मैक्लोडगंज के निर्माणाधीन बस अड्डे पर बने होटल और रेस्तरां गिराने का आदेश
हिमाचल के कांगड़ा जिले में मैक्लोडगंज बस अड्डे के निर्माण के गड़बड़झाले पर सुप्रीम फैसला आया है। सुप्रीमकोर्ट ने बस अड्डे के निर्माण में बरती गई अनियमितताओं फैसला सुनाते हुए बस अड्डे पर बने होटल और रेस्तरां को गिराने का आदेश दिया है। देश की शीर्ष अदालत ने इस कार्रवाई के लिए दो सप्ताह का समय दिया है। बस अड्डे के निर्माण पर अभी तक करीब 12 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। अब इसका निर्माण करने वाली कंपनी सहित कई विभागों के तत्कालीन अधिकारियों की मुश्किलें बढ़ेंगी।
रमेश सिगटा, शिमला
हिमाचल के कांगड़ा जिले में मैक्लोडगंज बस अड्डे के निर्माण के गड़बड़झाले पर सुप्रीम फैसला आया है। सुप्रीमकोर्ट ने बस अड्डे के निर्माण में बरती गई अनियमितताओं फैसला सुनाते हुए बस अड्डे पर बने होटल और रेस्तरां को गिराने का आदेश दिया है। देश की शीर्ष अदालत ने इस कार्रवाई के लिए दो सप्ताह का समय दिया है। बस अड्डे के निर्माण पर अभी तक करीब 12 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। अब इसका निर्माण करने वाली कंपनी सहित कई विभागों के तत्कालीन अधिकारियों की मुश्किलें बढ़ेंगी।
सुप्रीमकोर्ट की तीन न्यायाधीशों न्यायमूर्ति डा. धनंजय वाइ चंद्रचूड़, इंदू मल्होत्रा, इंदिरा बेनर्जी की बैंच ने मंगलवार को सिविल अपील पर यह फैसला सुनाया। याचिकाकत्र्ता ने इसे कानून की बड़ी जीत करार दिया है। इस संबंध में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने भी 16 मई 2016 को फैसला दिया था। देश के शीर्ष कोर्ट के निर्देश पर ही जिला एवं सत्र न्यायाधीश कांगड़ा को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया था। उन्होंने 2018 में मामले की जांच रिपोर्ट सुप्रीमकोर्ट को सौंप दी थी। इसमें गैरकानूनी निर्माण के लिए कई विभागों, संस्थानों के अधिकारियों, कर्मियों को जिम्मेवार ठहराया गया था। इन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की सिफारिश की गई थी, लेकिन सरकार ने इसके आधार पर कार्रवाई नहीं की। कब दिए थे जांच करवाने के आदेश
सुप्रीमकोर्ट ने नौ सितंबर, 2016 को सिविल अपील के आधार पर आदेश दिए थे कि बस अड्डे के निर्माण से जड़े आरोपों की जिला एवं सत्र न्यायाधीश से जांच करवाई जाए। किन हालत में बस अड्डे, होटल, व्यावसायिक कांप्लेक्स का निर्माण हुआ, इसकी गहनता से जांच हो।
इसमें अधिकारियों और कर्मचारियों की भूमिका क्या रही, इसका भी खुलासा हो। जिला न्यायाधीश को इस केस में प्रेजेंटिग ऑफिसर नियुक्त करने को कहा गया। प्रदेश के तत्कालीन प्रधान सचिव गृह ने 17 अप्रैल 2017 को जिला न्यायवादी को प्रेजेंटिग ऑफिसर यानी पीओ नियुक्त किया।
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जांच रिपोर्ट में कई अफसरों को ठहराया था जिम्मेवार
जिला एवं सत्र न्यायाधीश की जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि पर्यटन स्थल मैक्लोडगंज में बस अड्डे के निर्माण में बड़ा गड़बड़झाला हुआ। आरोप था कि गैर कानूनी तरीके से निर्माण हुआ है। न तो नगर नियोजन विभाग (टीसीपी) से नक्शा पास हुआ और न ही फॉरेस्ट कंजरवेशन एक्ट (एफसीए) के तहत अनुमति ली गई। प्रशासनिक अधिकारी, टीसीपी से लेकर वन अधिकारियों ने आंखें मूंदे रखीं। बिना इजाजत लैंड यूज चेंज कर दिया। जहां बस अड्डा बनना था, वहां होटल बना दिया। जिस कार्य के लिए स्वीकृति ली गई थी, मौके पर उसके विपरीत हुआ। इस कारण इसे गैर कानूनी माना गया। एनजीटी ने क्या कहा था
एनजीटी ने इसके निर्माण पर न केवल रोक लगाई थी बल्कि गैर कानूनी निर्माण को गिराने के आदेश दिए थे। इसके लिए कमेटी गठित भी की थी। कमेटी ने अपनी सिफारिशों में कई अफसरों को दोषी माना था। लेकिन पूर्व कांग्रेस सरकार ने न तो अधिकारियों पर कार्रवाई की और न ही निर्माण को गिराया। पीपीपी मोड पर हुआ निर्माण
बस अड्डे और व्यावसायिक कांप्लेक्स का निर्माण पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप यानी पीपीपी मोड पर किया गया। आरोप है कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार निर्माण करने वाली कंपनी पर पूरी तरह से मेहरबान रही। सरकार को राजस्व का भी नुकसान हुआ। एनजीटी के फैसले के खिलाफ पूर्व सरकार सुप्रीमकोर्ट गई, लेकिन कोई राहत नहीं मिली।
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सुप्रीमकोर्ट ने बस अड्डे को गिराने का आदेश दिया है। निर्माण के दौरान एफसीए के प्रावधानों की अवहेलना हुई है। लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद राहत मिली है। कोर्ट में तथ्य पेश किए गए थे। सुप्रीमकोर्ट ने ही जांच करवाई थी। हमने इस रिपोर्ट को लागू करने का आग्रह किया था।
-अतुल भारद्वाज, याचिकाकत्र्ता।