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एसीएस मनोज कुमार दो महीने से होटल में रहने को मजबूर

हिमाचल के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) मनोज कुमार को अभी तक सरकारी आवास नहीं मिला है। वह दो महीने से होटल में रह रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 16 Nov 2018 03:37 PM (IST)Updated: Fri, 16 Nov 2018 03:37 PM (IST)
एसीएस मनोज कुमार दो महीने
से होटल में रहने को मजबूर
एसीएस मनोज कुमार दो महीने से होटल में रहने को मजबूर

राज्य ब्यूरो, शिमला : हिमाचल के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) मनोज कुमार को अभी तक सरकारी आवास नहीं मिला है। आला आइएएस अधिकारी दो महीने से गै्रंड होटल शिमला में रहने के लिए मजबूर हैं। सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) के पास अधिकारियों को उनके दर्जे के मुताबिक देने के लिए सरकारी आवास उपलब्ध नहीं हैं।

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टाइप छह व सात के दो-दो सैट ही खाली हैं जबकि आवास के दावेदारों की संख्या 18 से अधिक है। सरकारी आवास के दावेदारों में सार्वजनिक उपक्रम के निगम व बोर्डो में नियुक्त अध्यक्ष व उपाध्यक्ष शामिल हैं। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने दर्जे के अनुसार आवास न मिलने की स्थिति में आवास लेने से इन्कार कर दिया था। हाल ही में सरकार ने विधानसभा में भाजपा के मुख्य सचेतक पद पर नरेंद्र बरागटा को नियुक्त किया है। भाजपा के वरिष्ठ नेता ने भी पसंद का आवास चाहा है। सचिवालय स्थित जीएडी मुश्किल में पड़ गया है कि वैनमोर में खाली हुई टाइप छह कोठी बरागटा को दे या आवास मिलने का इंतजार कर रहे एसीएस मनोज कुमार को? पसंद का सरकारी घर पाने की चाहत कई अधिकारी व नेता पाले हुए हैं। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन होने के बाद मंत्रियों ने पहले पसंद के ऑफिस पर ताला लगाया और इसी तरह आवास प्राप्त किए। जीएडी के रिकॉर्ड में मंत्रियों व दूसरे आला अधिकारियों के लिए टाइप आठ की 22 कोठियां हैं। इस प्रकार की एक भी कोठी खाली नहीं है। अग्निहोत्री कर रहे इंतजार

नेता प्रतिपक्ष एवं कांग्रेस विधायक दल के नेता मुकेश अग्निहोत्री सरकारी कोठी मिलने का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन पदानुसार जीएडी उन्हें सरकारी आवास नहीं दे पाया है। जो आवास अग्निहोत्री को दिया गया था, वह उन्हें पसंद नहीं आया। अग्निहोत्री विधानसभा की आवासीय कॉलोनी में रह रहे हैं। टाइप चार लेने को नहीं तैयार

निगम व बोर्डो में नियुक्त अध्यक्ष व उपाध्यक्ष सरकारी आवास के तौर पर टाइप चार के आवास लेने के लिए तैयार नहीं है। जीएडी के पास टाइप चार, पांच व छह के आवास सीमित संख्या में खाली हैं। बड़ी संख्या में कर्मचारियों व छोटे अधिकारियों ने राजनीतिक प्रभाव के सहारे बड़े बंगले कब्जा लिए हैं।


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