निजी बस ऑपरेटरों की हड़ताल पर राजनीति हावी
हिमाचल में बसों का किराया बढ़ना तय है। लेकिन निजी बस ऑपरेटरों की हड़ताल में राजनीति हावी रही।
राज्य ब्यूरो, शिमला : हिमाचल में बसों का किराया बढ़ना तय है। लेकिन निजी बस ऑपरेटरों की हड़ताल से यह भी साफ हो गया है कि पूरा मामला राजनीति से प्रेरित है। बस ऑपरेटरों की यूनियन सरकार के साथ मोलभाव करने पर तुली है। हड़ताल के मुद्दे पर भी निजी बस ऑपरेटर राजनीतिक आधार पर बंटे नजर आए।
सरकार समर्थित बस ऑपरेटर किराये की बजाय सबसिडी की व्यवस्था करने के पक्षधर हैं। वहीं, कांग्रेस समर्थित धड़ा किराया बढ़ाकर जनता पर आर्थिक बोझ लादना चाहता है। सरकार के साथ हुई दो दौर की वार्ता में सियासत हावी रही। पहले दौर की वार्ता शिमला में हुई जिसमें 22 फीसद किराया बढ़ाने पर सहमति बनी थी। मुख्यमंत्री ने ग्रीन समेत सभी टैक्सों का युक्तीकरण करने का भी आश्वासन दिया था। तय हुआ था कि छोटी गाड़ियों के रूट ट्रांसफर करने की ताकत आरटीओ को दी जाएगी जो रीजनल ट्रासपोर्ट अथॉरिटी के पास है। इन मामलों को मंत्रिमंडल की बैठक में ले जाने पर भी सहमति बनी। मुख्यमंत्री ने परिवहन अधिकारियों को प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिए थे। हड़ताल खत्म करने पर आम राय बनी पर बाद में वार्ता में नहीं आए राज्यस्तर के पदाधिकारियों ने हड़ताल वापस लेने से इन्कार कर दिया। इससे असमंजस पैदा हो गया था। इसके बाद मंडी में मुख्यमंत्री से फिर वार्ता हुई। इसमें भी ऑपरेटरों के कांग्रेस समर्थित धड़े के तेवर कड़े रहे। अगर सरकार ने किराया बढ़ाया तो जनता की जेब पर बोझ पड़ेगा। सरकार के लिए आगे कुआं, पीछे खाई वाले हालात हैं। सफर महंगा होने की सूरत में लोग आम चुनाव में भाजपा के खिलाफ वोट देकर गुस्से का इजहार कर सकते हैं।