19 साल बाद बदली, मगर कुर्सी की चाह नहीं बदली
जागरण संवाददाता, शिमला : कहते हैं कुर्सी का मोह जब पड़ जाए, तो नेता से लेकर कर्मचारी तक
जागरण संवाददाता, शिमला : कहते हैं कुर्सी का मोह जब पड़ जाए, तो नेता से लेकर कर्मचारी तक बड़े-बड़े कुर्सी के लिए हाथ जोड़ लेते हैं। ऐसा ही मामला नगर निगम शिमला में देखने में सामने आया है। हाल ही में नगर निगम में कार्यरत एक जेई का स्थानांतरण हुआ है। दिलचस्प बात यह है कि जेई 19 साल से नगर निगम में कार्यरत थे, लेकिन जब उनका तबादला हुआ था, तो उन्हें ये तबादला सहन नहीं हो रहा है। भाजपा के मंत्री से लेकर संघ नेताओं, बीएमएएस पदाधिकारियों तक संपर्क कर चुके हैं कि उनका तबादला दोबारा नगर निगम में करवाया जाएगा। असल में जेई का मोह नगर निगम से तबादला होने के बाद भी छूट नहीं रहा है।
ऐसा भी नगर निगम के भीतर क्या है जो कि दोबारा इसी कुर्सी पर आना चाहते हैं। 19 साल में चार बार सरकारें बन गई, लेकिन जेई ने नेताओं के जुगाड़ भिड़ा कर कुर्सी को सलामत ही रखा। 1999 में उन्हें पहली नियुक्ति नगर निगम के भीतर दी गई थी। 2008 के आसपास नगर निगम से लोक निर्माण के आधीन चले गए थे, लेकिन कुछ दिनों के भीतर प्रतिनियुक्ति पर दोबारा नगर निगम में आ गए। वहीं निगम में सरकार बदलने के बाद पहले जेई का तबादला अभी तक हुआ है। नगर निगम के भीतर जेई के तबादले का मामला काफी चर्चा में है। वहीं उनके तबादला होने से कुछ उनके करीबी कर्मचारी और अधिकारी भी मायूस हो गए हैं, लेकिन इस मामले के बाद अंदाजा लगाया जा सकता है कि जहां एक तरफ तबादलों की राजनीति कैसे होती है और पहुंच वाले कैसे कई सालों तक एक ही पद पर बने रहते हैं। उक्त जेई ने भाजपा के कुछ नेताओं से संपर्क किया, लेकिन जब इन नेताओं ने तबादले के पीछे कारण ढूंढे तो आला नेताओं के निर्देश के बाद ही तबादला किया गया है। ऐसे में कई भाजपा नेता इस तबादले को रूकवाने में असमर्थता जता रहे हैें।
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कई कर्मचारी सालों से एक पद पर
वहीं नगर निगम के भीतर ऐसे कई कर्मचारी व अधिकारी हैं जोकि सालों से एक पद पर बने हुए हैं। फील्ड में अधिकांश कार्य जेई की निगरानी में होते हैं। विकास कार्यो में जेई की भूमिका सबसे अधिक होती है। वहीं निगम में एक जेई के खिलाफ ठेकेदारों ने भ्रष्टाचार की शिकायत भी की थी। ऐसे में देखना यह है कि उक्त जेई का तबादला दोबारा नगर निगम में हो पाता है या नहीं।