Move to Jagran APP

खतरे में हिमालय, सहेजने होंगे प्राकृतिक जलस्रोत

पद्मश्री सम्मानित पर्यावरणविद डॉ अनिल जोशी ने कहा कि हमें एक जुट होकर हिमालय के दर्द को समझना होगा और उसके लिए नीति बनानी होगी।

By BabitaEdited By: Published: Mon, 03 Dec 2018 12:40 PM (IST)Updated: Tue, 04 Dec 2018 07:56 AM (IST)
खतरे में हिमालय, सहेजने होंगे प्राकृतिक जलस्रोत
खतरे में हिमालय, सहेजने होंगे प्राकृतिक जलस्रोत

शिमला, जेएनएन। पर्यावरणविद एवं पद्मश्री डॉ. अनिल जोशी ने कहा है कि हिमालय खतरे में है। इसके परिणाम दिखने भी शुरू हो गए हैं। शिमला में इस वर्ष गंभीर जलसंकट इसी का नतीजा है। शिमला के प्राकृतिक जलस्रोतों को सहेजना होगा। इस दिशा में सरकार को गंभीरता से कार्य करना होगा। जल संकट से निपटने के लिए देश में वाटरहोल व वाटरशेड बनाए जाने चाहिए।

loksabha election banner

शिमला में दो दिवसीय कार्यशाला में आए डॉ. अनिल ने दैनिक जागरण से कहा कि दुनिया में जीना सीखना है तो यह सिर्फ हिमालय सिखाता है। नदियों को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जाना चाहिए। सरकारों का चयन पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को लेकर नहीं होता है। हम बार-बार कहते हैं कि सरकार नहीं सुनती है। लोग सरकारें चुनते हैं लेकिन विकास, जाति, धर्म, गोत्र आदि के आधार पर जनप्रतिनिधियों का चयन करते हैं। जनप्रतिनिधि इन्हीं आधारों की चिंता व कार्य करते हैं। जब हम पानी, वन, स्वच्छ हवा व नदियों के मुद्दों को लेकर वोट देंगे तो नेता भी यही भाषा बोलेंगे। ऐसा होने पर सरकार डंके की चोट पर सुनेगी। लोकतंत्र में नेता वो चीज पकड़ते हैं जिनसे उन्हें वोट मिलनी है। जिस दिन उन्हें पता चल जाएगा कि पानी, जंगल व वायु की समस्या के कारण हारेंगे, वे इनके लिए दिल खोलकर कार्य करेंगे। 

लोगों की एकजुटता से एकजुट होंगी सरकारें

डॉ. अनिल के अनुसार हिमालय के तहत आने वाले राज्यों के लोगों को एकजुट होना होगा। सरकारों की प्राथमिकता अलग होती है। लेकिन लोग एकजुट हो जाएं तो सरकारें खुद एकजुट हो जाएंगी। वर्ष 2010 से हिमालय दिवस मना रहे हैं। हिमालय दिवस इसी कड़ी में हर वर्ष मनाया जाता है ताकि लोगों को एकजुट किया जा सके। हमारा संगठन घर-घर में हिमालय की बात करने का प्रयास कर रहा है। मैं आखिरी दम तक हिमालय के लोगों को एकजुट करके रहूंगा।

बड़े जन आंदोलन से बचेगा हिमालय

बकौल डॉ. अनिल जोशी, जो लोग हिमालय क्षेत्र में नहीं रहते हैं लेकिन मैदानी हिस्सों में हिमालय की मिट्टी, हवा व पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें भी जागरूक होने की जरूरत है। दोनों पक्षों को मिलकर चुनौतियों से लड़ना होगा। हिमालय की जानकारियां दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों तक बतानी होंगी। बड़ा जन आंदोलन करना होगा तभी हिमालय बच पाएगा। नीति निर्धारकों को हिमालय के लिए एकजुट होकर नीति बनाने की जरूरत है। पर्यावरण हमारी प्राथमिकता में नहीं होता है। जो चीज प्राथमिकता में नहीं होती, उसका विकास सामान्य होता है। लोगों को इसके लिए आगे आना होगा। लोग आवाज नहीं उठाएंगे तो नीति निर्धारक नहीं जागेंगे। हिमालय नहीं होगा तो हम भी नहीं होंगे।

विज्ञान को बनाना होगा जीने का आधार

डॉ. अनिल ने कहा कि संयुक्त अरब अमीरात समुद्र के रास्ते ग्लेशियर को अपने देश लाने में लगा है ताकि पानी की समस्या का समाधान कर सके। यह चिंता प्रकृति की देन है। हरियाणा में एक गांव मवाली में कैंसर के रोगी सबसे अधिक आ रहे हैं। उस क्षेत्र में सबसे ज्यादा केमिकल इस्तेमाल किए जाते हैं। विज्ञान को जीने का आधार बनाना होगा। जब मैंने हिमालय के लिए काम करना शुरू किया तो कई लोग मुझ पर तंज कसते थे। कई चुनौतियां आईं लेकिन मैं नहीं रुका। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.