उद्योग नहीं लोगों की जरूरत के मुताबिक पौधारोपण जरूरी
हिमाचल में वन आवरण बढ़ाने के लिए हर साल करोड़ों रुपये का बज
जागरण संवाददाता, शिमला : हिमाचल में वन आवरण बढ़ाने के लिए हर साल करोड़ों रुपये का बजट खर्च किया जाता है। सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं और विद्यार्थियों के सहयोग से हर साल पौधे लगाए जा रहे हैं। सरकार और विभाग के यह प्रयास सराहनीय हैं। कुछ स्थानों पर इसके अच्छे नतीजे भी देखने को मिले हैं।
हालांकि खर्च किए बजट की अपेक्षा के अनुसार यह नतीजे कम हैं। यह कहना है सेवानिवृत आइएफएस अधिकारी डॉ. कुलदीप तंवर का। दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में डॉ. तंवर ने कहा कि वन कार्य योजना (फॉरेस्ट वर्किंग प्लान) को दफ्तरों में बैठकर तैयार नहीं किया जा सकता। आम आदमी को केंद्र में रखकर वन कार्य योजना बनेगी। वन नीति (फॉरेस्ट पॉलिसी) के अनुसार जंगलों पर उसके आसपास रहने वाले लोगों का पहला अधिकार होता है। वे वहां से जलाने के लिए लकड़ियां उठा सकते हैं, जड़ी-बूटियों को निकाल सकते हैं। वन विभाग को चाहिए कि वह जंगलों में ऐसे पौधे लगाए जिससे लोगों को फायदा मिले। पूर्व में कई स्थानों पर बान के पेड़ों को काटकर चील के पेड़ों को लगाया गया। यानि नीति स्पष्ट थी कि उद्योगों को फायदा पहुंचाना है।
उन्होंने कहा कि पौधारोपण उद्योगों की जरूरत नहीं बल्कि आम लोगों और क्षेत्र की भूगौलिक परिस्थिति के अनुसार होना चाहिए। हर साल जो भी पौधे लगाते हैं उसमें हमें महिला मंडलों व ग्राम पंचायतों का सहयोग लेना चाहिए। मनरेगा के तहत इस कार्य को करवाना चाहिए। ऐसे पौधे लगाए जाने चाहिए जिस से पशुओं को चारा मिले और जंगलों में रहने वाले वन्य जीवों को भोजन। तभी पौधारोपण सही मायने में फायदेमंद साबित होगा। लोगों को पौधारोपण के प्रति जागरूक भी किया जाना चाहिए।