीं का छात्र था तो रोजाना स्कूल जाने से पहले सुबह सात बजे नजदीकी डाकघर में टिकट के रिलीज होने की तारीख पूछता रहता था। रिलीज के दिन पांच पैसे लेकर डाकघर के बाहर लगी लाइन में पहले नंबर पर खड़ा होना ही लक्ष्य रहता था। तब से लेकर आज तक सभी टिकटें संभाल कर रखता हूं। हर डाक टिकट किसी न किसी विषय की जानकारी देता है। अगर हम इस छुपी हुई कहानी को खोज सकें तो यह हमारे सामने ज्ञान की रहस्यमय दुनिया का नया पन्ना खोल देता है। इसीलिए तो डाक टिकटों का संग्रह विश्व के सबसे लोकप्रिय शौक में से एक है।’ 

टिकटों में सिमटा है इतिहास, भूगोल व भाषाएं

उनके संग्रह में अनेक देशों के इतिहास, भूगोल, संस्कृति, ऐतिहासिक घटनाएं, भाषाएं, मुद्राएं, पशु-पक्षी, वनस्पतियों और लोगों की जीवनशैली एवं देश के महानुभावों सहित अन्य टिकटें शामिल हैं।  

संजौली निवासी गृहिणी मीना चंदेल भी डाक टिकटों के संग्रह की खूब शौकीन हैं। उनका कहना है कि बचपन से डाक टिकटें आकर्षित करती थी। बचपन में टेक्नोलॉजी न होने की वजह से सारे पत्र डाक टिकटों से सजकर आते थे।  लिफाफे पर लगा डाक टिकट इतना खूबसूरत लगता था कि उसे लिफाफे से अलग करना उन्हें बहुत पसंद था। घर और रिश्तेदारों के घरों पर आए पत्रों से डाक टिकट निकालना पसंदीदा शौक

था। उन्होंने बताया कि जब वह कॉलेज में पढ़ती थीं तो किसी दोस्त ने उन्हें शिमला फिलेटली क्लब के बारे में बताया। 1999 से वह क्लब से जुड़ीं और शादी होने के बाद गृहस्थी में उन्हें शौक को कुछ सालों के लिए छोड़ना पड़ा। अब दोबारा शौक को आगे बढ़ाते हुए आज उनके पास देशविदेश की 500 तरह की टिकटों का संग्रह है। मौजूदा समय में उनकी दो बेटियों प्रज्ञा चंदेल और सिद्धात्री चंदेल की रुचि भी डाक टिकटों के संग्रह में बन गई है।

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