सड़क के जख्मों पर वादों का नमक
जिला शिमला में चुनाव लोकसभा का हो या फिर विधानसभा का सड़के हर पार्टी और प्रत्याशी का मुद्दा रहती है।
जागरण संवाददाता, शिमला : चुनाव लोकसभा का हो या फिर विधानसभा का सड़क हर पार्टी और प्रत्याशी का मुद्दा रहती है, लेकिन जिला शिमला की सड़कों की हालत देखकर ऐसा लगता नहीं है कि कुछ काम हुआ भी है। सड़कों की मरम्मत के नाम पर नेता वोट तो बटोर लेते हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद सड़कों की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है। नतीजा जिला शिमला में एक साल के दौरान हुई सड़क दुर्घटनाओं में 10 हजार से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। शिमला में इन दुर्घटनाओं का कारण अव्यवस्थित ट्रैफिक भी है। चाहे ठियोग-छैला मार्ग हो या फिर शिमला के प्रवेश द्वार शोघी-तारादेवी क्षेत्र हो, हर जगह ट्रैफिक अव्यवस्था हादसों का कारण बनती है। यही कारण है कि इस बार सेब सीजन के दौरान कई ट्रक हादसे का शिकार हो गए। सड़क किनारे न तो क्रैश बैरियर लग पाए हैं और न ही पैरापिट। सत्ता में आने से पूर्व पार्टियां दावे तो करती हैं, लेकिन इसके बाद पुख्ता प्रयास नहीं किए जाते। जिला की कई सड़कें नालियों में तबदील हो चुकी हैं। शिमला शहर में भी सड़कों की हालत दयनीय है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो हालत इतने खराब हैं कि एक बार सड़क पर जाने के बाद दूसरी बार चालक जाने को तैयार नहीं होते हैं।
शिमला शहर में भी सड़क किनारे अतिक्रमण और अनधिकृत पार्किंग के कारण कई दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। अगर समय रहते सरकार ने सड़कों की हालत में सुधार किया होता तो इन हादसों को टाला जा सकता था। बस हादसों का कारण ओवरलोडिग और तेज रफ्तार से वाहन चलाना भी रहा। इसके बावजूद सड़कों में बने ब्लैक स्पॉट के लिए आज तक कोई उचित कदम नहीं उठाए गए हैं।
राजधानी मुख्यालय से सटे राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर स्थित तारादेवी में अतिक्रमण के कारण चलना मुश्किल हो गया है। यहां नगर निगम शिमला के प्रवेश द्वार एवं उपनगर तारादेवी के समीप मुख्य सड़क व साथ अकसर वाहनों की कतार लगी होती है, इससे यहां किसी भी समय हादसे की आशंका बनी रहती है। यहां सड़क किनारे अव्यवस्थित ढंग से खड़े वाहनों को हटाने के लिए पुलिस व स्थानीय प्रशासन भी सोया है। राष्ट्रीय उच्च मार्ग के कारण यहां वाहनों की आवाजाही भी बढ़ रही है, इससे यहां अकसर जाम की स्थिति बनी रहती है व न केवल वाहन चालकों को बल्कि पैदल चलने वालों को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
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ट्रैफिक सिग्नल खराब
राजधानी शिमला के चौराहों पर ट्रैफिक सिग्नल तो लगाए गए हैं, लेकिन इनमें अकसर सिग्नल ही नहीं होता। ऐसे में चौराहों पर चालक बिना सिग्नल से ही चले जाते हैं। ऐसे में कई बार चौराहों पर दुर्घटनाएं होती हैं। लाखों रुपये से लगाए गए सिग्नल सफेद हाथी साबित हो रहे हैं। पोल में ट्रैफिक लाइट्स लटकी हैं, न तो इन ट्रैफिक लाइटों की कभी मरम्मत की गई और न ही इनकी देखरेख और सुरक्षा का कोई इंतजाम किया गया है। इसका खामियाजा आम जनता को दुर्घटना के रूप में झेलना पड़ रहा है। इनमें खासकर ढली चौक, संजौली टनल, खलीनी चौक और विक्ट्री टनल में अकसर ही ट्रैफिक सिग्नल खराब रहते हैं।
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काम सिर्फ खानापूर्ति
400 करोड़ से तैयार की जा रही 50 किलोमीटर लंबी ठियोग-हाटकोटी-रोहड़ू सड़क करीब 60 स्थानों पर धंस गई है। हालिया बर्फबारी में सड़क की हालत बदतर हो गई है। मानसून में इस सड़क पर आवाजाही करना और भी मुश्किल हो जाएगा। यह हाल तब है जब इस सड़क का निर्माण कार्य अभी जारी है। ऐसे में सड़क निर्माण की गुणवत्ता पर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं। सड़क का निर्माण कार्य वर्ष 2007 में चीन की कंपनी ने शुरू किया था। चीन की कंपनी के हटने के बाद सरकार ने वर्ष 2013 में सीएंडसी कंपनी को निर्माण का जिम्मा सौंपा। वर्ष 2018 में खराब गुणवत्ता के कारण सीएंडसी कंपनी को भी बाहर कर दिया। ऐसे में सड़क पर आवाजाही के लिए निर्भर लोगों को आने वाले बरसात के मौसम की चिंता सताने लगी है।
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शहर में जाम की समस्या लगातार बढ़ रही है। खासकर सुबह तो जाम बहुत बड़ी समस्या बन जाता है। गंतव्य तक पहुंचने में अकसर देर हो जाती है। सरकार को अब इस समस्या से निपटने के लिए ठोस उपाय करने होंगे। सिर्फ चुनावी मुद्दा बनाने से कुछ नहीं होगा।
-मीरा कैंथला।
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शिमला की सड़कें खस्ता हाल है। आए दिन दुर्घटनाएं खस्ताहाल सड़कों के कारण हो रही हैं। सरकार को इस समस्या से निपटने के लिए उचित रूपरेखा पर काम करना होगा और बढि़या योजनाबद्ध तरीका अपनाना चाहिए।
-रोशन लाल पराशर। हर बार के चुनावी वादे हैं पर न तो सड़कों की स्थिति सुधरी है और न हादसों में कमी आई है। बल्कि और ज्यादा बढ़ गई है। शहर में ट्रैफिक से निपटने में यातायात पुलिस भी चूक रही है। सरकार अगर वादा करती है तो इस समस्या से निपटने के लिए कारगार उपाय करने चाहिए।
-आत्मा राम शर्मा। कोई भी चुनाव हो ट्रैफिक की समस्या को मुद्दा बना कर राजनीतिक रोटियां सेंकी जाती हैं। जनता हर बार की तरह जाम में फंसी रहती है। एक बार फिर सरकार से उम्मीद लगाई है कि समस्या खत्म होगी, बात कागजों तक ही नहीं रहेगी।
-सचिन ठाकुर।