सरकारी योजनाएं कागजों में, गोधन सड़कों पर
क्षितिज सूद, नेरवा सरकार गोधन को बचाने के लिए जितनी चाहे योजनाएं बना लें या जितने मर्जी फर
क्षितिज सूद, नेरवा
सरकार गोधन को बचाने के लिए जितनी चाहे योजनाएं बना लें या जितने मर्जी फरमान जारी कर दें। लोगों द्वारा बेकार हो चुके पशुओं को बेसहारा छोड़ने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। जो गाय दूध देना बंद कर दे व बैल जोतने योग्य न रहे, अधिकांश लोग इन पशुओं को घरों से खदेड़ देते हैं। दूध देना बंद कर चुकी गायों व बूढ़े हो चुके बैलों को तो लोग अकसर बेसहारा छोड़ ही देते हैं, अब तो लोगों ने बछड़ों को भी घरों से धकेलना शुरू कर दिया है।
शिमला-नेरवा-फेडिज पुल मार्ग पर सैकड़ों लावारिस पशु देखे जा सकते हैं। इनकी सबसे अधिक संख्या इस मार्ग पर रियुन्णी व देहा के बीच है। ये पशु दिनभर सड़क के किनारे जंगल में घास चरने के बाद शाम ढलते ही सड़क पर जमा हो जाते हैं। रियुन्णी और देहा के क्षेत्र का तापमान शून्य से भी कम होता है। ये बेजुबान पशु इस ठंड में जिंदगी और मौत की जंग लड़ते रहते हैं। कुछ पशु जंगली जानवरों का शिकार बन जाते हैं। जंगली जानवरों के शिकार इन पशुओं के कंकाल सड़क किनारे पड़े देखे जा सकते हैं।
इसके अलावा छोटे-बड़े सभी बाजारों में लावारिस पशुओं की भीड़ लगी रहती है। उपमंडल चौपाल के सभी बाजारों में लावारिस पशुओं की भरमार है। नेरवा, चौपाल, चंबी, कुपवी, झिकनी पुल, दवड्डा, बानी, गुम्मा आदि बाजारों में ये पशु दिनभर इधर-उधर मुंह मारते रहते हैं। बाजारों में घूमने वाले ये पशु कई बार दुर्घटना का शिकार भी हो जाते हैं। प्रत्येक पंचायत में गोसदन बनाने की सरकार की योजना भी मात्र कागजों तक ही सिमट कर रह गई है। कई गैर सरकारी संस्थाएं भी गोधन संरक्षण के नाम पर प्रति वर्ष लाखों रुपये डकारने के बावजूद इन बेसहारा पशुओं के प्रति उदासीन हैं। क्षेत्र के बुद्धिजीवी वर्ग ने सरकार से माग की है कि इन पशुओं के संरक्षण के लिए ठोस योजना बनाई जाए।